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अभिसपथ
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पाम अनु., उ. पु. ब. व. हन्द, नं अभिसपामा 'ति, म. नि. 2.369; न्तो वर्त. कृ., पु०, प्र. वि., ए. व. - इति तं गरहित्वा उदानि अभिसपन्तो... जा. अड्ड. 5.82 पथ म. पु. व. व. व्हे दोसो नत्थीति मम वदन्तस्सेव तुम्हे अभिसपथ, घ. प. अ. 1. 27 - पेय्य विधि, प्र. पु. ए. क. अत्तानं वा परं वा निरयेन वा ब्रह्मचरियेन वा अभिसपेय्य, पाचि 378 पि अद्य. प्र. पु. ए. व. तुम्हाकं कुलूपको तापसो में निरपराधं अभिसपि जा. अड्ड. 4349 पिंसु ब. च. सत ब्राह्मणिसयो असितं देवलं इसिं अभिसपिंसु, म. नि. 2.369; पिस्सति भवि., प्र. पु. ए. व. अयं मे अभिसपिस्सति जा. अनु. 5.154 क. अभिसपिस्यामि तन्ति दुत्ते त्वा पू. का. कृ. - अभिसपित्वा च पन कस्स नु खो उपरि अभिसपो, ध. प. अट्ठ. 1.28.
अभिसमयसंयुत्त नपुं. स. नि. के एक खण्ड का शीर्षक, स.नि. 1 ( 2 ) 119-124.
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पिस्सामि उ. पु. ए. घ. प. अ. 1.27 -
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अभिसमयसह पु.. अभिसमय का शब्द या ध्वनि दस्स घ वि. ए.व. समयसदस्स अत्युद्धारे अभिसमयसदस्स गहणे कारणं वुत्तनयेनेव वेदितब्ब, उदा. अड्ड॰ 17.
अमिसपथ पु. अभिशाप थो प्र. कि. ए. व. सपर्धा अभिसमयहेतु पु. प्र. वि. ए. व. अभिसमय का हेतु या अभिसपथो अभिसपितो सपनको, सद्द 2.403.
कारण एवमेव खो महाराज, तस्स तेन दोसेन अभिसमयहेतु
अभिसपन नपुं., अभिशाप एतं ते परलोकस्मिं
समुच्छिन्नो, मि. प. 239. अमिसमागच्छति अभि सं आ + गम का वर्त., प्र. पु. ए. व. [ अभिसमागच्छति] यथार्थबोध के लिए आता है, समझने के लिए आता है, उद्देश्य विशेष के साथ आता है। ति अभिसमेतीति आणेन अभिसमागच्छति स. नि. अट्ठ. 2.36; गन्त्वा पू. का. कृ. अभिसमेच्चाति अभिसमागन्त्वा, खु. पा. अड. 191. अभिसमाचार पु. अभिसमाचार का सं. रू० [दौ. सं. अभिसमाचार ], विशिष्ट मार्गशील एवं फलशील, आचरणसम्बन्धी विशिष्ट वचन, आचरण से सम्बद्ध विशिष्ट या अतिरिक्त नियम रो प्र. वि., ए. व. - अधिको समाचारो अभिसमाचारो विसुद्धि महाटी 1.30: अघिसीलसिक्खापरियापन्नत्ता अभिविसिद्धो समाचारोति अभिसमाचारोति आह उत्तमसमाचारोति विसुद्धि. महाटी. 1.31; - रं द्वि. वि. ए. व. - अभिसमाचारं वा आरम्भ पञ्ञत्तं आभिसमाचारिक विसुद्धि. 1.12. आभिसमाचारिक 1. त्रि. [ बौ. सं. आभिसमाचारिक ], शा. अ. उत्तम आचरण, उत्तम आचरण से सम्बद्ध; ला. अ. क. सामान्य उदात्त परम्परा से चला आ रहा (धर्म). - कं पु०, द्वि. वि., ए. व. आरज्ञिको सङ्घ विहरन्तो आभिसमाचारिकम्पि धम्मं न जानाति, म. नि. 2.143; आभिसमाचारिकम्पि धम्मन्ति अभिसमाचारिक वत्तपटिपत्तिमत्तम्पि. म. नि. अड. (म.प.) 2.131 ला.
अभिसपनवसेन कतं पापकम्मं, पे, व अट्ठ. 126. अभिसमय पु., [बौ. सं. अभिसमय], क. बोध, चार आर्यसत्यों का यथार्थ बोध या यथाभूत प्रतिवेध सम्यक दृष्टि यो प्र. सच्चानं अभिसमयो, एतं समणस्स पतिरूपं, पु. ए. व. थेरगा. 593; सच्चानं अभिसमयोति दुक्खादीनं अरियसच्चानं पटिवेधो, थेरगा. अट्ठ. 2.179; - यं द्वि. वि., ए. व. सह दोमनस्सेन चतुन्न अरियसच्चान अभिसमयं वदामि. स. नि. 3(2).503 येन तृ. वि. ए. व. चत्तारि सच्चानि एकपटिवेधेनेव पटिविज्झति एकाभिसमयेन अभिसमेति, म. नि. अ. ( मू.प.) 1(1).79 याय च. वि. ए. व. सब्बे ते चतुन्नं अरियसच्चानं यथाभूतं अभिरामयाय... स. नि. 3(2) 479, स. उ. प. के रूप में अत्था, अनुपुब्बा, अभिरोपना, एका., किच्चा, चतुसच्चा, दस्सना, परिज्ञा०, पहाणा०, फस्सा, भावना, महाजना, माना, सच्चा, सच्छिकिरिया के अन्त. द्रष्ट..
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अभिसमयकथा स्त्री पटि म. के एक खण्ड का शीर्षक पटि० म० 384-387. अभिसमयजाति स्त्री यथार्थबोध युक्त जन्म तियं सप्त वि. ए. व. पनरस पच्छिमे भवे अभिसमयजातियं मग्ग आरम्भ सतिसम्मोसो हेस्सति मि. प. 268. अभिसमय पु.. [ अभिसमयार्थ] यथार्थबोध का आशय या अर्थ - ट्ठो प्र. वि., ए. व. - अभिसमयट्टो इमेहि .... आकारेहि
आमिसमाचारिक
अभिसमयद्वेन चत्तारि सच्चानि एकसङ्ग्रहितानि पटि. म.
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अमिसमयन्तरायकर त्र अभिसयम या यथार्थबोध में कि.. न (अन्तराय) लाने वाला यथार्थबोध में विघ्नकारक कर नपुं. प्र. वि. ए. व. अजानन्तेनपि कतं पापं अभिसमयन्तरायकर होति. मि. प. 239 पञ्ह पु. मि. प. के एक खण्ड का शीर्षक, मि. प. 238-240. अमिसमयवग्ग पु. स. नि. के एक खण्ड का शीर्षक, स. f. 3(2).518-523.
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