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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 495 अभिमद्दन 1(2).279; - हे विधि., प्र. पु.. ए. व. - नाभिहरे नाभिमद्दे न वाचं पयुतं भणे, अ. नि. 1(1).229; - द्दथ अद्य., प्र. पु., ए. व. - एवं विहरमानं म, मच्चुराजाभिमद्दथ, अप. 2.79. अभिमद्दन नपुं, अभि + मद्द का क्रि. ना. [अभिमर्दन], रगड़ना, कुचलना, दमन - नं द्वि. वि., ए. व. - सो हि पुरिसो विय... न पुंसेति अभिमदनं कातुं न सक्कोतीति नपुंसकोति वुच्चति, सद्द. 2.566; - द्दने सप्त. वि., ए. व. - पुस अभिमद्दने नकारो निग्गहीतत्थं, सद्द. 2.566. अभिमद्दित त्रि०, अभि + vमद्द का भू. क. कृ. [अभिमर्दित], कुचला हुआ, दमन किया हुआ, सम्मर्दित, रगड़ा हुआ - तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - ताव मनोरमं बिम्ब, जराय अभिमद्दितं. स. नि. 3(2).293. अभिमन त्रि., [अभिमनस], वह, जो किसी की ओर अपने मन को किये हुए हो, किसी की ओर अभिमुख मन वाला - नो पु., - दुक्खा हि कामा कटुका महब्भया, निब्बानमेवाभिमनो चरिस्सं. थेरगा. 1125; निब्बानमेवाभिमनो चरिस्सं तस्मा निब्बानमेव उद्दिस्स अभिमखचित्तो विहरिस्सं. थेरगा. अट्ठ. 2.399. अभिमनाप त्रि., अतीव सुन्दर, रमणीय, रोचक, प्रीतिकर, सुखद, मनोहर - पेन पु./नपुं., तृ. वि., ए. व. - अभिक्कन्तेनाति अतिमनापेन, अभिरूपेनाति अत्थो, पे. व. अट्ठ. 60; - तर त्रि., तुल., विशे०, अपेक्षाकृत अधिक मनभावन - रं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अभिक्कन्ततरन्ति अभिमनापतरं अतिसेहतरन्ति, दी. नि. अट्ठ. 1.141. अभिमन्थति/अभिमत्थति अभि + मन्थ का वर्त.. प्र. पु.. ए. व. [अभिमन्थति, अभिमथ्नाति], शा. अ. रगड़ देता है, कुचल देता है, पीस देता है, ला. अ. पीड़ित करता है, उत्पीड़ित करता है, विनष्ट करता है - अभिमत्थति दुम्मेधं वजिरंवस्ममयं मणि ति, ध. प. 161; अभिमत्थति कन्तति विद्धसेतीति, ध. प. अट्ठ. 2.84; - त्थथ म. पु., ए. व. -- बाला कुमुदनाळेहि, पब्बतं अभिमत्थथ, स. नि. 1(1).149; - त्थं वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - स्वस्स गोमयचुण्णानि अभिमत्थं तिणानि च जा. अट्ठ.6.200; अभिमत्थन्ति हत्थेहि घंसित्वा आकिरन्तो..., जा. अट्ठ. 6.201; - न्थेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - बलवा पुरिसो तिण्हेन सिखरेन मुद्धनि अभिमन्थेय्य, म. नि. 1.312; - त्थियमानो भा. वा., वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - मत्थको सिखरेन अभिमत्थियमानो विय जातो, जा. अट्ठ. 4.413; - मन्थेन्तो प्रेर., वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व., पूर्ण शक्ति लगाकर मथ रहा या रगड़ अभिमुखं रहा - अमु अल्लं कहूँ ... उत्तरारणिं आदाय अभिमन्थेन्तो अग्गिं अभिनिब्बत्तेय्य, म. नि. 2.437. अभिमान पु.. [अभिमान], क. दर्प, अहङ्कार, घमण्ड, गर्व ख भ्रान्त धारणा - गब्बो भिमानो हङ्कारो, अभि. प. 171; - नेन तृ. वि., ए. व. - अभिवदतीति अभिमानेन उपवदति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.16; - वसीकत त्रि., प्र. वि., ए. व. [अभिमानवशीकृत], घमण्ड या अभिमान के वश में रहने वाला - ता पु.. प्र. वि., ब. व. - पदुट्ठमनसङ्कप्पा अभिमानवसीकता, चू. वं. 74; 135. अभिमानी त्रि., [अभिमानिन] घमण्डी, अहङ्कारी, हेकड़ी भरने वाला, अक्खड़, महत्त्वाकांक्षी - ततो अभिमानी सेनानी सेनं सो तत्थ पेसयि, चू, वं. 57.55;-निनो ब. व. - पधानामच्चसामन्तभटादिस्वभिमानिनो, चू. वं. 66.142. अभिमार' पु., बुद्ध की हत्या का प्रयास करने वाला, बुद्ध का वधिक या गुप्तघाती - रे द्वि. वि.. ब. व., गुप्तघातियों या छलघातियों को - अभिमारे पेसेत्वा धनपालं मुञ्चापेत्वा .... दी. नि. अट्ठ. 1.127; - पयोजन नपुं.. गुप्तघाती का प्रयोजन - ना प. वि., ए. व. - देवदत्तस्स वत्थु याव अभिभारप्पयोजना खण्डहालजातके आविभविस्सति, जा. अट्ठ. 1.147. अभिमार पु., मार की एक उपाधि - खेरभेरोरभिमारभेखे, खेरभेरेखि भेखे खे, जिना. 98. अभिमुख त्रि., [अभिमुख], वह, जो किसी की ओर मुख किये हुए हो, की ओर, किसी की ओर मुड़ा हुआ, सामने क. द्वि. वि. में अन्त होने वाले नामपद के साथ अन्वित - खो पु., प्र. वि., ए. व. - गिरिमारञ्जरं पतीति आरञ्जरं नाम गिरि अभिमुखो हुत्वा .... जा. अट्ठ. 7.244; ख. प. वि. में अन्त होने वाले पद के साथ अन्वित- खं नपुं., प्र. वि., ए. व. - एकदिवसेनेव देवगणं अत्तनो अभिमुखमकासि. म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.225; - खा पु.. प्र. वि., ब. क. - नाभिजवन्तीति न सुमुखभावेन अभिमुखा जवन्ति, सु. नि. अट्ठ. 2.181; स. उ. प. के रूप में अन्तोगेहा., अन्तोविहारा., अस्समा., आगतमग्गा., आरम्मणा., आरामा., उत्तरदिसा., उत्तरा., उय्याना., कम्मट्ठाना., कामा. आदि के अन्त. द्रष्ट.. अभिमुखं निपा., [अभिमुखम्], आगे की ओर, किसी दिशा में, के सामने, की उपस्थिति में, के निकट - तदा पन बाराणसिरओ मत्तवारणेपि अभिमुखं आगच्छन्ते ..., जा. अट्ठ. 1.255; स. उ. प. के रूप में आघातना.. आपणा., उत्तरा.. गगनतला., पुरत्था., भूमितला. तथा सिविरट्ठा. के अन्त. द्रष्ट.. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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