Book Title: Pali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Author(s): Ravindra Panth and Others
Publisher: Nav Nalanda Mahavihar

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Page 575
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अयमकचिवाल 548 अयाथाव फाले आदाय मुखं विक्खम्भेत्वा विवरित्वा रज्जवलं अयबलिसं खिपित्वा ..., जा. अट्ठ, 5.266; - सेहि तृ. वि., ब. व. - अथ ने पज्जलितेहि अयबलिसेहि उद्धरित्वा ...जा. अट्ठ. 6.128. अयमकचिवाल पु., लोहे के तारों का गुच्छा या जाली - लेहि तृ. वि., ब. व. - वालेहीति अयमकचिवालेहि वेठेत्वा अययन्तेन पीळयन्ति, जा. अट्ठ. 5.267. अयमुग्गर/अयोमुग्गर पु.. [अयस्मुद्गर], लोहे का मूसल, लोहे का हथौड़ा - रं द्वि. वि., ए. व. - सोण्डायपि कम्म करोतीति अयमुग्गरं वा खदिरमुसलं वा गहेत्वा ..., म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.92; - रे ब. व. - महन्ते अयोमुग्गरे गहेत्वा अञमचं आकोटेन्ति, पे. व. अट्ठ. 47; - रेहि तृ. वि., ब. व. - निप्पोथयन्ताति जलितेहि अयमग्गरेहि पहरन्ता, जा. अट्ठ. 5.267. अयमुसल पु., [अयस्मुसल], लोहे का मूसल या हथौड़ा - लेन तृ. वि., ए. व. - दीघासिलट्ठिया वा अयमुसलेन वा छेदनभेदनं ..., म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.92. अययन्त नपुं., [अयस्यन्त्र], लोहे का यन्त्र, लोहे की मशीन - न्तेन तृ. वि., ए.व. - वालेहीति अयमकचिवालेहि वेठेत्वा अययन्तेन पीळयन्ति, जा. अट्ठ. 5.267. अयस पु.. [अयश], अकीर्ति, बदनामी - सो प्र. वि., ए. व. - लाभो च अलाभो च यसो च अयसो च, निन्दा च. दी. नि. 3.206; लाभो अलाभो अयसो यसो च, जा. अट्ठ. 7.58; - सं द्वि. वि., ए. व. - वज्ज पिदहति अयसमपनेति यसमुपनेति, मि. प. 141; - साय च. वि., ए. व. - यसाय वा अयसाय वा, मि. प. 275; - से सप्त. वि., ए. व. - उप्पन्नुप्पन्ने वत्थुस्मिं अयसे पाकटे दोसे वित्थारिके, मि. प. 254. अयसंखलिका स्त्री., तत्पु. स. [अयशृङ्खलिका]. लोहे की जजीर - लिकं द्वि. वि., ए. व. - नङ्गलबद्धं अयसङ्घलिकं अयखाणुके बन्धेय्याथ, जा. अट्ठ. 4.74; - का ब. व. - नङ्गलबद्धा अयसङ्घलिका खाणुकेसु बन्धिंसु. जा. अट्ठ. 4.74. अयसाभिभूत त्रि., तत्पु. स. [अयशाभिभूत], अपकीर्ति या बदनामी से पीड़ित, असम्मानित - तो पु., प्र. वि., ए. व. - पाकटो च अयसाभिभूतो गामसतम्पि पविसित्वा, ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).153. अयसिङ्घाटक / अयो सिङ्घाटक/अयसङ्घाटक नपुं.. [अयश्शृङ्गाटक]. लोहे का अंकुश, लोहे की बी या भाला - कंप्र. वि., ए. व. - सेय्यथापि नाम परिसस्स अयोसिङ्घाटकं कण्ठे विलग्ग, म. नि. 2.62; - कानि ब. व. - तस्सानन्तरा महन्तानि अयसङ्घाटकानि निरन्तरं भूमियं ओदहिंस, ध, प. अट्ठ. 2.342; - केहि तृ. वि., ब. व. - वासिफरसु-कुद्दालनिखादन ... असिलोहदण्डककचखाणुक अयसिङ्घाटकेहि अत्थो, जा. अट्ठ. 5.40. अयसूचिमुख त्रि., ब. स. [अयस्सूचिमुख], लोहे की सुई जैसे मुख वाला - खा पु., प्र. वि., ब. व. - अयोमुखाति अयसूचिमुखा, जा. अट्ठ, 5.267. अयसूल/अयोसूल नपुं.. [अयःशूल], लोहे का खूटा, लोहे से बनी शूली - लं द्वि. वि., ए. व. - महातालक्खन्धपरिमाणं अयसूलं पच्छिमभित्तितो निक्खमित्वा, .... ध. प. अट्ठ. 1.86; - लेन तृ. वि., ए. व. - अयोसकुनाति अयसूलेन, स. नि. अट्ठ. 3.51; - लानि द्वि. वि., ब. व. - निरयपाला तालक्खन्धपमाणानि अयसूलानि आदित्तानि ... गहेत्वा ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).314; - लेहि तृ. वि., ब. क. - तिण्हेहि अयसूलेहि कोठूत्वा, जा. अट्ठ. 5.266; - समप्पित त्रि., [अयःशूलसमर्पित], लोहे की शूली पर रखा हुआ- तं पु., द्वि. वि., ए. व. - ... सन्धिपब्बेस अधिमत्तं अयसूलसमप्पितं विय तिट्ठति, स. नि. अट्ठ. 3.53. अयाच त्रि., Vयाच के सं. कृ. का निषे. [अयाच्य], याचना नहीं किए जाने योग्य, नहीं मांगे जाने योग्य - चं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - अयाचं याचते धनं, जा. अट्ठ, 6.304. अयाचक त्रि., [अयाचक], याचना न करने वाला, न मांगने वाला, समृद्ध - को पु., प्र. वि., ए. व. - यो पन अयाचको समिद्धो, सद्द. 2.366. अयाचित त्रि., Vयाच के भू. क. कृ. का निषे॰ [अयाचित, नहीं मांगा गया, वह, जिसकी याचना न की गई हो या जिसे नहीं कहा गया या पुकारा गया - तो पु., प्र. वि., ए. व. - अयं तात मया परलोकतो अनव्हितो अयाचितो, जा. अट्ठ. 3.142. अयाचितब्बरूप त्रि., ब. स. [अयाचितव्यरूप], याचना न किए जाने योग्य स्वरूप वाला - पं पु.. द्वि. वि., ए. व. - तं अयाचितबरूपं मय्ह देही ति याचति, जा. अट्ठ 6.304. अयाथाव त्रि., [अयथावत्], अयथार्थ, गलत - वं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - तुच्छ एतं, मुसा एतं ... अयाथावं एतान्ति, महानि. 213; - क त्रि., उपरिवत् - स्मिं नपुं., सप्त. वि., ए. व. - अयाथावकस्मिं याथावकान्ति गाहो .... महानि. 35; - अनिय्यानिक-अकुसलसंकप्प पु., कर्म. स., अयथार्थ, अकल्याणकारी एवं अकुशल संकल्प - प्पा प्र. वि., ए. व. - मिच्छासङ्कप्पाति अयाथावअनिय्यानिकअकुसलसङ्कप्पा, म. For Private and Personal Use Only

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