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अम्बर 541
अम्बवापी अम्बयागुदायको थेरो इमा गाथायो अभासित्थाति, अप. मि. प. 246; - सण्ड [आम्रषण्ड], पु., आम के पेड़ों का 1.309.
वन - ण्डे सप्त. वि., ए. व. - अम्बवनेति अम्बर नपुं.. [अम्बर], क, आकाश, आदित्यपथ, तारापथ - तरुणअम्बरुक्खसण्डे, दी. नि. अठ्ठ 1.300. आकासो अम्बरं अब्भं ..., सद्द. 2.442; - रं प्र. वि., ए. व.. अम्बलकोटक/अम्बणकोट्ठक नपुं., आसनशाला, बैठक
छादितं होति अम्बरं, अप. 1.15; - रे सप्त. वि., ए. व. घर - के सप्त. वि., ए. व. - जेतवने विहरन्तो अम्बणकोट्टके - गच्छन्ति अम्बरे तदा, अप. 1.15; ख. वस्त्र, कपड़ा - आसनसालाय भत्तभुञ्जनसुनखं आरब्भ कथेसि, जा. अट्ठ. पटोचोलो साटको च, वासो वसनमंसुकं दुस्समच्छादनं 2.206. वत्थं चेलं वसनि अम्बरं सद्द. 2.353; - म्वरे सप्त. वि., ए. अम्बलट्ठिका स्त्री., [आम्रयष्टिका], तरुण आम्रवृक्ष, एक व... मणिसङ्गमुत्तारतनं, नानारत्ते च अम्बरे, जा. अट्ठ स्थान विशेष का नाम, जो राजगृह तथा नालन्दा के बीच 6.115.
अवस्थित था तथा जिसमें राजा का विश्रामगृह या राजागारक अम्बर/अम्बरवती स्त्री., उत्तरकुरु के एक नगर का नाम एवं एक उद्यान भी था - यं सप्त. वि., ए. व. - अत्थसमीप
- तियो प्र. वि., ब. व. - नवनवुतियो अम्बर-अम्बरवतियो गतो सूरियो ति अम्बलडिकायं राजागारके एकरत्तिवासं .... नाम राजधानी, दी. नि. 3.152.
उपगच्छि, दी. नि. अट्ठ. 1.41; - द्वार नपुं., अम्बलट्ठिका अम्बरंससनाम त्रि., ब. स., अम्बरंसस नाम वाले 35 चक्रवर्ती का प्रवेश-द्वार - रं द्वि. वि., ए. व. - ... बुद्धलीलाय राजा - मा पु., प्र. वि., ब. व. - अम्बरंससनामा ते, गच्छमानो अनुपुब्बेन अम्बलट्टिकाद्वारं पापुणित्वा सूरियं चक्कवत्ती महब्बला, अप. 1.169..
ओलोकेत्वा .... दी. नि. अट्ठ. 1.41; - पासाद पु., अनुराध अम्बरंसि पु., वाराणसी का एक प्राचीन राजा - तस्स पुत्तो पुर में लौहप्रासाद का एक भाग, अम्बलट्ठिका-प्रासाद - दो
अम्बरंसि नाम... अहोसी ति इमे सोळस राजानो बाराणसियमेव प्र. वि, ए. व. - अम्बलढिकपासादो तस्स मज्झे सुभो अहु, कताभिसेका ति दडब्बा, म. वं. टी. 100(ना.).
म. वं. 27.17; तस्स मज्झे ति तस्स पासादस्स मज्झे सुभो अम्बरस पु., [आम्ररस], आम के फलों का रस - सं द्वि. अम्बलहिकपासादो अहू ति सम्बन्धो, म. वं. टी. 462 (ना.). वि., ए. व. - सो ततो पट्ठाय थेरिया निबद्ध अम्बरसं दापेसि, अम्बलद्विकाराहुलोवादसुत्त नपुं., म. नि. के एक सुत्त का जा. अठ्ठ. 2.324; - दान नपुं, आम के रस का दान - नं शीर्षक, म. नि. 2.84-96. द्वि. वि., ए. व. - ... जेतवने विहरन्तो सारिपुत्तत्थेरस्स। अम्बललव्हय त्रि., ब. स., श्रीलङ्का के रोहण में निर्मित ... अम्बरसदानं आरब्भ कथेसि, जा. अट्ठ. 2.323.
अम्बलल नाम वाला एक प्रासाद - यं पु., वि. वि., ए. व. अम्बरावचर त्रि., [अम्बरावचर], आकाश में विचरण करने - निक्खमित्वा ततो ठानं गतो अम्बललव्हयं, चू. वं. 74.58. वाला, आकाश या गगन में सञ्चरण करने वाला - रा पु., अम्बवन नपुं.. [आम्रवन], आम का वन, ककुधा नदी के प्र. वि., ब. व. -- अम्बरावचरा सब्बे, वसन्ति अस्समे तदा, पास अवस्थित आमों का एक उद्यान - नं द्वि. वि., ए. व. अप. 1.399.
- उपसङ्कमित्वा ककुधं नदिं... पच्चुत्तरित्वा येन अम्बवनं अम्बरियविहारवासी त्रि., श्रीलङ्का के अम्बरिय-नामक विहार । तेनुपसङ्कमि, दी. नि. 2.102; – ने सप्त. वि., ए. व. -
का निवासी-नो पु, ष, वि., ए. व. - अम्बरियविहारवासिनो निसीदम्बवने रमे, याव कालप्पवेदना, थेरगा. 563; अम्बवनेति, पिङ्गलबुद्धरक्खितत्थेरस्स, सन्तिके .... ध. स. अट्ठ. 149. अम्बवने जीवकेन कतविहारे, थेरगा. अट्ठ. 2.166; - नानि अम्बरुक्ख पु.. [आम्रवृक्ष], आम का पेड़ - खो प्र. वि., ए. प्र. वि., ब. व. - रम्मानि च अम्बवनानि भागसो, जा. अट्ठ. व. - द्वारसमीपे तरुणअम्बरुक्खो अत्थि, दी. नि. अट्ठ 7.221. 1.41; - क्खं द्वि. वि., ए. व. - हत्थगतभावं ञत्वा अम्बरुक्खं अम्बवनव्ह त्रि., श्रीलङ्का में राजा कस्सप तृतीय के द्वारा ... फग्गववल्लियो च रोपेसि, जा. अट्ठ. 2.86; - क्खे द्वि. निर्मित अम्बवन नाम वाला प्रधान घर - व्हं पु., द्वि. वि., वि., ब. व. - रमणीयं आवासं कारेत्वा तस्स समन्ततो ए. व. -- तथा अम्बवनव्हं च पधानघरं उत्तमं.... चू. वं. 48.25. अम्बरुक्खे रोपेसि, वि. व. अट्ठ. 166; - मत्थक पु., आम अम्बवापी स्त्री., श्रीलङ्का में अवस्थित एक प्राचीन तालाब का के पेड़ का शिखर, आम्रवृक्ष की चोटी -- के सप्त. वि., ए. नाम - पिं द्वि. वि., ए. व. - बूककल्ले अम्बवापिं चूवं. व. - ... महतिमहन्ते अम्बरुक्खमत्थके फलपिण्डि भवेय्य, 46.20.
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