________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अरियचित्त
568
अरियधम्म
फलसमापत्तिन्हि... वृद्वितस्सापि चङ्कमादयो अरियचङ्कमादयो, अ. नि. अट्ठ. 2.168. अरियचित्त त्रि., ब. स. [आर्यचित्त], उत्तम चित्त वाला, विशुद्ध चित्त वाला - स्स पु., प. वि., ए. व. - अरियचित्तस्स
अनासवचित्तस्स अरियमग्गसमङ्गिनो अरियमग्गं भावयतो ...., म. नि. 3.119. अरियजनसेवित त्रि., तत्पु. स. [आर्यजनसेवित], आर्यजनों द्वारा सेवन किया गया - तं नपुं., वि. वि., ए. व. - अरियकन्तं अरियजनसेवितमेव असंकिलिटुं सुखं नामकायेन पटिसंवेदेति तस्मा, ध. स. अट्ट, 219. अरियाण नपुं.. कर्म. स. [आर्यज्ञान], यथार्थ का ग्रहण कराने वाला ज्ञान, अर्हत् अवस्था प्राप्त होने पर उत्पन्न ज्ञान - अरियसावकस्स अरियाणं उप्पन्न होति, स. नि. 3(2).303; - दस्सन नपुं., [आर्यज्ञानदर्शन], उत्तम ज्ञान एवं दर्शन, यथार्थ या सत्य का ग्रहण कराने वाला ज्ञान एवं आन्तरिक दर्शन - अरियं विसद्ध उत्तम आणदस्सनन्ति
अरियाणदस्सनं, पारा. अट्ठ. 2.73. अरियञ्जस पु., आर्यों का सीधा सपाट मार्ग - जसा प्र. वि., ब. व. - अरियवंसा अरियतन्तियो.... अरियजसा ...
सुत्तन्तं विनिवदे॒त्वा, अ. नि. अट्ठ. 2.279. अरियट्ठ पु.. तत्पु. स. [आर्यार्थ], आर्य शब्द का अर्थ या तात्पर्य, विशुद्ध अर्थ- अरियट्ठो नाम परिसुद्धहोति परिसुद्धतापि अरिया, पु. प. अट्ठ. 39. अवमङ्गल त्रि., ब. स. [अवमङ्गल]. मङ्गलरहित, अशुभ, अनिष्ट, अप्रिय - लं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - मङ्गलकिच्चेसु समणदस्सनं अवमङ्गलन्ति एवंदिष्टिको, सु. नि. अट्ठ. 1.140; -- भूत त्रि., अवृद्धिभूत, अमङ्गल से परिपूर्ण - ता स्त्री., प्र. वि., ए. व. - अवभूतावाति अवडिभूता अवमङ्गलभूतायेव, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.318. अरियतन्ति स्त्री., तत्पु. स., आर्यों की परम्परा की कतार, आर्य वंश, श्रेष्ठ जनों की अविच्छिन्न परम्परा - न्ति प्र. वि., ए. व. - एवं अयम्पि अट्ठमो अरियवंसो अरियतन्ति अरियपवेणी नाम होति, अ. नि. अट्ठ. 2.268; दी. नि. अट्ठ. 3.173; - न्तियो ब. व. - इमे चत्तारो अरियवंसा अरियतन्तियो
अरियपवेणियो अरियञ्जसा, अ. नि. अट्ठ. 2.279. अरियदेवता स्त्री., कर्म./तत्पु. स., ब. व. में ही प्राप्त [आर्यदेवता], क. श्रेष्ठ या उत्तम देवता, ख. आर्यजनों के देवता - अरियदेवता चिन्तयिंसु- एकिस्सा लोकधातुया वे बुद्धा नाम नत्थि, दी. नि. अट्ठ. 2.247.
अरियदेसवासी त्रि., [आर्यदेशवासिन]. आर्य-देश का निवासी - सिमनुस्स पु., तत्पु. स. [आर्य-देशवासी मनुष्य], आर्य देश में निवास करने वाला मनुष्य - स्सानं ष. वि.. ब. व. - अरियकमनुस्सानन्ति अरियदेसवासिमनुस्सानं, लीन. (दी.नि.टी.) 2.123. अरियदेसीस पु., तत्पु. स. [आर्यदेशेश], आर्य देश का स्वामी या शासक - सो प्र. वि., ए. व. - वीरो अरियदेसी
सो वीरदेवो ति पाकटो, चू. वं. 61.36. अरियदेही त्रि., [आर्यदेहिन्]. आर्य व्यक्ति, स्रोतापन्न, सकृदागामी, अनागामी एवं अर्हत्, इन चार अवस्थाओं में पहुंचा हुआ व्यक्ति- हिनं पु., ष. वि., ब. व. - पुथुज्जनानं तिण्णम्पि, चतुन्नं अरियदेहिनं, अभि. अव. 48.. अरिद्दस/अरियद्दस त्रि., [आर्यद्रक], चार आर्यसत्यों एवं निर्वाण का साक्षात्कार करने वाला व्यक्ति - सा पु., प्र. वि.. ब. व. - अरियद्दसा वेदगुनो, सम्मदाय पण्डिता, इतिवु. 67; अरियं निब्बानं, अरियं चतुसच्चमेव वा दिट्ठवन्तोति
अरियद्दसा, इतिवु. अट्ट. 261. अरियधन नपुं., कर्म. स. [आर्यधन]. शा. अ. उत्तम धन, ला. अ. श्रद्धा, शील, ही, अपत्राप्य, श्रुत, त्याग एवं प्रज्ञा का धन - नं प्र. वि., ए. व. - नेतं समणसारुप्पं न एतं अरियद्धनं, थेरीगा. 344; महन्तं खो पनेतं सत्थु दायज्ज, यदिदं सत्तअरियधनं नाम, तं न सक्का कुसीतेन गहेतुं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).305; -- नानं ष. वि., ब. क. - सद्धाधनं सीलधनं हिरिधनं ओत्तप्पधनं सतधनं चागधनं पञाधनन्ति इमेसं सत्तन्नं अरियधनानं. ... ... विसुद्धि. महाटी. 2.456; - दायज्ज नपुं. तत्पु. स. [आर्यधनदायाद्य], श्रद्धा आदि उत्तम संपत्तियों की धरोहर - ज्ज द्वि. वि., ए. व. - एवं कुसीतोपि इदं अरियधनदायजंन लभति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).305. अरियधम्म' पु.. तत्पु./कर्म. स. [आर्यधर्म]. बुद्ध द्वारा उपदिष्ट उत्तम धर्म, आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग, उत्तम अवस्था की ओर ले जाने वाला धर्म, आर्य बनाने वाला धर्म - म्मो प्र. वि., ए. व. - ... इमिना येसं अञो अरियधम्मो नत्थि, तथागते पन सद्धामत्तं पेममसत्तमेव होति. म. नि. अट्ट. (मू.प.) 1(2).25; - म्मं द्वि. वि., ए. व. - परोवरं अरियधम्म विदित्वा, सु. नि. 355; अरियधम्मन्ति चतुसच्चधम्म सु. नि. अट्ठ. 2.75; - म्मेन तृ. वि., ए. व. -- यमरियधम्मेन पुनन्ति बुद्धा, जा. अट्ट, 4.69; - स्स ष. वि., ए. व. - अरियधम्मस्स अकोविदोति सतिपट्टानादिभेदे अरियधम्मे अकसलो, ध. स.
For Private and Personal Use Only