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अभिरोपेति
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अभिलिम्पति
आत्मने. - न दानाहं तया सद्धिं संवासमभिरोचये, जा. अट्ठ. 3.165. अभिरोपेति अभि + रुह का वर्त, प्र. पु., ए. व., प्रेर. [अभिरोपयति], शा. अ. पौधे रोपता है, पौधा लगाता है, ला. अ. क. अलङ्करण के रूप में धारण करता है या अपने ऊपर रखता है - पेहि अनु., म. पु., ए. व. - कासिकसुखुमानि धारय, अभिरोपेहि च मालवण्णकं थेरीगा. 379; अभिरोपेहीति मण्डनविभूसनं वा सरीरं आरोपय, थेरीगा. अट्ठ. 277; ला. अ. ख. उपहार के रूप में सामने रखता है या प्रस्तुत करता है, पूजा सामग्री के रूप में चढ़ाता है - यिं अद्य, उ. पु.. ए. व. - तिसकप्पसहस्सम्हि यं पुप्फमभिरोपयिं अप. 1.96; - पित त्रि., भू. क. कृ. - तं नपुं॰, प्र. वि., ए. व. - बरं मे बुद्धसेट्ठस्स, जाणम्हि अभिरोपितं, अप. 2.186. अभिलक्खित त्रि०, अभि + लक्ख का भू. क. कृ. [अभिलक्षित], जाना गया, चिह्नित किया गया, सङ्केतित, देखा गया - तो पु., प्र. वि., ए. व. - अज्ज अभिलक्खितो महाउपोसथदिवसो, जा. अट्ट, 4.2: - ता स्त्री., प्र. वि., ब. व. - यंनूनाहं या ता रत्तियो अभिजाता अभिलक्खिता, म. नि. 1.27; - तेसु पु., सप्त. वि., ब. व. - अातुच्छेनाति
अभिलक्खितेसु इस्सरजनगेहेसु .... स. नि. अट्ठ. 2.211; -- त्त नपुं॰, भाव. [अभिलक्षितत्व], सङ्केतित होना, अभिलक्षित होना, दृष्टिपथ में आ जाना - त्ता प. वि., ए. व. - तेसं अभिलक्खितत्ता अयं पदेसो कामावचरो त्वेव उच्चति,ध. स. अट्ठ. 108. अभिलङ्गति/अभिलङ्घति अभि + Vलङ्घ का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अभिलङ्घति], लांघ जाता है, ऊपर की ओर उठता या चढ़ता है - पुण्णचन्दमिथुनं पुब्बापरियेन गगनतलं अभिलङ्गती ति, दी. नि. अट्ठ. 2.189; - मानं वर्त. कृ., पु.. द्वि. वि., ए. व. - विसुद्ध गगनतलं अभिलङ्घमानं चन्दमण्डलं दिस्वा ..., जा. अट्ठ. 7.102. अभिलपीयति अभि + Vलप का वर्त.. प्र. पु., ए. व., कर्म. वा. [अभिलप्यते], कहा जाता है, उच्चारित किया जाता है, घोषित किया जाता है - उदीरियति अभिलपीयती ति अत्थो ति वदन्ति, सद्द. 2.543. अभिलम्बति अभि + Vलम्ब का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अभिलम्बति], सहारे खड़ा या टिका रहता है, दोनों ओर अवस्थित रहता है - न्ति ब. व. - उभतो अभिलम्बन्ति, दुग्गं वेतरणिं नदि, जा. अट्ठ. 5.261; - न्ता वर्त. कृ., पु.. प्र. वि., ब. व. - उभतो अभिलम्बन्ता, सोभयन्ति ममस्सम
अप. 1.12; - न्तं वर्त. कृ., पु.. वि. वि., ए.व. - पपातमभिलम्बन्तं, सम्पन्नफलधारिन, जा. अट्ठ. 5.64; - म्बिता स्त्री., भू. क. कृ., प्र. वि., ए. व., केवल स. उ. प. के रूप में, नीलदुमा., नीले वृक्ष की डाली पर लिपटी हुई या चिपकी हुई - सा सुत्तचा नीलदुमाभिलम्बिता, जा. अट्ठ. 5.402. अभिलसति अभि + Vलस का वर्त, प्र. पु., ए. व., कामना करता है, इच्छा करता है - न्तो वर्त. कृ., पु.. प्र. वि., ए. व. - कत्तुं अभिलसन्तो पि राजा एवं अचिन्तयि, चू, वं. 81.64. अमिलाप पु.. [अभिलाप]. कथन, उल्लेख नाम, अभिव्यक्ति, उक्ति- सङ्घा समा... नामधेय्यं निरुत्ति व्यञ्जनं अभिलापो, ध. स. 1314; - पे सप्त. वि., ए. व. - तस्सा अभिलापे तं सभावनिरुत्तिं सदं आरम्मणं कत्वा ..., विभ. अट्ठ. 366; -- नानत्त नपुं, अभिव्यक्ति की विविधता या विभिन्नता - त्तेन तृ. वि., ए. व. - नानज्झासयताय पन सत्तानं देसनाविलासेन अभिलापनानत्तेन देसनानानत्तं वेदितब्बं उदा. अट्ट. 48; - मत्त नपुं., केवल अभिव्यक्ति का एक तरीका - त्तं प्र. वि., ए. व. -. अभिलापमत्तमेव चेतं, अत्थतो पन पितामहायेव पितामहयुगं, सु. नि. अट्ठ.2.166; - मत्तभेद पु.. केवल अभिव्यक्ति या कथन का एक रूपान्तरण या प्रभेद - दो प्र. वि., ए. व. - एकं समयान्ति वा अभिलापमत्तभेदो एस, सब्बत्थ भुम्ममेव अत्थोति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).13. अभिलाव पु. [अभिलाव, काटना, कटाई, लवन - लवोभिलवो
लवनं, अभि. प. 770; पाठा. अभिलवो. अभिलास पु.. [अभिलाष], आकांक्षा, इच्छा, कामना, उत्कण्ठा, अनुराग - पिहा मनोरथो इच्छा भिलासो कामदोहळा, अभि. प. 163; केवल स. उ. प. के रूप में फातिकरणा., विमुत्ता., सजाता. के अन्त. द्रष्ट... अभिलासी त्रि., [अभिलाषिन्], कामना या इच्छा करने वाला, चाहने वाला, केवल स. उ. प. के रूप में - सककम्मामिलासिनो पु., प्र. वि., ब. व., अपने काम को पूरा करने की अभिलाषा रखने वाले - पटिपूजेन्ति पुलिनं. सककम्माभिलासिनो, अप. 2.65. अभिलित्त अभि + लिप का भू. क. कृ. [अभिलिप्त]. शा. अ. पूर्ण रूप से लीपा हुआ या पोता हुआ, ला. अ. अनुरक्त, आसक्त, लगावयुक्त - त्तो पु.. प्र. वि., ए. व. - लोको अभिलित्तो नाम भवति, नेत्ति. 13. अभिलिम्पति अभि + लिप का वर्त.. प्र. पु.. ए. व.. चिपका देता है, सटा देता है, शिकार को फंसाता है या उसे फंसाने
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