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अरियसच्च
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अरियसुख 2(2).84; - गुण पु., तत्पु. स. [आर्यसङ्घगुण], उत्तम अरियसावक पु., कर्म. स. [आर्यश्रावक], शा. अ. उत्तम भिक्षुसङ्घ का गुण - णा प्र. वि., ब. व. - अनुत्तरं पुञ्जक्खेत्तं शिष्य, ला. अ. स्रोतापत्ति, सकृदागामी, अनागामी एवं लोकस्सा ति एवं अरियसङ्घगुणाति अनुस्सरितब्बा, अर्हत्व के मार्ग पर मौजूद चार प्रकार के शैक्ष्य शिष्य, बुद्धों, विसुद्धि. 1.210; अरियसङ्घगुणाति आरकत्ता किलेसेहि, ... अर्हतों आदि के धर्मोपदेश को सुना हुआ व्यक्ति - को प्र. अरियानं वा सङ्घो अरियसङ्घो, तस्स गुणा, विसुद्धि. महाटी.. वि., ए. व. - एते च पटिविज्झि यो गहट्ठोसुतवा अरियसावको 1.262.
सपओ, सु. नि. 90; तस्सेव लक्खणस्स अरियानं सन्तिके अरियसच्च नपुं.. कर्म./तत्पु. स. [आर्यसत्य], क. उत्तम सुतत्ता अरियसावको, सु. नि. अट्ट, 1.131; एवं पस्सं. सत्य, ख. बुद्धों एवं अर्हतों जैसे शुद्धचित्त आर्यों द्वारा देखा भिक्खवे, सुतवा अरियसावको रूपस्मिम्पि निबिन्दति, महाव. गया सत्य, ग. क्लेशरहित चित्त की अवस्था तक पहुंचाने 19; 39; अरियसावकोति अरियस्स बद्धस्स सावको, विभ. वाला सत्य अथवा आर्य बना देने वाला सत्य - च्वं प्र. वि., अट्ठ 111. ए. व. - इदं खो पन, भिक्खवे, दुक्खं अरियसच्चं ... अरियसाविका स्त्री., कर्म. स., अरियसावक से व्यु. दुक्खसमुदयं अरियसच्चं ... दुक्खनिरोधं .... [आर्यश्राविका]. शा. अ. बुद्धों एवं अर्हतों जैसे आर्यों से दुक्खनिरोधगामिनी पटिपदा अरियसच्चं, महाव. 14; - धर्म सुन चुकी भिक्षुणी, ला. अ. स्रोतापत्ति आदि चार च्चानि प्र. वि., ब. व. - अरियसच्चानीति परिच्छिन्न- लोकोत्तर मार्गों पर स्थित भिक्षुणी .. का प्र. वि., ए. व. - धम्मनिदस्सनं, दुक्खं अरियसच्चन्ति आदिम्हि पन उद्देसवारे, पञ्चहि, भिक्खवे, वडीहि वङ्घमाना अरियसाविका अरियाय विभ. अट्ठ. 77; चत्तारो धम्मा अभिज्ञेय्या - चत्तारि वडिया ववति, स. नि. 2(2).244; सा हि भगवतो अगुपट्टायिका अरियसच्चानि, पटि. म.6; यो च बुद्धञ्च धम्मञ्च सङ्घञ्च पणीतदायिकानं साविकानं एतदग्गे ठपिता सोतापन्ना सरणं गतो, चत्तारि अरियसच्चानि सम्मप्पाय पस्सति, अरियसाविका, उदा. अट्ठ. 97; सा किर सोतापन्ना ध. प. 190; -- च्चान ष. वि., ब. व. - तपो च ब्रह्मचरियञ्च, अरियसाविका भारद्वाजगोत्तस्स ब्राह्मणस्स भरिया. म. नि. अरियसच्चान दस्सनं, खु. पा. 5.11; - च्चेसु सप्त. वि., अट्ठ. (म.प.) 2.317. ब, व. - ... भिक्खु धम्मेसु धम्मानुपस्सी विहरति चतूसु अरियसीलवत त्रि., ब. स. [आर्यशीलव्रत], बुद्धों एवं अर्हतों अरियसच्चेसु. म. नि. 1.84; -- देसना स्त्री., प्र. वि., ए. व. द्वारा उपदिष्ट शीलों एवं व्रतों का पालन करने वाला, तत्पु. स., चार आर्यसत्यों का उपदेश - का च पन साति? आर्यजनों के शीलों एवं व्रतों से युक्त - वतो पु.. प्र. वि., अरियसच्चदेसना, तेनेवाह- दुक्खं समदयं निरोधं मग्गन्ति, ए. व. - न चाहं तस्मिं दुभेय्यं, अरियसीलवतो हि सो, जा. उदा. अट्ट. 231; म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.66.
अट्ठ. 7.240; ... अरियसीलवतोति अरियेन सीलवतेन अरियाय अरियसदिस त्रि., तत्पु. स. [आर्यसदृश], आर्यजन जैसा, च आचारसम्पत्तिया समन्नागतो, तदे.. उत्तम जनों के समान - सो पु.. प्र. वि., ए. व. - अरियसीली त्रि.. ब. स. [आर्यशील], अर्हत् आदि आर्यजनों अरियावकासोति रूपेन अरियसदिसो देववण्णो हुत्वा चरसि. के शीलों से युक्त, उत्तम शीलों का आचरण करने वालाजा. अट्ठ. 7.204.
ली पु., प्र. वि., ए. व. - गोतमो सीलवा अरियसीली अरियसमाचार त्रि., ब. स. [आर्यसमाचार], उत्तम आचरण कुसलसीली कुसलसीलेन समन्नागतो, दी. नि. 1.101; वाला - रो पु., प्र. वि., ए. व. - अरियो अरियसमाचारो, चतुपारिसुद्धिसीलेन सीलवा, तं पन सील अरियं उत्तम बाळ्हं त्वं मम रुच्चसि, जा. अट्ट. 5.321; अरियसमाचारोति परिसुद्धं तेनाह अरियसीली ति, दी. नि. अट्ठ. 1.230. सुन्दरसमाचारोपि जातो, तदे...
अरियसुख नपुं.. कर्म. स. [आर्यसुख], उत्तम सुख, सदाचार अरियसम्मत त्रि., कर्म, स. [आर्यसम्मत]. लोगों के बीच एवं चित्त की विशुद्धि से प्राप्त सुख - खं प्र. वि., ए. व. 'आर्य' या उत्तम व्यक्ति के रूप में पहचान रखने वाला, - द्वेमानि, भिक्खवे सुखानि.... अरियसुखञ्च अनरियसुखञ्च आर्य के रूप में माना गया व्यक्ति - ता पु., प्र. वि., ब. व. ... एतदग्गं, भिक्खवे, इमेसं द्विन्नं सुखानं यदिदं - सत्ततिंसबोधिपक्खियअरियधम्मसमायोगतो वा अरियसम्मता अरियसुखान्ति, अ. नि. 1(1).96; छ8 अरियसुखन्ति बुद्धपच्चेकबुद्धबुद्धसावका एतानि पटिविज्झन्ति, खु. पा. अपुथुज्जनसुखं, अनरियसुखान्ति पुथुज्जनसुखं अ. नि. अट्ठ. 64.
अट्ठ. 2.52.
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