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अरियवत
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अरियसङ्घ
जा. अट्ठ. 3.266; तत्थ अरियवण्णीति सुन्दररूपो, तदे. अरियवत त्रि., ब. स. [आर्यव्रत], आर्यजनों अथवा बुद्धों एवं अर्हतों द्वारा गृहीत शील आदि व्रतों का पालन करने वाला -- ता पु.. प्र. वि., ब. व. - अनुसासि में अरियवता, अनुकम्पि अनुग्गहि, थेरगा. 334; अरियवताति सुविसुद्धसीलादिवतसमादानेन, थेरगा. अट्ठ. 2.43. अरियवत्ति' स्त्री., कर्म, स. [आर्यवृत्ति], उत्तम आचरण, उत्तम शील - त्ती प्र. वि., ब. व. - ठितमरियवत्ती सवचो अकोधनो, जा. अट्ठ. 3.392; ठितमरियवत्तीति ठितअरियवत्ति, अरियवत्ति नाम दसराजधम्मसङ्कातं पोराणराजवत्तं, तदे... अरियवत्ति त्रि., ब. स. [आर्यवृत्ति]. उत्तम शीलों वाला, उत्तम आचरण वाला, आर्य के उत्तम आचरणों एवं गुणों से युक्त - त्ती पु.. प्र. वि., ए. व. - अरियवत्तसि वक्कङ्ग, यो पिण्डमपचायसि, जा. अट्ठ. 5.358; तत्थ अरियवत्तसीति मित्तधम्मरक्खणसङ्घातेन आचारअरियानं वत्तेन समन्नागतोसि, तदे.. अरियवास पु.. तत्पु. स. [आर्यवास], बुद्धों एवं अर्हतों द्वारा पालन किए गए ब्रह्मचर्य-जीवन में निवास, शील समाधि एवं प्रज्ञा की शिक्षाओं का अनुपालन - सा प्र. वि., ब. व. - दस अरियवासा, इधावुसो, भिक्खु पञ्चङ्गविप्पहीनो होति. दी. नि. 3.214; 249; अरियवासाति अरिया एवं वसिंसु वसन्ति वसिरसन्ति एतेसूति अरियवासा, दी. नि. अट्ट. 3.214; - भाणक त्रि., ब्रह्मचर्य-जीवन में वास से सम्बन्धित सुत्तों का पाठ करने वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - सो वत्तब्बो त्वं अरियवासभाणको होसि न होसी ति, विभ. अ. 433. अरियविनय पु., कर्म. स. [आर्यविनय], विनय के उत्तम नियम, आर्यों अथवा बुद्ध द्वारा प्रज्ञप्त विनय - ये सप्त. वि., ए. व. - तथेव अरियविनये, सद्धा यस्स न विज्जति, अ. नि. 2(2).67; सद्धम्मे सुप्पवेदिते सम्मासम्बुद्धेन सुट्ट पवेदिते अरियविनये अहं पब्बजिता, थेरीगा. अट्ठ. 266. अरियविहार पु.. तत्पु./कर्म. स. [आर्यविहार], उत्तम विहार, आर्यजनों अथवा बुद्धों, प्रत्येकबुद्धों एवं अर्हतों की जीवनवृत्ति, मन की उत्तम अवस्था - रो प्र. वि., ए. व. - सम्मा वदमानो वदेय्य- अरियविहारो इतिपि, ब्रह्मविहारो इतिपि, तथागतविहारो इतिपि, स. नि. 3(2).395-396; - रेन त. वि., ए. व. - तदा अरियविहारेन विहरति तेसं अमोहकुसलमूलुप्पादनत्थं, सु. नि. अट्ठ. 1.108; - स्स ष. वि., ए. व. - अदोसो ब्रह्मविहारस्स, अमोहो अरियविहारस्स.
ध. स. अट्ठ. 174; - पुब्बङ्गम त्रि.. ब. स. [आर्यविहारपूर्वङ्गम], वह, जिसके पूर्वाधार के रूप में उत्तम विहार या आर्यजनों द्वारा अनुपालित ब्रह्मचर्यवास रहता हो - माय स्त्री., तृ. वि., ए. व. - तं समयं अरियविहारपुब्बङ्गमाय धम्मपच्चवेक्खणाय भगवा विहासि, उदा. अट्ठ. 19; - समङ्गिता स्त्री., भाव, आर्यविहारों से भरपूर होना - ता प्र. वि., ए. व. - इरियापथेसु आसनसङ्खातं इरियापथसमायोगपरिदीपनं अरियविहारसमङ्गिता-परिदीपनञ्चाति वेदितब्बं उदा. अट्ठ. 22. अरियवीथि स्त्री., कर्म. स. [आर्यवीथि], आर्यजनों का मार्ग, उत्तम लोकोत्तर मार्ग, बुद्धों, प्रत्येकबुद्धों एवं अर्हतों का चित्तविशुद्धि प्राप्त कराने वाला मार्ग - तो प. वि., ए. व. - असेसअरियवीथितोपि तथागता पटिसल्लानं सेवन्ति, मि. प. 142. अरियत्ति त्रि., ब. स. [आर्यवृत्ति], उत्तम जीवन जीने वाला, उत्तम आचरण या व्यवहार वाला - तिं पु.. द्वि. वि., ए. व. - अरियवृत्तिं मेधाविं, हीनजच्चम्पि पूजये, स. नि. 1(1),118; - त्तिने पु., सप्त. वि., ए. व. - कतम्हि च पोसम्हि, सीलवन्ते अरियत्तिने, जा. अट्ट. 4.38; - तिनं पु., ष. वि., ब. व. - इच्चेवं मन्तयन्तानं अरियानं अरियवुत्तिनं. जा. अट्ठ. 5.334; 356. अरियवोहार पु., क. कर्म. स. [आर्यव्यवहार], उत्तम वाणी का प्रयोग, शिष्ट वाग्व्यवहार, सभ्य भाषा का प्रयोग, असत्यभाषण, चुगली, कठोरवाणी एवं निरर्थक बातचीत से मुक्त वाग्व्यवहार - रेन तृ. वि., ए. व. - भगिनियोति अरियवोहारेन आलपनं, जा. अट्ठ. 5.418; - रा प्र. वि., ब. व. - चत्तारो अरियवोहारा ति एत्थ चेतना, उदा. अट्ठ. 271; चत्तारोमे, भिक्खवे, अरियवोहारा ... अदितु अदिवादिता असुते असुतवादिता अमुते अमुतवादिता अविआते अविज्ञातवादिता, अ. नि. 1(2).281; परि. 248; ख. जनसाधारण के लिए प्रयुक्त आर्यजनों की भाषा का प्रयोग -- अयमेवेका यथाभुच्चब्रह्मवोहारअरियवोहारसङ्घाता मागधभासा
न परिवत्तति, विभ. अट्ठ. 367. अरियसङ्घ पु., तत्पु./कर्म. स. [आर्यसङ्घ], आर्यों अथवा
उत्तम शील आदि से सम्पन्न भिक्षुओं का सङ्घ, उत्तम सङ्घ - ई वि. वि., ए. व. - खेत्तं जनानं कुसलथिकानं, तमरियसङ्घ सिरसा नमामि, पारा. अट्ठ. 1.2; वन्दे अरियसङ्घ तं. पुञक्खेत्तं अनुत्तरं उदा. अट्ठ. 1; - स्स ष. वि., ए. व. - सत्तमो पुग्गलो एसो, अरियसङ्घस्स वुच्चति, अ. नि.
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