________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभिनिरोपित
487
अभिनिवेस
अभिनिरोपित त्रि., अभि + नि + रुह के प्रेर. का भू. क. कृ., किसी पर जड़ा हुआ या बैठाया हुआ, किसी पर रखा हुआ - त्त नपुं, भाव., अभिनिरोपित या आबद्ध रहना - त्ता प. वि., ए. व. - अभिनिरोपितत्ता... विआणचरिया गन्धेस. पटि. म. 73; अभिनिरोपितत्ताति रूपारम्मणं अभिरुळहत्ता, पटि. म. अट्ठ. 1.241. अभिनिरोपेति अभि + नि + रुह का वर्त, प्र. पु., ए. व., प्रेर. [अभिनिरोपयति], चित्त को जमा देता है, लगा देता है या बैठा देता है - (चित्त को) प्रतिष्ठापित कर देता है -- आरम्मणे चित्तं अभिनिरोपेति पतिद्वापेतीति चेतसो
अभिनिरोपना, ध. स. अट्ठ. 187; आरम्मणं चित्तं अभिनिरोपेतीति वितक्को, उदा. अट्ठ. 177; सम्पयत्तधम्मे च सम्मा अभिनिरोपेति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).112. अभिनिलीयि अभि + नि + Vली का अद्य, प्र. पु., ए. व. [अभ्यनिलीयत], अपने को छिपाया, प्रच्छन्न होकर पड़ा रहा - पलायित्वा ... अभिनिलीयि सो, म. वं. 33.48. अभिनिवज्जेति/अभिनिवत्तेति अभि + नि + Vवज्ज का वर्त.. प्र. पु., ए. व. [अभिनिवर्जयति], अलग पड़ा रहता है, दूर रहता है, बचता है, बचकर रहता है, परिहार करता है, टालता है, एक तरफ पड़ा रहता है - तदभिनिवत्तेतीति तं अभिनिवत्तेति, अ. नि. अट्ठ. 2.223; - वत्तेय्य विधि., प्र. पु.. ए. व. - अभिनिहनेय्य अभिनीहरेय्य अभिनिवत्तेय्य, म. नि... 1.169; - ज्जेय्यासि विधि., म. पु., ए. व. - तेसं सुत्वा यं अकुसलं तं अभिनिवज्जेय्यासि, दी. नि. 3.44%; अभिनिवज्जेय्यासीति गूथं विय... सद्व वज्जेय्यासि, दी. नि. अट्ठ. 3.31; - त्वा पू. का. कृ., दूर रहकर, बचकर - इरियापथं अभिनिवज्जेत्वा सुखुमं... कप्पेय्य, म. नि. 1.171; अभिनिवेज्जेत्वा उपेक्खको... सम्पजानोति, इतिवु. 59. अभिनिवट्टेति/अभिनिवत्तेति अभि + नि + Vवत्त के प्रेर. का वर्त., प्र. पु., ए. व. [अभिनिवर्तयति], पीछे की ओर लौटता है, रुक जाता या ठहर जाता है - त्तेय्य विधि., प्र. पु., ए. व., पीछे की ओर लौटे, रुके या ठहरे - अभिनिहनेय्य
अभिनीहरेय्य अभिनिवत्तेय्य, म. नि. 1.169. अभिनिविट्ठ त्रि., अभि + नि + विस का भू. क. कृ. [अभिनिविष्ट, किसी के साथ आसक्त, किसी में जड़ जमा चुका - 8ो पु., प्र. वि., ए. व. - दिवसेसु परदारिककम्मे अभिनिविट्ठो, जा. अट्ठ. 5.54; - हा पु., ब. व., विशेष रूप से जम चुके या जड़ जमा चुके - अज्झोसिताति तण्हावसेन अभिनिविठ्ठा, थेरीगा. अट्ठ. 308; समत्ता समादिन्ना ....
अभिनिविट्ठा अज्झोसिता, महानि. 46; अभिनिविद्वाति विसेसेन लद्धप्पतिट्ठा, महानि. अट्ट, 151. अभिनिविसति अभि + नि+विस का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अभिनिविशते], शा. अ. में प्रवेश करता है, बस जाता है, डेरा डाल देता है - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. - देवता अभिनिविसन्ति ... ता देवता अभिरमन्तीति, म. नि. 3.1883; अभिनिविसन्तीति वसन्ति, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.148; ला. अ. किसी के प्रति आसक्त होता है, किसी में लिप्त होता है या लगावयुक्त हो जाता है - आकारेन अभिनिविसतीति इदंसच्चाभिनिवेसो, ध. स. अट्ठ. 401; सब्बाव एता दिद्विसम्मतियो नेति न उपेति... न परामसति नाभिनिविसतीति ...., महानि. 226; - त्तस्स वर्त. कृ., पु., ष. वि., ए. व. - रूपमुखेन अभिनिविसन्तस्स रूपधम्मपरिग्गहतो, उदा. अट्ठ. 262; - सन्ता वर्त. कृ., पु., प्र. वि. , ब. व. - उच्छेददस्सनं अभिनिविसन्ता ... अतिधावन्ति नाम, उदा. अट्ठ. 288; - समानो वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. - अपरामासमानो अनभिनिविसमानोति... अनुपादियानो, महानि. 77; - स्सथ अनु., म. पु. ब. व. - कल्याणे अभिनिविस्सथ, चरिया. 382; - सेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - गण्हेय्य परामसेय्य अभिनिविसेय्य अत्ता मेति, महानि. 226; - निविस्स/त्वा पू. का. कृ. - थामसा परामासा अभिनिविस्स वोहरति, म. नि. 1.184; अभिनिविस्स वोहरतीति अधिट्ठहित्वा वोहरति दीपेति वा, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).10; किं उपादाय, किं अभिनिविस्स एतं मम, एसोहमस्मि स. नि. 2(1).166; कत्थचि अभिनिविसित्वा इतरम्पि... वट्टति, ध. स. अट्ठ. 267. अभिनिवुट्ठ त्रि., अभि + नि + Vवस का भू. क. कृ., रह चुका या निवास कर चुका - पुब्ब त्रि., पूर्वकाल में रह चुका या निवास कर चुका - ब्बो पु.. प्र. वि., ए. व. - यस्मिं यस्मिं अत्तभावे अभिनिवुठ्ठपुब्बो होति, दी. नि. 3.82. अभिनिवेस पु.. [अभिनिवेश]. शा. अ. पूर्ण रूप से कहीं पर प्रवेश, व्यापक विस्तार, ला. अ. प्रवृत्ति, झुकाव, चिपकाव, आसक्ति, भरोसा, विश्वास, दृढ़ धारणा, दृढ़ लगाव - सो प्र. वि., ए. व. - निग्रोधराजस्स द्वादसयोजनानि अभिनिवेसो अहोसि, अ. नि. 2(2).80-81; अभिनिवेसोति पत्थरित्वा ठितसाखानं निवेसो, अ. नि. अट्ठ. 3.123; गाहो पतिठ्ठाहो अभिनिवेसो परामासो कुम्मग्गो, ध. स. 381; गण्हातीति गाहो पतिद्वहनतो पतिट्ठाहो ... गण्हाति निच्चादिवसेन अभिनिविसतीति अभिनिवेसो, ध. स. अट्ठ. 293; -- सं द्वि.
For Private and Personal Use Only