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अभिनिब्मिदा
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अभिनिरोपन/अभिनिरोपना करते हुए बाहर आता है - ज्जेय्य विधि., प्र. पु., ए. व.. 3.173; यानि खो पनस्स होन्ति साठेय्यानि ... तेसमस्स भेदन करे, खण्डित करे, तोड़कर बाहर निकल जाए - सारथि अभिनिम्मदनाय वायमति, अ. नि. 3(1).32-33. अण्डकोसं पदालेत्वा सोत्थिना अभिनिभिज्जेय्य, पारा. 4:- अमिनिम्मान नपुं., [अभिनिर्माण], अभिज्ञाबल द्वारा निर्माण ज्जे व्यु ब. व. - अण्डकोसं पदालेत्वा सोत्थिना या रचना, इन्द्रजाल (इद्धिविध) द्वारा निर्माण, - नाय च. अभिनिभिज्जेय्यु. म. नि. 1.149; - तुं निमि. कृ., - वि. ए. व. - मनोमयं कायं अभिनिम्मानाय... अभिनिन्नामेति. अण्डकोसं पदालेत्वा सोत्थिना अभिनिभिज्जित, तदे. - दी. नि. 1.68. ज्ज पू. का. कृ. - अण्डकोसं अभिनिभिज्ज जायन्ति, म. अमिनिम्मित त्रि., अभि + नि + vमा का भू. क. कृ. नि. 1.106; अभिनिभिज्ज जायन्तीति भिन्दित्वा निक्खमनवसेन [अभिनिर्मित], अभिज्ञाबल या ऋद्धिबल के द्वारा निर्मित या जायन्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).348.
बनाया हुआ, ऋद्धिबल के द्वारा विरचित - ता पु.. प्र. वि., अभिनिमिदा स्त्री., [बौ. सं. अभिनिर्भेद], शा. अ. सफल ब. व. - अभिनिम्मिता पञ्चरथासता च ते. वि. व. 137 (प्र.) भञ्जन या निर्भेदन, ला. अ. ज्ञान-प्राप्ति की क्रमशः 13: अभिनिम्मिताति तव पुञकम्मेन निम्मिता निबत्ता, वि. विकसित होने वाली अवस्थाएं, मन के क्लेशों का भञ्जन व. अट्ठ. 63. करके प्राप्त ज्ञान की अवस्था - अयमस्स पठमाभिनिभिदा अभिनिम्मिनाति अभि + नि + vमा का वर्तः, प्र. पु., ए. व. होति कुक्कुटच्छापकस्सेव अण्डकोसम्हा, म. नि. 2.22; [बौ. सं. अभिनिर्मिमीते एवं अभिनिर्मिणोति], अभिज्ञाबल पठमाभिनिभिदाति पठमो आणभेदो. म. नि. अट्ठ. (म.प.) द्वारा, निर्माण करता है या उत्पन्न करता है, आकार 2.23; - दाय च. वि., ए. व. - उस्सोळ्हीपन्नरसङ्गसमन्नागतो (आकृति) प्रदान करता है - अझं कायं अभिनिम्मिनाति भिक्ख भब्बो अभिनिबिदाय, म. नि. 1.149; अभिनिभिदायाति रूपिं... अहीनिन्द्रियं दी. नि. 1.68; - न्ति ब. व. - अज
आणेन किलेसभेदाय, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).382; - कायं अभिनिम्मिनन्ति रूपिं मनोमयं म. नि. 2.219; - पञत्ति स्त्री., प्र. वि., ए. व., अभिनिर्भेद की प्रज्ञप्ति या नन्तानं वर्त. कृ., ष. वि., ब. व. - मनोमयं कार्य प्रकाशन, - अभिनिबिदापत्ति चित्तस्स, नेत्ति. 51. अभिनिम्मिनन्तानं यदिदं, अ. नि. 1(1).32; - नित्वा पू. का. अभिनिमन्तनता स्त्री., अभिनिमन्तन का भाव. कृ.- ओळारिक अत्तभावं अभिनिम्मिनित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा [अभिनिमन्त्रणत्व, नपुं.], अनुरोध किया जाना, प्रार्थना किया ...., अ. नि. 1(1).314; - नेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. - जाना, अनुनय से भरे वचनों को कहा जाना - य तृ. वि., पुरिसरूपं वा अभिनिम्मिनेय्य सब्बङ्गपच्चङ्ग स. नि. 1(2).90. ए. व. - इति हिदं मारस्स च... अभिनिमन्तनताय .... म. अभिनिरोपन/अभिनिरोपना अभि + नि + रुह के प्रेर. नि. 1.415; ब्रह्मनो च अभिनिमन्तनतायाति बकब्रह्मनो च से व्यु., क्रि. ना. [अभिनिरोपण], क. नपुं./स्त्री., आलम्बनों ... कायकेन ब्रह्मटानेन निमन्तनवचनेन, म. नि. अट्ठ. पर चित्त का लगाव या चित्त को रख देना - नो पु., प्र. (मू.प.) 1(2).308.
वि., ए. व. - ... ठितकण्टको विय अभिनिरोपनो वितक्को, अभिनिमन्तेति अभि + नि+vमन्त का वर्त., प्र. पु., ए. व. पटि. म. अट्ठ. 1.154; - ना स्त्री., प्र. वि., ए. व. - सुतत्ता [अभिनिमन्त्रयते]. साथ लाई हुई वस्तुओं को स्वीकार करने अभिनिरोपना विपाकमनोधातु विज्ञाणचरिया, पटि. म. 733; हेतु अनुरोध करता है, देय वस्तु के ग्रहण करने हेतु यो खो, भिक्खवे, अरियचित्तस्स ... तक्को वितक्को ... आमन्त्रित करता है - त्तेय्याम विधि., उ. पु., ब. व. - चेतसो अभिनिरोपना वचीसङ्घारो.... म. नि. 3.120; आरम्मणे अभिनिमन्तेय्यामपि नं चीवरपिण्डपातसेनासनगिला- चित्तं अभिनिरोपेति पतिठ्ठापेतीति चेतसो अभिनिरोपना, ध. नप्पच्चयभे सज्जपरिक्खारेहि, दी. नि. 1.53; स. अट्ठ. 187; - लक्खण नपुं.. अभिनिरोपण की विशिष्टता अभिनिमन्तेय्यामपि नन्ति अभिहरित्वापि नं निमन्तेय्याम, दी. या लक्षण - णं प्र. वि., ए. व. - वितक्कस्स नि. अट्ठ. 1.140.
अभिनिरोपनलक्खणं दी. नि. अट्ठ. 1.60; पटि. म. अट्ठ. 1. अमिनिम्मदन नपुं., अभि + नि + vमद से व्यु. क्रि. ना., 176; ख. त्रि., ब. स., वह, जिसका लक्षण (किसी पर) घोड़े या हाथी को वश मे लाना या दमन करना, संशोधन, अभिनिरोपित कर दिया जाना या रख दिया जाना हो- णो सुधार, ठीक करना, सही करना - नाय च. वि. ए. व. - पु., प्र. वि., ए. व. - सम्मा अभिनिरोपनलक्खणो सम्मासङ्कप्पो, आरञ्जकं नागं दमयाहि... सीलानं अभिनिम्मदनाय. म. नि. दी. नि. अट्ठ. 1.252.
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