________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अप्पत्वा
424
अप्पदुक्खेन वुच्चति, सद्द. 1.79; - तब्ब त्रि., प + आप के सं. कृ. अप्पदक्खिणग्गाही त्रि., [अप्रदक्षिणग्राहिन्], उचित का निषे. [अप्राप्तव्य], प्राप्त न करने योग्य, नहीं पाने योग्य सम्मानभाव के साथ ग्रहण न करने वाला, शिक्षा को ठीक - अनभिसम्भवनीयोति अपत्तब्बो, न तं देवा तावतिंसा पस्सन्तीति से ग्रहण न करने वाला - यथानुसिटुं अप्पटिपज्जनतो अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 2.209; - मानस त्रि.. ब. स. पदक्षिणेन अनुसासनिं न गण्हातीति अप्पदविखणग्गाही [अप्राप्तमानस], शा. अ. वह, जिसके मन की इच्छाएं पूरी अनुसासनिं, पारा. अट्ठ. 2.179; हम्मेहि समन्नागतो अक्खमो नहीं हुई हों, - सा पु., प्र. वि., ब. व. - येपि ते अप्पदक्खिणग्गाही अनुसास,नें पारा. 278; म. नि. 1.133; सिविसेट्ठस्स, दायादापत्तमानसा, जा. अट्ठ. 7.369; ओवदियमानो दुब्बचो अहोसि अक्खमो अप्पदक्खिणग्गाही दायादाअपत्तमानसा असम्पुण्णमनोरथा हुत्वा, तदे. ला. अनुसासनि, जा. अट्ठ. 3.426. अ. स्रोतापन्न, सकृदागामी और अनागामी अवस्थों में स्थित अप्पदस्स त्रि., [अल्पदृक], सीमित ज्ञान रखने वाला, कम व्यक्ति, जिसे अभी तक अर्हत के चित्त की पूर्ण विशुद्धि नहीं सूझबूझ वाला, दुर्बल अन्तर्दृष्टि वाला, - स्से पु.. द्वि. मिली है, - सो पु.. प्र. वि., ए. व. - अप्पत्तमानसो सेक्खो , वि., ब. व. - एवं पहं अप्पदस्से पहाय, महोदधिं हंसोरिव कालं कयिरा जनेसुताति, स. नि. 1(1).142; सेक्खो अज्झपत्तो, सु. नि. 1140; चूळनि. 19; 190; अप्पदरसे अप्पत्तमानसो अनुत्तरं योगक्खेम पत्थयमानो विहरति, म. पहायाति यो च बावरी बाह्मणो, चूळनि. 189.. नि. 1.5; - सानं पु., ष. वि., ए. व. - उभतो कोटिको एसो अप्पदान नपुं., पदान का निषे. [अप्रदान], प्रदान नहीं पहो, नेसो विसयो अप्पत्तमानसानं मि. प. 107; -- त्तारहत्त करना, नहीं देना, स्वीकृति या अनुमति नहीं देना - तस्स त्रि., ब. स. [अप्राप्तार्हत्व], अर्हत अवस्था में नहीं पहुंचा हुआ, याथावलक्खणप्पटिवेधनिवारणेन, आणप्पवत्तिया चेत्थ शैक्ष्य - तेन अप्पत्तारहत्तोति कुत्तं होति. म. नि. अट्ठ अप्पदानेन, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).233; उक्कण्ठितुं (मू.प.) 1(1)45; अप्पत्तमानसोति अप्पत्तअरहत्तो, स. नि. अट्ठ. अप्पदानतो सहायटेन दुतिया, ध. स. अट्ठ. 390. 1.162.
