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अरहत्तफल
घटिकानि बन्धित्वा एकेन द्वीहि वा परिममियमानं यन्तं, सारत्थ. टी. 3.351. अरहति अरह का वर्त, प्र. पु., ए. व., द्वि. वि. में अन्त होने वाले नामों तथा निमि. कृ. के साथ प्रयुक्त [अर्हति], क. (सम्मान आदि को पाने के लिए) योग्य है, अधिकारी है, ख. (अन्य लोगों की) समानता पाने योग्य है, ग. म. पु. में, परामर्श या अनुरोध का सङ्केतक तथा 'चाहिए' अर्थ का प्रकाशक, घ. सक्षम है, पर्याप्त है - ते मारो वत्तुमरहति, सु. नि. 433; अपेतो दमसच्चेन, न सो कासावमरहति, ध. प. 9;-सि म. पु. ए. व. -- यथा खो त्वं आवुसो, पटिजानासि, अरहसि अनन्तजिनोति, महाव. 12; -- हामि उ. पु., ए. व. - तञ्चारहामि वत्तवे, जा. अट्ठ. 3.270; - हन्ति प्र. पु.. ब. व. - न इमे मम सरीरे उपयोगं अरहन्ति, ध. प. अट्ठ. 2.2; - हथ म. पु.. ब. व. - आम, महाराज, अरहथ भगवन्तं दव सा. वं. 34 (ना.); - हाम उ. पु., ब. व. - यथा मयमेव अरहाम तं समणं गोतम दस्सनाय उपसङ्कभितुं, म. नि. 2.385. अरहत्त' नपुं., अरहन्त की व्यु. को स्पष्ट करने के क्रम में प्रयुक्त, अरह का भाव. [अर्हत्व], योग्यता, सक्षमता, पात्रता - त्ता प. वि., ए. व. - तत्थ आरकत्ता अरीनं, अरानञ्च हतत्ता पच्चयादीनं अरहत्ता ... इमेहि ताव कारणेहि सो भगवा अरहन्ति वेदितब्बोति ....दी. नि. अट्ठ. 1.122-123; पारा. अट्ठ. 1.79; सु. नि. अट्ट. 2.147. अरहत्त नपुं.. अरहन्त का भाव. [अर्हत्व], अर्हत् की अवस्था, बुद्ध-चर्या के अनुयायी द्वारा प्राप्य चित्तविशुद्धि की सर्वोत्तम अवस्था, आस्रवों के क्षय के ज्ञान की स्थिति, अन्तिम आर्यफल की अवस्था - त्तं प्र. वि., ए. व. - अञआ तु अरहत्तं च, अभि. प. 436; विमुत्तिरतनं खो ... अरहत्तं वुच्चति, मि. प. 307; - त्तं द्वि. वि., ए. व. - पटिसम्भिदाहि अरहत्तं पापुणि, मि. प. 16; - त्ताय च. वि. ए. व. - भगवा अरहा चेव अरहत्ताय च धम्म देसेतीति, उदा. 76; - त्ता प. वि., ए. व. - तंपजाननो मग्गो मग्गसच्चन्ति चतुसच्चकम्मद्वानं अट्ठारसधातुवसेन... अरहत्ता मत्थक पापेत्वा ..., विभ. अट्ठ.67; - स्स ष. वि., ए. व. - भगवा अरहत्तस्स मच्छरायती ति, दी. नि. 3.5; अरहत्तस्सापि रागादीनं खयमत्तपसङ्गदोसापत्तितो, अभि. अव. 102; - त्ते सप्त. वि., ए. व. - तण्हक्खयरतोति अरहत्ते चेव निब्बाने च अभिरतो होति, ध. प. अट्ठ. 2.138; अरहत्ते वा सम्पक्खन्दति योगं करोति, मि. प. 33; - ग्गहण नपुं.. तत्पु. स. [अर्हत्वग्रहण],
