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अप्पपञ
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अप्पभिक्खुक
196.
पपञ्चेति, अ. नि. 1(2).187; अप्पपञ्चं पपञ्चेतीति न अप्पफल त्रि., ब. स. [अल्पफल], बहुत कम फल देने पपञ्चेतबहाने पपञ्चं करोति, अनाचरितब् मग्गं चरति, वाला, कम लाभदायक - महाकिच्चं महाधिकरणं महासमारम्भ अ. नि. अट्ठ. 2.349.
विपज्जमानं अप्पफलं होति, म. नि. 2.422; - ता स्त्री., अप्पपञ त्रि., ब. स. [अल्पप्रज्ञ], कम बुद्धि वाला, मूर्ख, भाव., बहुत कम फलदायक होना, कम लाभप्रद होना - अज्ञानी - तस्सप्पपओ अभिसद्दहन्तो, उपेति गमञ्च परञ्च अप्पफलताय वा तुद्धिं न जनेति, पे. व. अट्ट. 122. लोक, थेरगा. 785; सिङ्गाल बाल दुम्मेध, अप्पपोसि अप्पबल त्रि०, ब. स. [अल्पबल], कम बल वाला, अल्प जम्बुक, जा. अट्ठ. 3.195; गिरिदुग्गचरं छेतं, अप्पपञ्ज शक्ति से युक्त, दुर्बल-ला पु., प्र. वि., ब. व. - अबलाति अचेतसं. स. नि. 1(1).230..
अबला किलेसा दुब्बला अप्पबला अप्पथामका हीना निहीना अप्पपरिक्खार त्रि., ब. स. [अल्पपरिष्कार], अत्यल्प ओमका लामका छतुक्का परित्ता, महानि. 8. साधनों से सम्पन्न, बहुत कम आवश्यकता रखने वाला- अप्पबुद्धि त्रि., ब. स. [अल्पबुद्धि], दुर्बुद्धि, मूर्ख, कम बुद्धि यो अप्पपरिक्खारो होति, पत्तचीवरादि वाला-द्धीनं ष. वि., ब. व. - यसो च अप्पबुद्धीनं, विजूनं अद्वसमणपरिक्खारमत्तमेव परिहरति, दिसापक्कमनकाले अयसो च यो, अयसोव सेय्यो विञ्जूनं न यसो अप्पबुद्धीनं, पक्खी सकुणो विय समादायेव पक्कमति, खु. पा. अट्ठ. थेरगा. 667.
अप्पबुद्धिक त्रि., ब. स. [अल्पबुद्धिक], उपरिवत् - महासेष्टि अप्पपरिवार त्रि., ब. स. [अल्पपरिवार], बहुत छोटे समूह · मातुगामो नाम अप्पबुद्धिको, ध. प. अट्ठ. 2.405. वाला, बहुत कम लोगों से घिरा रहने वाला - रा पु., प्र. अप्पम त्रि.. ब. स. [अप्रभ], प्रभा-रहित, तेज या चमक से वि., ब. व. - अप्पेसक्खाति अप्पपरिवारा, म. नि. अट्ठ. रहित, धूमिल - मे पु., वि. वि., ब. व. - अयोघरम्हि संवड्वो, (मू.प.) 1(2).130; अ. नि. अट्ठ. 2.369; अप्पेसक्खाति अप्पभे चन्दसूरिये, चरिया. 396; अप्पभे चन्दसूरियेति अप्पपरिवारा, पुरतो वा पच्छतो वा गच्छन्तं न लभन्ति, म. चन्दसूरियानं पभारहिते अयोघरे, चरिया. अठ्ठ. 180. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).130.
अप्पभक्ख त्रि., ब. स. [अल्पभक्ष], भोजन अन्न आदि से अप्पपासाण त्रि., ब. स. [अल्पपाषाण], बहुत कम पत्थरों रहित, अभाव-पीड़ित - क्खं द्वि. वि., ए. व. - ते तं से युक्त, कम कंकड़-पत्थर वाला/वाली - जाता नाम कन्तारमागम्म, अप्पभक्खं अनोदक, जा. अट्ठ. 4.312; - पथवी - सुद्धपंसु सुद्धमत्तिका अप्पपासाणा अप्पसक्खरा क्खा पु., प्र. वि., ब. व. - अप्पोदका अप्पभक्खा , न सकरा ..... पाचि. 50.
अपाथेय्येन गन्तुं, महाव. 321; - कन्तार नपुं.. कर्म. स. अप्पपुञ त्रि.. ब. स. [अल्पपुण्य]. बहुत कम पुण्यकर्म [अल्पभक्षकान्तार], भोजन आदि से रहित बीहड़ वन - करने वाला - जो पु., प्र. वि., ए. व. - अप्पपातोति कन्तारन्ति चोरकन्तारं वाळकन्तारं अमनुस्सकन्तारं निरुदककन्तारं अपाकटो अप्पपुसओ, अ. नि. अट्ट 3.44; किं पनायं अप्पभक्खकन्तारन्ति पञ्चबिधं स. नि. अट्ठ. 2.91. अप्पपुओ अप्पे सक्खो न लाभी अप्पभवन्तु त्रि.. प + Vभू के वर्त. कृ. का निषे. [अप्रभवत्]. चीवरपिण्डपातसेनासनगिलानपच्चयभेसज्जपरिक्खारा- प्रभाव से रहित, बिना प्रभाव वाला - सोहं अप्पभवं तत्थ, नन्ति, महानि. 292; - जा ब. व. - मयमेवम्हा अलक्खिका साखं हत्थेहि अग्गहिं, जा. अट्ठ. 3.330; सद्द. 1.72. मयं अप्पपुआ, ये मयं एवं स्वाखाते धम्मविनये पब्बजित्वा अप्पभाव पु., तत्पु. स. [अल्पभाव], संख्या में कम होना, ..., पारा. 24.
प्रसार या फैलाव में छोटा होना - पुट्ट चुट्ट अप्पभावे..... अप्पं अप्पपुरिस त्रि., ब. स. [अल्पपुरुष], बहुत कम पुरुषों वाला भवतीति अत्थो, सद्द. 2.532. - लानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - कुलानि बहुत्थिकानि अप्पभास त्रि.. ब. स. [अप्रभास], प्रकाश से रहित, उजाला
अप्पपुरिसानि तानि सुप्पधंसियानि होन्ति, स. नि. 1(2).241. से रहित - से पु., सप्त. वि., ए. व. - तिमिरे अन्धकारे अप्पपुरिसक त्रि., ब. स. [अल्पपुरुषक], उपरिवत् - अप्पभासे सुपरिसुद्धपि आदासे छाया न दिस्सति, मि. प. सिकानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - कुलानि बहुत्थिकानि 275-76. अप्पपरिसकानि, तानि सुप्पधंसियानि होन्ति, अ. नि. अप्पभिक्खुक त्रि., ब. स. [अल्पभिक्षुक], वह स्थान, जहां 3(1).107; चूळव. 419-20.
भिक्षु कम संख्या में हों - ... अवन्तिदक्षिणापथो
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