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अरियधम्म
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अरियपरियेसना
अट्ठ. 380; - म्मे सप्त. वि., ए. व. - एतं अनुसरं मच्चो, अरियधम्मे ठितो नरो, अ. नि. 1(2).80; - पकासिका स्त्री., तत्पु. स., प्र. वि., ए. व. [आर्यधर्मप्रकाशिका], उत्तम धर्म को प्रकाशित करने वाली - सुञतापटिसंयुत्ता, अरियधम्मप्पकासिका, थेरगा. अट्ठ. 1.2; - पदट्ठान नपुं.. उत्तम धर्म का सबसे निकटवर्ती या समीपी कारण - नानि प्र. वि., ब. व. - सब्बानेव च लोलुप्पविद्धंसनरसानि, निल्लोलुप्पभावपच्चुपट्टानानि अप्पिच्छतादिअरियधम्मपदट्ठानानि, विसुद्धि. 1.59; अरियधम्मपदद्वानानीति परिसुद्धसीलादिसद्धम्म पदट्ठानानि, विसुद्धि. महाटी. 1.84; एतं यथावुत्तपरिग्गहवत्थु सद्धादिधनं विय अरियधम्ममयम्पि धनं न होति, थेरीगा. अट्ट, 266; - लामिभाव पु., तत्पु. स. [आर्यधर्मलाभित्व], आर्यजनों अथवा अर्हतों के धर्मों के लाभ प्राप्त होने की अवस्था - वं द्वि. वि., ए. व. - एसो भिक्खु अत्तनो अलाभिभावञ्च अरियधम्मलाभिभावञ्च अत्तनाव अकासि, जा. अट्ठ 1.232; - विपाक पु., तत्पु. स. [आर्यधर्मविपाक, स्रोतापत्ति आदि चार आर्यमार्गों पर विद्यमान आर्यपुद्गल का विपाक - को प्र. वि., ए. व. - तत्थ अरियधम्मविपाकोति मग्गसङ्घातस्स अरियधम्मस्स विपाको, कथा. अट्ट, 198; - विपाककथा स्त्री., कथा. के 7वें वर्ग की एक कथा का शीर्षक, कथा. 296-297; - सन्निस्सित त्रि, तत्पु. स. [आर्यधर्मसन्निश्रित], स्रोतापत्ति आदि लोकोत्तर मार्ग पर आधारित धर्म से जुड़ा हआ - तं स्त्री., वि. वि., ए. व. - एवं मं जनो सम्भावेस्सती ति अरियधम्मसन्निस्सितं वाचं भासति, महानि. 164; अरियधम्मसन्निस्सितन्ति लोकत्तर धम्मपटिबद्ध, महानि. अट्ठ. 269; - सवन नपुं.. तत्पु. स. [आर्यधर्मश्रवण], लोकोत्तर धर्म का सुनना - नं नपुं., प्र. वि., ए. व. - सो अरियधम्मस्सवनं आगम्म योनिसोमनसिकारं धम्मानुधम्मप्पटिपत्तिं असंसट्ठो विहरति, दी. नि. 2.158. अरियधम्म त्रि., ब. स. [आर्यधर्मन्], आर्यधर्म अथवा बुद्ध के लोकोत्तर मार्ग का अनुसरण करने वाला - म्मं पु.. द्वि. वि., ए. व. -- तमरियधम्म कुसला वदन्ति, सु. नि. 789; - म्मो पु., प्र. वि., ए. व. - तस्स तं अकत्थन अरियधम्मो एसोति बुद्धादयो खन्धादिकुसला वदन्ति, सु. नि. अट्ठ. 2.216... अरियनिसेवित त्रि., तत्पु. स. [आर्यसेवित]. वह, जिसका व्यावहारिक प्रयोग अर्हत् आदि आर्यजन करते हैं, आर्यजनों द्वारा आचरित या सेवित - तं स्त्री., द्वि. वि., ए. व. - इति सन्तं समापत्ति, इमं अरियनिसेवितं, विसुद्धि. 2.350; अरियेहि एव निसेवितब्बता अरियनिसेवितं, विसुद्धि. महाटी. 2.498.
अरियन्वयसम्भूतकुमार पु., कर्म. स. [आर्यान्वयसम्भूतकुमार], आर्यवंश में उत्पन्न राजकुमार - रेन तृ. वि., ए. व. - अरियन्वयसंभूतकुमारेन सहामुना? चू. वं. 63.15. अरियपञा स्त्री., तत्पु. स. [आर्यप्रज्ञा], आर्यजनों अथवा मार्गस्थ एवं फलस्थ आर्यश्रावकों की प्रज्ञा, विशुद्ध प्रज्ञा, निर्मल प्रज्ञा - य तृ. वि., ए. व. - सद्दहाना अरहतं, अरियपाय झायिनो, इतिवु. 79; अरियपञआयाति सुविसुद्धपाय, इतिवु. अट्ठ. 297. अरियपटिपदा स्त्री., कर्म. स./तत्पु. स. [आर्यप्रतिपत्], क. उत्तम या श्रेष्ठ मार्ग, ख. आर्यजनों द्वारा गृहीत मार्ग - इमानि अरियपटिपदानि पूरेन्तो, म. नि. अट्ट, (म.प.) 2.4; पाठा. पटिपदानि में लिङ्ग-विपर्यय, अरियपटिविद्ध त्रि.. तत्पु. स. [आर्यप्रतिविद्ध], बुद्धों एवं अर्हतों द्वारा गहराई तक प्रवेश कर खोजा गया - द्धानि नपुं., प्र. वि., ब. व. - अरियसच्चानीति अरियभावकरानि,
अरियपटिविद्धानि वा सच्चानि, अ. नि. अट्ठ. 2.158. अरियपथ पु., कर्म. स./तत्पु. स. [आर्यपथ]. क. उत्तम लोकोत्तर मार्ग, ख. बुद्धों एवं अर्हतों द्वारा गृहीत मार्ग, ग. आर्य बनाने वाला मार्ग - थे सप्त. वि., ए. व. - एसोहि धम्मो सुमुख, यं त्वं अरियपथे ठितो, जा. अट्ठ. 5.355; अरियपथे तिरियं निपतित्वा महाजनस्स अहिताय दुक्खाय पटिपन्नो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1.(2)201. अरियपरियेसनसुत्त नपुं.कुछ संस्करणों में म. नि. के एक सुत्त का शीर्षक, जिसमें भगवान् बुद्ध ने गृहत्याग के उपरान्त ज्ञान-प्राप्ति के लिये स्वयं द्वारा किये गए प्रयासों का तथा बोधिज्ञान की प्राप्ति आदि का वर्णन किया है, अनेक संस्करणों में इसी सुत्त को पासरासिसुत्त नाम दिया है, द्रष्ट. पासरासिसुत्त के अन्त., म. नि. 1.219-235; वित्थारो पन साट्ठकथानं अरियपरियेसनपबज्जसुत्तादीनं वसेन वेदितब्बो, ध. स. अट्ट, 82. अरियपरियेसना स्त्री., कर्म. स./तत्पु. स. [आर्यपर्येषणा], क. उत्तम पद या निर्वाण की खोज, ख. बुद्धों एवं अर्हतों आदि आर्यजनों द्वारा की जा रही शान्तपद की तलाश - ना प्र. वि., ब. व. - चतस्सो इमा, भिक्खवे, अरियपरियेसना, अ. नि. 1(2).284; - ना प्र. वि., ए. व. - अथ भगवा अयं तुम्हाकं परियेसना अरियपरियेसना नामा ति दस्सेतुं इमं देसनं आरभि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).73.
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