अर्हत्व फल में स्थिति, अर्हत् की अवस्था की प्राप्ति - णं प्र. वि., ए. व. - अरहत्तग्गहणन्ति इदं विपस्सनाधुरं ध. प. अट्ठ. 1.5; -निकूट/कूट पु./नपुं.. अर्हत्व के फल को शीर्षस्थ बनाने वाली धर्मोपदेश-पद्धति, अर्हत्व फल में परिणत होने वाली धर्मदेशना - टेन तृ. वि., ए. व. - सत्था अरहत्तकूटेन देसनं निट्ठापेत्वा, जा. अट्ठ. 1.268%B अरहत्तनिकूटेनेव भगवा देसनं निट्ठापेसि. सु. नि. अट्ठ. 1.22; इमम्पि सुत्तं अरहत्तनिकूटेनेव देसेसि, सु. नि. अट्ठ. 2.282; - पटिवेध पु., तत्पु. स. [अर्हत्वप्रतिवेध], अर्हत्व का प्रतिवेधात्मक ज्ञानदर्शन, अर्हत अवस्था का आन्तरिक साक्षात्कार - धो प्र. वि., ए. व. - अरहत्तपटिवेधो नाम नत्थि, उदा. अट्ठ. 247; - परियाय पु., तत्पु. स. [अर्हत्वपर्याय], अर्हत्व को प्रकाशित करने वाली उपदेशपद्धति अथवा व्याख्यान-प्रकार - येहि तृ. वि., ब. व. - अरहत्तपरियायेहीति चतुसहिया कारणेहि अलङ्करित्वा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).234; - प्पत्त त्रि., तत्पु. स. [अर्हत्वप्राप्त], अर्हत्-अवस्था को प्राप्त कर चुका (साधक) - त्तो पु., प्र. वि., ए. व. - आयस्मा अनुरुद्धो अरहत्तप्पत्तो तायं..., अ. नि. 3(1).67; - त्ता ब. व. - अरहत्तप्पत्ता पन एकन्तविप्पसन्नाव होन्तीति, ध. प. अट्ट, 1.333; - स्स ष. वि., ए. व. - अरहत्तप्पत्तस्स सुखं होति, ध. प. अट्ठ 1.302; - त्तानं ष. वि., ब. व. - अरहत्तप्पत्तानं पन नेसं ....अ. नि. 2(1).29; - प्पत्ति स्त्री., तत्पु. स. [अर्हत्वप्राप्ति, अर्हत् अवस्था अथवा अर्हत् फल की प्राप्ति - एवं याव अरहत्तप्पत्ति, सु. नि. अट्ठ. 2.193; - तिं द्वि. वि., ए. व. - मम सन्तिके अरहत्तप्पत्तिं व्याकरोति, अ. नि. 1(2).181; - या च. वि., ए. व. - देसेति धम्म अरहत्तपत्तिया, अप. 2.126; - निट्ठ त्रि., ब. स. [अर्हत्वप्राप्तिनिष्ठ], अर्हत्व की प्राप्ति में परिणत होने वाला - टुं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - भिक्खुनो अरहत्तप्पत्तिनिट्ठ... सेनासनवत्तञ्च कथेन्तो, सु. नि. अट्ठ. 2.193. अरहत्तफल नपुं, तत्पु. स. [अर्हत्वफल], बुद्ध के आर्यमार्ग के पथिक द्वारा पाया जाने वाला चौथा और अन्तिम फल, अर्हत्व मार्ग पर चल रहे आर्य श्रावक द्वारा प्राप्य चरम फल, श्रमण-जीवन में प्राप्य चार आर्य फलों में से अन्तिम फल - लं प्र. वि., ए. व. - सोतापत्तिफलं सकदागामिफलं ...
अरहत्तफलं सुअत्तफलसमापत्ति... अप्पणिहितफलसमापत्ति, मि. प. 303; चत्तारि सामञफलानि - सोतापत्तिफलं, सकदागामिफलं, अनागामिफलं, अरहत्तफलं, दी. नि.
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