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अभिसम्मत
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अभिसिञ्चति
अभिसम्भवित्वा, सु. नि. 52; ख. - अभिसम्भुणाति उपरिवत्, पापुणाति के मि. सा. पर निर्मित, पूरा कर देता है, सिद्ध कर देता है, प्राप्त करता है, लाभ पाता है - न किञ्चि अत्थं अभिसम्भुणाति, पारा. अट्ठ. 1.3; ... सीहळदीपतो अञदीपवासिनो भिक्खुगणस्स किञ्चि अत्थं पयोजनं यस्मा नाभिसम्भुणाति न सम्पादेति, न साधेति, सारस्थ. टी. 1.18; - णन्ति प्र. पु., ब. क. - देवा नानुभवन्ति दस्सनायाति .... दट्टु नानुभवन्ति न अभिसम्भुणन्ति न सक्कोन्ति .... उदा.
अट्ठ. 132. अभिसम्मत 1. त्रि., अभि + सं + मन का भू. क. कृ. [अभिसम्मत], अनुमोदित, सत्कृत, सम्मानित - तो पु., प्र. वि., ए. व. - रो अन्तेपुरे आसिं, गोपको अभिसम्मतो, अप. 1.185; 2. क. पु., एक यक्ष का नाम - देवेहि ठपितो यक्खो, अभिसम्मतनामको, अप. 1.70; ख. पु., एक चक्रवर्ती राजा का नाम - इतो तेसहिकप्पम्हि अभिसम्मतनामको,
सत्तरतनसम्पन्नो चक्कवत्ती महब्बलो, अप. 1.123. अभिसर पु., [अभिसर], साथी, अङ्गरक्षक, अनुगामी, अनुचर - रेन तृ. वि., ए. व. - न मे अभिसरेनत्थो, नगरेन धनेन वा, जा. अट्ठ. 5.369; तत्थ अभिसरेनाति आरक्खपरिवारेन, जा. अट्ठ. 5.370. अभिसरण नपुं, केवल स. उ. प. के रूप में प्राप्त [अभिशरण].
शरण या आश्रय, तण्हाभिसरण आदि के अन्त. द्रष्ट.. अभिसरणता स्त्री., भाव., किसी के आश्रय में जाना, किसी के समीप मिलने के लिए पहुँचना - ताय तृ. वि., ए. व. - ... अभिसरणताय अभिसारिका नाम हुत्वा एकिका अदुतिया गावुतद्विगावुतमत्तं दीघं अद्धानं गच्छतु, जा. अट्ठ. 3.119. अभिसल्लेखन्ति अभि + सं + लिख का वर्त., प्र. पु., ब. व., किसी को विशिष्ट रूप से उल्लिखित करती हैं, किसी को अधिक महत्व देती हैं- अभिसल्लेखन्तीति अभिसल्लेखिका, अ. नि. अट्ठ. 3.255. अभिसल्लेखिक त्रि., अत्यन्त कठोर संयम पर विशेष बल देने वाला/वाली - का स्त्री, प्र. पु., ए. व. - ... यायं कथा अभिसल्लेखिका चेतोविवरणसप्पाया, अ. नि. 3(1).172; अभिसल्लेखिकाति अतिविय किलेसानं सल्लेखनी. उदा. अट्ठ. 183. अभिसाधेति अभि + (साध का वर्तः, प्र. पु., ए. व. [अभिसाधयति], कार्यान्वित करता है, इन्द्रजाल के द्वारा उपलब्ध कर देता है - न्ति वर्त., प्र. पु., ब. व. - ते इमेहि पयोगेहि सामञ्जत्थमभिसाधेन्ति, मि. प. 246; - धये
विधि, प्र पू. ए. व. - सुधारितो सनिक्खित्तो सब्बत्थमभिसाधये, जा. अट्ठ. 7.23. अभिसपति वर्त., म. पु., ए. व., अभिशाप देता है, आक्रोश प्रकट करता है, कोसता है - ... निरयेन वा ब्रह्मचरियेन वा
अभिसपति, पाचि. 379; - पिस्सति भवि०, प्र. पु., ए. व. - ... ब्रह्मचरियेनपि अभिसपिस्सति, पाचि. 378; - पेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - ... ब्रह्मचरियेन वा अभिसपेय्य,
पाचित्तिय्यन्ति, पाचि. 378. अभिसाप पु., [अभिशाप], शाप, कोसना, गाली या अपभाषण का शब्द, आक्रोश - पो प्र. वि., ए. व. - अभिसापोय, भिक्खवे, लोकस्मि-पिण्डोलो विचरसि पत्तपाणी ति, इतिवु. 64; अभिसापोति अक्कोसो, इतिवु. अट्ठ. 256, अभिसप्पित/अभिसापित त्रि., अभि + Vसप का भू. क. कृ. [अभिशापित], अभिशप्त, अभिशाप पाया हुआ - ते नपुं., सप्त. वि., ए. व. - पयोगे दुक्कट वुत्तं, पाचित्ति
अभिसप्पिते, उत्त. वि. 214. अभिसापयिं अभि + सप के प्रेर. का अद्य, उ. पु., ए. व., अभिशाप दिया, आक्रोश प्रकट किया - विमुत्तचित्तं कुपिता, भिक्खुनि अभिसापयिं, थेरीगा. अठ्ठ. 237. अभिसाम पु., एक चक्रवर्ती राजा का नाम - इतो पन्नरसे कप्पे अभिसामसमव्हयो, सत्तरतनसम्पन्नो चक्कवत्ती महब्बलो, अप. 1.229. अभिसारये अभि + सर के प्रेर. का विधि., प्र. पु., ए. व. [अभिस्मारयेत्], उलाहना दे, भत्सर्ना करे, डाँटे, निन्दा करे - अब्भक्खाति अभूतेन, अलिकेनाभिसारये, जा. अट्ठ. 6.207. अभिसारिका/अभिसारिया स्त्री., [अभिसारिका], वह स्त्री,
जो अपने प्रिय से मिलने को जाती है, प्रिय के द्वारा नियत स्थान की ओर जाने वाली - का प्र. वि., ए. व. - ... अभिसरणताय अभिसारिका नाम हुत्वा एकिका अदुतिया गावुतद्विगावुतमत्तं दीघं अद्धानं गच्छतु, जा. अट्ठ. 3.119; 8 वित्थिनी तु संकेतं याति या साभिसारिका, अभि. प. 232. अभिसिञ्चति अभि सिच का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अभिसिञ्चति], शा. अ. चारों ओर छिड़कता है, पानी के छीटें देता है, ला. अ. शान्त करता है, भरपूर कर देता है, सन्तुष्ट करता है, राज्यतिलक करता है, राजा को सिंहासन पर प्रतिष्ठित कराता है - यथा महाराज, कोचि अयुत्तो अप्पत्तो... कुजातिको खत्तियाभिसेकेन अभिसिञ्चति, मि. प. 323; अहं पण्डितो ति अभिसिञ्चति, सु. नि. अट्ठ. 2.248; - न्ति ब. व. - ततो पट्ठाय किर यावज्जतना राजानो...
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