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अरहरूप
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अरिट्ठ
[अर्हत्ववादप्रतिसंयुक्त], 'अर्हत् कह कर पुकारने की आदत अरहोपेक्खा अञविहिताति न रहो अस्सादापेक्खा रहो वाला, 'अर्हत्' सम्बोधन से युक्त - त्तं नपुं.. प्र. वि. ए. व. अरसादतो अञविहिताव हुत्वा .... पाचि. अट्ठ. 191. - यकिञ्चि वदन्तो अरहन्तवादपटिसंयुत्तमेव वदति, ध. प. अराग त्रि., [अराग], राग से रहित, आसक्ति या लगाव से अट्ठ. 2.362; - सजी पु.. [अर्हत्संज्ञिन्]. अर्हत् समझने ___ मुक्त - सो अरागो अदोसो अमोहो... कालं करिस्सति, म. वाला - अयं अम्हेसु अरहन्तसञी ति चिन्तयिंसु. ध. प. नि. 1.32. अट्ठ. 2.362; - न्तूपसहित त्रि., [अर्हदुपसंहित], अर्हतों अराज' राज के अद्य. का प्र. पु., ए. व.. महाराज शब्द के से सम्बन्धित, अर्हत्-विषयक-हिता स्त्री., प्र. वि., ए. व. निर्वचनक्रम में प्रयुक्त, प्रभासित हुआ, सुशोभित हुआ - महि - बुद्धपसम्हिता ... अरहन्तूपसम्हिता काम्पसम्हिता, दी. अराज महाराजा ति च छेदो, सद्द. 2.346. नि. 2.195.
अराज' पु., राज का निषे. [अराजन्], अशासक, अनृपतिअरहरूप त्रि., ब. स. [अर्हरूप], योग्य प्रकृति से युक्त, ओ ष. वि., ए. व. - तुरहं पन अरोपि सतो उपयुक्त अथवा उदात्तस्वरूप वाला - तो प. वि., ए. व. ___ अधिवासनभारो जातो, जा. अट्ठ. 2.174. - ... सारेतु निरन्तरं पवत्तेतुं अरहरूपतो सरितब्बभावतो च ___ अराजक त्रि., ब. स. [अराजक], बिना राजा वाला - कं साराणीय, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).117.
नपुं., द्वि. वि., ए. व. - सोपि न अराजकं चक्कं वत्तेतीति, अरहसजी त्रि., रहसञी का निषे. [अरहःसंज्ञिन]. अरहस्यमय अ. नि. 2(1).141; अराजक रज्जन वट्टति, अ. नि. अट्ठ. या अगुप्त रूप में जानने वाला, एकदम खुले रूप में या 1.136; - के सप्त. वि., ए. व. - अरुओति अराजके सुञ स्पष्ट रूप में जानने वाला - चिनो पु., ष. वि., ए. व. जा. अट्ठ. 5.68. - अनन्धे सति वि स्मि ठितस्सारहसचिनो, विन. वि. अराजिक त्रि., ब. स. [अराजक], बिना राजा वाला - कं 547.
नपुं., प्र. वि., ए. व. - नग्ग रष्टुं अराजिक जा. अट्ठ. अरहस्स त्रि., ब. स. [अरहस्य], छिपा कर न रखने वाला, 7.265; - का स्त्री., प्र. वि., ए. व. - संवच्छरं तदा आसि उन्मुक्त, खुला हुआ - स्सं पु.. द्वि. वि., ए. व. - पुरिसं तम्बपण्णि अराजिका, दी. वं. 11.11. विवट पाकट अकिरियं अरहस्सं रहस्सकामा परिवज्जेन्ति, अराति पु.. [अराति], शत्रु, बैरी - अमित्तो रिपु वेरी च मि. प. 276; - कारी त्रि. [अरहस्यकारी], लुक-छिप कर सपत्तोराति सत्त्वरी, अभि. प. 344. काम न करने वाला - रिना पु., तृ. वि., ए. व. - ... अरि पु.. [अरि]. शत्रु - खेम यहिं तत्थ अरी उदीरितो, जा. अरहस्सकारिना भवितब्बं, मि. प. 105; - वचन नपुं.. कर्म. ___ अट्ठ. 1.450; - रिं द्वि. वि., ए. व. - दुद्वचित्तो वसमागतं स. [अरहस्यवचन], ऐसा वचन, जो किसी से भी छिपाए अरिं जा. अट्ठ. 5.451; तं अरिं मद्दनिपाति भूरिपा , जाने योग्य न हो- नं प्र. वि., ए. व. - तिण्णं सन्निपाता पटि. म. 369; - री प्र. वि., ब. व. - अरी असेसा दमथं गब्भस्स अवक्कन्ति होती ति असे सवचनमेतं ... उपेन्ति, दी. नि. अट्ठ. 2.191; - रीनं ष. वि., ब. व. - अरहस्सवचनमेतं. मि. प. 128...
अरीनं वा हतत्ता अरह, उदा. अट्ठ. 67. अरहित त्रि., अरह का भू. क. कृ. [अर्हित], सम्मानित, अरिकारिविहार पु., श्रीलङ्का के एक प्राचीन विहार का नाम पूजित, सत्कृत - अपचायितो च महितो पूजितारहिताच्चिता. - रे सप्त. वि., ए. व. - अरिकारिविहारे च पटिसंखासि अभि. प. 750.
जिण्णक, चू. वं. 49.32. अरहो अ, क्रि. वि., रहो का निषे. [अरहः]. अगुप्त या । अरिञ्चमान त्रि.. रिञ्च के वर्त. कृ. का निषे०, रिक्त या अरहस्यमय रूप में, दूसरों से बिना छिपाए हुए - अरहो खाली न करता हुआ, नहीं छोड़ता हुआ, नहीं त्यागता हुआ अरहोसञ्जी, पारा. 88; अरहो रहोसञ्जीनिदेसादीसु अरहोति - नो पु., प्र. वि., ए. व. - पटिसल्लानं झानमरिञ्चमानो, सम्मुखे, पारा. अट्ठ. 2.46; - पेक्ख त्रि.. ब. स., रहस्यमयता सु. नि. 69; एवमेतं पटिसल्लानञ्च झानञ्च अरिञ्चमानो. की इच्छा न करने वाला, किसी बात को गुप्त रखने की सु. नि. अट्ठ. 1.98. इच्छा न करने वाला - क्खा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अरिट्ठ' पु./नपुं.. [अरिष्ट], क. मादक तरल पेय, मादक अनापत्ति यो कोचि विझू दुतियो होति अरहोपेक्खा । शराब, आसव - @ो प्र. वि., ए. व. - यो अरिष्टो मज्जन अञविहिता सन्तिट्ठति वा सल्लपति वा, पाचि. 367; होति, तस्मिं अनापत्ति, पाचि. अट्ठ. 115; अरिठ्ठो आसवे
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