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अम्बपल्लवसङ्कास
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अम्बयागुदायक अम्बपन्तीहि परिक्खित्तो छायूदकसम्पन्नो..., वि. व. अट्ठ अम्बपिण्डिय पु., दो थेरों (स्थविरों) का नाम - यो प्र. वि.,
ए. व. - इत्थं सुदं आयस्मा अम्बपिण्डियो थेरो इमा गाथायो अम्बपल्लवसङ्कास त्रि., [आम्रपल्लवसङ्काश], आम के पल्लवों अभासित्थाति, अप. 1.264; 2.22. के समान - सं नपुं., द्वि. वि., ए. व. - अम्बपल्लवसङ्कासं, अम्बपेतवत्थु नपुं., पे. व. अट्ठ के एक खण्ड का शीर्षक, अंसे कत्वान चीवर थेरगा. 197; अम्बपल्लवसङ्कासं, अंसे पे. व. अट्ठ. 238-241. कत्वान चीवरन्ति अम्बपल्लवाकारं पवाळवण्णं चीवरं ... अम्बपेसिका स्त्री., [आम्रपेशिका], आम के फलों का रेसा उत्तरासङ्ग करित्वा, थेरगा. अट्ठ 1.348.
- यो प्र. वि., ब. व. - सूपे अम्बपेसिकायो पक्खित्ता होन्ति, अम्बपान नपुं.. [आम्रपान], आम के फलों से बना हुआ एक चूळव. 226. मादक पेय - नं प्र. वि., ए. व. - अम्बपानं जम्बुपानं अम्बपोतक पु.. [आम्रपोतक], आम का छोटा (तरुण) चोचपानं... फारुसकपानं, महाव. 322; अम्बपानन्ति आमेहि पौधा - कं द्वि. वि., ए. व. - अन्तमसो तदहुजातम्पि वा पक्केहि वा अम्बेहि कतपानं, महाव. अट्ठ. 361.
अम्बपोतकं उप्पाटेत्वा अरओ खिपापेसुंध. प. अट्ठ. 2.1183; अम्बपानक नपुं., उपरिवत् - कं द्वि. वि., ए. व. - सत्था --- स्स ष. वि., ए. व. - मधुरं अम्बपक्क... अम्बपोतकस्स
अम्बपानकं पिवित्वा कण्डं आह, ध, प. अट्ठ. 2.119. समन्ता उदककोडकं थिरं कत्वा बन्धति, म. नि. अट्ठ. अम्बपालक पु., [आम्रपालक], आम की रक्षा करने वाला - (मू.प.) 1(2).242. का प्र. वि., ब. व. - अम्बपालका भिक्खूनं अम्बफलं देन्ति, अम्बफल नपुं., [आम्रफल], आम का फल - लं द्वि. वि., पारा. 77.
ए. व. - ... राजूनं अम्बफलं पेसेन्तो अद्वितो अम्बपाली स्त्री., वैशाली की एक विश्वसुन्दरी गणिका - ली रुक्खनिब्बत्तनभयेन ..., जा. अट्ठ. 2.86; - लानि द्वि. वि. प्र. वि., ए. व. - अम्बपाली च गणिका अभिरूपा होति ब. व. - पक्खित्तानि अम्बफलानि कानिचि तापसा दस्सनीया पासादिका परमाय वण्णपोक्खरताय समन्नागता, गहिसु, पे. व. अट्ठ. 133; - लानं ष. वि., ब. व. - महाव. 356; - लि संबो., ए. व. - देहि, जे अम्बपालि, अम्बफलानं तित्तकभावं ञत्वा उय्यानपालो पलायि, जा. अम्हाकं एतं भत्तं सतसहस्सेना ति, महाव. 308; - लिवग्ग अट्ठ. 2.86. पु., स. नि. के सतिपट्ठानसुत्त संयुत्त का एक खण्ड, जिसमें __ अम्बफलिक पु., आमों का विक्रेता, आम बेचने वाला कुल 10 ऐसे सुत्तों का संग्रह है जिनका उपदेश वैशाली के - को प्र. वि., ए. व. - सालाकिको, तिन्दुकिको आम्रपाली के उद्यान में दिया गया था, स. नि. 3(1).220- अम्बफलिको ... नाळिकरिको इच्चेवमादि, क. व्या. 234; - लिवन नपुं., अम्बपाली का उद्यान या वन - ने 353. सप्त. वि., ए. व. - एक समयं भगवा वेसालियं विहरति अम्बबीज नपुं., [आम्रबीज], आम का बीज, आम की अम्बपालिवने, स. नि. 3(1).220.
गुठली या आंठी- जंवि. वि., ए. व. - मधुरम्बबीज रोपेत्वा अम्बपासाणवासी पु., श्रीलङ्का में अवस्थित एक विहार का समन्ता मरियादं बन्धित्वा ..., अ. नि. अट्ट. 3.8. निवासी - दक्खिणदिसाभागे... अम्बपासाणवासि-चित्तगुत्तत्थेरो अम्बमाल पु., श्रीलङ्का के रोहण में स्थित एक प्राचीन नाम पृथुज्जनकाले विचित्तपटिभाणो परिसावचरो..., म. वं. विहार - अम्बमालविहारादिविहारे कारयी बहू चू. वं. टी. 511(ना.).
45.55. अम्बपिण्डी स्त्री, प्र. वि., ए. व. [आम्रपिण्डी], आम के अम्बयाग पु.. [आम्रयाग], आम के फल का नैवेद्य, आम के फलों का गुच्छा, आम्रस्तवक - अम्बपिण्डी मया दिन्ना, फल का दान - गं द्वि. वि., ए. व. - सम्बद्ध यन्तं दिस्वान विपस्सिस्स महेसिनो, अप. 1.264; - ण्डिधर त्रि., आम के अम्बयागं अदासह, अप. 1.232. गुच्छों को धारण करने वाला - रो पु., प्र. वि., ए. व. - अम्बयागु स्त्री., [आम्रयवागू], आम का यवागू (दलिया) - एकेकस्मिं ठाने परिपक्कअम्बपिण्डिधरो अहोसि, ध. प. अट्ट. गुं द्वि. वि., ए. व. - पच्चेकबुद्ध दिस्वान, अम्बयागं 2.119; - ण्डिदण्डक पु., आम के गुच्छों का डण्ठल या अदासह, अप. 1.309. वृन्त - अम्बपिण्डिदण्डकानुवत्तकानि भवन्तीतिपि अत्थो, अ.. अम्बयागुदायक पु., एक स्थविर, जिसने बुद्ध को आम के नि. अट्ठ. 3.123.
दलिया का दान दिया था - को प्र. वि., ए. व. - इत्थं सुदं
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