अप्पदालित त्रि.. प+vदल के प्रेर. के भू. क. कृ. का निषे. अप्पत्वा प + vआप के पू. का. कृ. का निषे. [अप्राप्य], नहीं । [अप्रदालित], भग्न न किया हुआ, टुकड़े-टुकड़े नहीं किया प्राप्त करके, नहीं पहुंच कर - न च अप्पत्वा दुक्खन्तं, हुआ, - पुब्ब त्रि., ब. स. [अप्रदालितपूर्व], पहले भग्न या विस्सासं एय्य पण्डितो, थेरगा. 585; वस्ससतंगत्वा अप्पत्वाव नष्ट नहीं किया हुआ, अभी तक भग्न नहीं किया गया- सो लोकस्स अन्तं अन्तराव कालङ्कतो, स. नि. 1(1).76; मम सतिसम्बोज्ाङ्ग भावितेन चित्तेन अनिबिद्धपब्बं अप्पदालितपुब्ध पुत्तस्स बोधितले बुद्धत्तं अप्पत्वा परिनिब्बानं नाम नत्थी ति, लोभक्खन्धं निबिज्झति, स. नि. 3(1).107... जा. अट्ठ. 4.45.
अप्पदीप त्रि., पदीप का निषे., ब. स. [अप्रदीप]. दीपक अप्पत्थ पु.. तत्पु. स. [अल्पार्थ], अप्प (अल्प) शब्द का अर्थ से रहित, बिना प्रदीप का, अप्रकाशित, प्रकाश-विहीन - - सम्मा भुस सहाप्पत्थाभिमुखत्थेसु सङ्गते, अभि. प. 1170; भिक्खुनी सत्तन्धकारे अप्पदीपे पुरिसेन सद्धि एकेनेका - वाचक त्रि., तत्पु. स. [अल्पार्थवाचक]. अल्पता के अर्थ । सन्तितिपि, सल्लपतिपीति, पाचि. 366; अप्पदीपेति को कहने वाला - सकदागामिमग्गचित्तन्ति आदिस पन पदीपचन्दसूरियअग्गीसु एकेनापि अनोभासिते पाचि. अट्ठ. 191. तनुसद्दो अप्पत्थवाचको, सद्द. 2.506.
__ अप्पदुक्खविहारी त्रि., [अल्पदुःखविहारिन्], 1.कम या थोड़े अपत्थाम/अप्पथाम त्रि.. ब. स. [अल्पस्थामन्]. कम से दुःख के साथ जीवन बिता रहा, 2 थोड़े से पापकर्म के बल वाला, स्वल्प शक्ति वाला, दुर्बल, - मा' स्त्री.. प्र. वि., कारण भी दुःख के साथ जी रहा - एकच्चो पुग्गलो ... ए. व. - दुब्बलाति अप्पथामा, जा. अट्ठ. 7.153; - मा' पु., परित्तो अप्पातुमो अप्पदुक्खविहारी, अ. नि. 1(1).282; प्र. वि., ब. व. - हंसा सकजातिकानं मंसं खादित्वा अप्पथामा अप्पदुक्खविहारीति अप्पकेनपि पापेन दुक्खविहारी, अ. नि. जाता, जा. अट्ठ. 5.467; - क त्रि०, अप्पत्थाम से व्यु., अठ्ठ. 2.218; एकच्चं तपस्सिं अप्पदुक्खविहारि परसामि उपरिवत् - को पु., प्र. वि., ए. व. - अक्कन्दति परोदति, । दिब्बेन चक्खुना विसुद्धेन ... निरयं उपपन्नं दी. नि. 1.146. दुबलो अप्पथामको, स. नि. 2(2).204; - कं पु.. द्वि. वि., अप्पदुक्खेन तृ. वि., प्रतिरू. निपा., क्रि. वि. [अल्पदुःखेन]. ए. व. - अबलं पुग्गलं दुब्बलं अप्पबलं अप्पथामकं हीन कम दुःख के साथ, कम कठिनाई के साथ - अप्पकसिरेनाति निहीनं, महानि. 9.
अप्पदुक्खेन, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).310.
For Private and Personal Use Only