________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अरूप
580
अरूपूपपत्ति
वह, जो रूप या आकार से रहित धर्म के रूप में प्रसिद्ध हो, रूप-आकार से रहित कहा जाने वाला - तो पु., प्र. वि., ए. व. - सा उप्पज्जिस्सतीति अरूपसङ्घातो अत्ता नत्थीति सङ्घयं अगन्तवा तिढतेव नामाति जातो. ध. स. अट्ठ. 388; - ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अरूपेन युत्ता धातु अरूपधातु, अरूपसङ्खाता वा धातु, अरूपधातु, महानि. अट्ट, 34; - सजी त्रि., रूपसजी का निषे. [अरूपसंज्ञिन]. रूप में परिकर्म की संज्ञा न रखने वाला - जी पु., प्र. वि., ए. व. - अज्झत्तं अरूपसञ्जीति अलाभिताय वा अनत्थिकताय वा अज्झत्तरूपे परिकम्मसआविरहितो, दी. नि. अट्ठ. 2.136; न रूपसञी अरूपसी , सञआसीसेन झानं वदति, लीन (दी. नि. टी.) 2.143; - सन्तति स्त्री., तत्पु. स. [अरूपसन्तति], रूप-रहित धर्मों की निरन्तरता या लगातारपन - संयुत्तभाणका पन रूपसन्ततीति अरूपसन्ततीति द्वे सन्ततियो वत्वा .... ध. स. अट्ठ. 4363B -- समापत्ति स्त्री., तत्पु. स. [अरूपसमापत्ति], अरूपलोक की प्राप्ति, अरूपलोक में उत्पत्ति – या तृ. वि., ए. व. - अरूपसमापत्तिया गमनमग्गेन अपरिहीनो, महानि. अट्ठ 288; अरूपसमापत्तिया रूपकायतो विमुत्तो, मग्गेन नामकायतो. म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.134; - यो प्र. वि., ब. व. - चत्तारि च झानानि, चतस्सो च अरूपसमापत्तियो- अयं सामयिको विमोक्खो, पटि. म. 226; - सत्तकसम्मसनकथा स्त्री., विसुद्धि के एक खण्ड का शीर्षक, विसुद्धि. 2.260-264; - सहगत त्रि., तत्पु. स. [अरूपसहगत], अरूप-ध्यान के साथ विद्यमान - तानं स्त्री., ष. वि., ब. व. - रूपसहगतानं वा अरूपसहगतानं वा समापत्तीनं, .... पु. प. 117; अरूपसहगतानन्ति रूपतो अझं, न रूपन्ति अरूपं पु. प. अट्ठ. 32; - पारम्मण त्रि., ब. स. [अरूपालम्बन], रूपरहित या निराकार आलम्बनों वाला - णं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - रूपारम्मणञ्च सुखं अरूपारम्मणञ्च सुखं, अ. नि. 1(1).97; - पावचर 1. पु., अरूप ब्रह्मलोक - रं द्वि. वि... ए. व. - ये अरूपावचरं उपपज्जित्वा परिनिब्बायिस्सन्ति तेसं धम्मायतनं उप्पज्जिस्सति, यम. 1.144; 149; 2. त्रि., अरूपलोक के साथ जुड़ा हुआ, अरूप ब्रह्मलोक में अनुभूत, अरूप-ब्रह्मलोक में अत्यधिक घटित होने वाला - रो पु., प्र. वि., ए. व. - कामावचरो फस्सो रूपावचरो फस्सो अरूपावचरो फस्सो सुञतो फस्सो, महानि. 37; कामञ्च रूपञ्च पहाय अरूपे अवचरती ति अरूपावचरो, कुसलाब्याकतवसेन द्वादसां रूपावचरचित्तसम्पयुत्तो, महानि.
अट्ठ. 131; 3. त्रि., उपरिवत्, स. पू. प. में ही प्राप्त; - कुसल त्रि., अरूपभूमि का कुशल चेतसिकों से सम्प्रयुक्त चित्त - लं नपुं., प्र. वि., ए. व. - अरूपावचरकुसलं, ध. स. 78; - ज्झान नपुं., कर्म, स. [अरूपावचरध्यान्], रूपरहित चार आलम्बनों पर चित्त को एकाग्र कराने वाला ध्यान - यस्मा रूपावचरचतुत्थज्झानम्पि दुवङ्गिक उपेक्खासहगतं, अरूपावचरज्झानम्पि तादिसमेव, दी. नि. अट्ठ. 2.93; - देवता स्त्री., अरूप ब्रह्मलोक के देवता - मन्दान सन्निपतिता असआ अरूपावचरदेवता समापन्नदेवता च, दी. नि. अट्ठ. 2.243; - भूमि स्त्री., कर्म. स., चित्त की क्रियाशीलता का वह चरण, जिसमें चित्त रूपरहित आलम्बनों पर एकाग्र होता है - चतस्सो भूमियो - कामावचरा भूमि, रूपावचरा भूमि, अरूपावचरा भूमि, अपरियापन्ना भूमि, पटि. म. 77; - लोक पु., कर्म. स., रूपरहित ब्रह्मा का लोक - के सप्त. वि., ए. व. - तस्स रूपावचरे कडा नत्थि, अरूपावचरलोके अत्थि, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.88; - समाधिभावनानिद्देस पु., तत्पु. स., अभि. अव. के पन्द्रहवें परिच्छेद का शीर्षक, अभि. अव. 128-134. अरूपी त्रि., रूपी का निषे. [अरूपी], रूपरहित, अभौतिक, निराकार - रूपी च अरूपी च अत्ता होति... पे.... नेवरूपी नारूपी अत्ता होति, दी. नि. 1.26; अयहि, भन्ते, आकासो अरूपी अनिदस्सनो, म. नि. 1.180; - पिनो पु., प्र. वि., ब. व. - रूपिनो वा अरूपिनो वा सचिनो वा असजिनो वा नेवसञ्जीनासचिनो वा, मि. प. 205; - पिसु पु., सप्त. वि., ब. व. - पञ्च रूपभवेयेव, चत्तारेव अरूपिसु अभि. अव. 40. अरूपिक त्रि., बिना रूप वाला, अभौतिक, रूपस्कन्ध से असम्बद्ध (केवल स. प. के रूप में ही प्राप्त) -
रूपारूपिकपुञ्जन्तु रूपारूपभवावहं, सद्धम्मो. 236. अरूपिब्रह्म पु., कर्म, स., केवल ब. व. में प्राप्त [अरूपिब्रह्मन], अरूप लोक के ब्रह्मा - नो द्वि. वि., ब. व. - एवं सो असञ्ज च अरूपिब्रह्मानो च ठपेत्वा सब्बत्थ मुहुत्तेनेव
आहिण्डित्वा आरोचेसि, ध. प. अट्ठ. 2.358. अरूपिम त्रि., रूपिम का निषे०, सुन्दर रूप से विहीन, कुरूप - मं पु., वि. वि., ए. व. - पस्सामि पोसं अलसं महग्घसं. सुदुक्कुलीनम्पि अरूपिम नरं जा. अट्ठ. 5.395. अरूपूपपत्ति स्त्री., तत्पु. स. [अरूपोपपत्ति], क. अरूपलोक में जन्म की प्राप्ति, ख. अरूपध्यान की प्राप्ति - या च./ष. वि., ए. व. - यस्मिं समये अरूपूपपत्तिया मग्गं भावेति, ध. स. 2663; 267; 268; विभ. 195; अरूपूपपत्तियाति
For Private and Personal Use Only