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अम्बविमानवत्थु 542
अम्बिल अम्बविमानवत्थु नपुं.. क. वि. व. के एक खण्ड का शीर्षक, वि. 1359; - दायक पु., एक स्थविर (थेर) का नाम - को वि. व. अट्ठ. 165-167; ख. वि. व. के ही एक अन्य स्थल प्र. वि., ए. व. - आयस्मा अम्बाटकदायको थेरो इमा का शीर्षक, वि. व. अट्ठ. 259-261.
गाथायो अभासित्थाति, अप. 2.21; - पिट्ठ नपुं., आमड़ा का अम्बसक्कर पु., एक लिच्छवी राजा का नाम - रो प्र. वि., पेठा या पिष्टान्न - टुं प्र. वि., ए. व. - पिट्ठ पनसपिट्ठ ए. व. - भगवति जेतवने विहरन्ते अम्बसक्करो नाम लबुजपिट्ठ अम्बाटकपिढें सालपिढें धोतकतालपिट्ठञ्च ... लिच्छविराजा मिच्छादिट्टिको... वेसालियं रज्ज कारेसि, पे. पिट्ठानि यावकालिकानि, पाचि. अट्ठ. 92. व, अट्ठ. 188; - अम्बसक्खरपेतवत्थु नपुं., पे. व. का अम्बाटकवन नपुं., मच्छिकासण्ड में अवस्थित एक आमड़ा एक स्थल, पे. व. अट्ठ. 188-210.
के वृक्षों का वन, जिसे चित्तगृहपति ने भिक्षुसङ्घ को दान में अम्बसण्ड पु.. [आम्रषण्ड], आमों का उद्यान - ण्डानं ष. दे दिया था - नं प्र. वि., ए. व. - ... अय्यो सुधम्मो वि., ब. व. - सो किर गामो अम्बसण्डानं अविदूरे निविट्ठो. मच्छिकासण्डे, रमणीयं अम्बाटकवनं..., चूळव. 37. दी. नि. अट्ट. 2.260.
अम्बाटकाराम पु., आम्रातकवन में अवस्थित एक आराम - अम्बसण्डा पु.. राजगृह के एक ब्राह्मणग्राम का नाम, जो कि मे सप्त. वि., ए. व. - परे अम्बाटकारामे, वनसण्डम्हि आम्रवनों के समीप स्थित था - ... भगवा मगधेसु विहरति, भदियो, थेरगा. 466; - स्स ष. वि., ए. व. - सो किर पाचीनतो राजगहस्स अम्बसण्डा नाम ब्राह्मणगामो, दी. नि. अम्बाटकारामस्स पिद्विभागे होति, स. नि. अट्ठ. 3.130. 2.194; सो किर गामो अम्बसण्डानं अविदूरे निविट्ठो, तस्मा अम्बाटकिय पु.. एक स्थविर, जिसने आमड़ा वृक्ष की पूजा 'अम्बसण्डा त्वेव वुच्चति, दी. नि. अट्ठ. 2.260.
कर यह नाम पाया - यो प्र. वि., ए. व. - इत्थं सुदं अम्बसामणेर पु., श्रीलङ्का के सिलाकाल राजा का उपनाम आयस्मा अम्बाटकियो थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. - तं अम्बसामणेरादिसिलाकालो ति वोहरु, चू, वं. 41.27. 2.27. अम्बसामिक त्रि., आम के वन का स्वामी या अधिपति - को अम्बाराम पु.. [आम्राराम], आम का उद्यान, आमों का बाग पु., प्र. वि., ए. व. - तमेनं अम्बसामिको गहेत्वा ओ - मं द्वि. वि., ए. व. - अय्यो इमं अम्बाराम पविसित्वा मुहत्तं दस्सेय्य .... मि. प. 45.
विस्समित्वा ... गच्छथ अनुकम्पं उपादाया ति. वि. व. अट्ट, अम्बसिञ्चक त्रि., [आम्रसिञ्चक, आम के पेड़ों को सींचने वाला - को पु., प्र. वि., ए. व. - तञ्च दिस्वान आयन्तं, अम्बिल त्रि., [अम्ल], खट्टा, छ: रसों में से एक - लो पु.. अवोचं अम्बसिञ्चको, वि. व. 1153; अवोचं अहं तदा प्र. वि., ए. व. - कसावो नित्थियं तितो मधुरो लवणो इमे, अम्बसिञ्चको हुत्वाति योजना, वि. व. अट्ठ. 261. अम्बिलो कटुको चेति छ रसा तब्बती तिसु. अभि. प. 148; अम्बसेचन नपुं.. [आम्रसेचन], आम्रवृक्षों की सिंचाई - तथा -लं नपुं, प्र. वि., ए. व. - तं एकजातिकम्पि समानं हि एकेनोदकघटेन अम्बसेचनयतिनहापनादि भवति, सद्द. अम्बिलं अनम्बिलन्ति नाना वुच्चति, जा. अट्ठ. 4.11; 3.675-676.
परिणामवसेन परिवत्तित्वा अम्बिलं होति, तदे; - लेन तृ. अम्बा स्त्री., प्र. वि., ए. व. [अम्बा], माता, जननी - भोति । वि., ए. व. - तमस्स अम्बिलेन पहरित्वा तम्बमलं विय
अम्मा, भोति अन्ना, भोति अम्बा, भोति ताता, क. व्या. 115. पदुमपलासतो उदकबिन्दु विय विनिवत्तेत्वा, .... जा. अट्ठ. अम्बाटक पु.. [आम्रातक], आमड़ा का वृक्ष और उसका 3.303; - कजी स्त्री., खट्टी कांजी - जिय सप्त. वि.. फल - को प्र. वि., ए. व. - अम्बाटको पीतनको मधुको ए. व. - अविस्सासिकेन हि दिन्नं चतुमधुरम्प विस्सासिकेन तु मधुडुमो, अभि. प. 554; - का ब. व. - अम्बाटका बहू दिन्नं अम्बिलकञ्जियं न अग्घतीति, जा. अट्ठ. 3.124; - तत्थ, वल्लिकारफलानि च, अप. 1.381; - कं द्वि. वि., ए. कोट्ठास त्रि., अत्यधिक खट्टेपन से भरा हुआ, खट्टेपन की व. - पसन्नचित्तो सुमनो, अम्बाटकमपूजयिं अप. 2.27; प्रचुरता लिया हुआ - सेहि तृ. वि., ब. व. - अम्बिलग्गेहीति अम्बाटकं गहेत्वान, सयम्भुस्स अदासह, अप. 2.20; - स्स अम्बिलकोट्ठासेहि, स. नि. अट्ठ. 3.232; - लग्ग त्रि, ष. वि., ए. व. - सतावरि कसेरूनं, कन्दो अम्बाटकरस च. [अम्लाग्र]. उपरिवत् - ग्गं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - विन. वि. 1330; - ट्ठि नपुं०, तत्पु. स., आमड़ा की आठी अम्बिलग्गं वा मधुरग्गं वा तित्तकग्गं वा. म. नि. अठ्ठ. या गुठली - पनसम्बाटकट्ठीनि, सालट्ठि लबुजट्टि च, विन. (मू.प.) 1(1).146; - ग्गेहि तृ. वि., ब. व. - राजानं वा
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