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अप्पदुट्ठ
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अप्पना/अप्पणा अप्पदुट्ट त्रि., प + vदुस के भू. क. कृ. का निषे. [अप्रदुष्ट]. वि., ए. व. - इदानेसा केनचि अप्पधंसिया जाता ति अरुजतो प्रदूषणों से रहित, लोभ आदि चित्तमलों से अदूषित, विशुद्ध ... निसीदि, वि. व. अट्ठ. 175; - यं नपुं., प्र. वि., ए. व. चित्त वाला, पापरहित, - स्स पु., ष. वि., ए. व. - यो - बोधिसत्तो नगरं पटिसकरित्वा परेहि अप्पधसियं अकासि. अप्पदुट्ठस्स नरस्स दुस्सति, सुद्धस्स पोसस्स अनङ्गणस्स, जा. अट्ठ. 3.137; - या पु., प्र. वि., ब. क. - परेहि सु. नि. 667; किञ्च भिय्यो - यो अप्पदुट्ठस्साति, सु. नि. अप्पधसियाति अत्थो, जा. अट्ठ. 1.314. अट्ठ. 2.180; - द्वेसु सप्त. वि., ब. व. - यो दण्डेन अप्पधन त्रि., ब. स. [अल्पधन], कम धन वाला, दरिद्र - अदण्डेसु, अप्पदुद्वेसु दुस्सति, ध. प. 137; अप्पदुद्रुसूति अत्थम्पिचे भासति भूरिपओ. अनाळिहयो अप्पधनो दलिदो. परेसु वा अत्तनि वा निरपराधेसु.ध. प. अट्ठ. 240; - चित्त जा. अट्ठ. 6.189. त्रि., ब. स. [अप्रदुष्टचित्त], प्रदूषणों या मलों से मुक्त अप्पधान त्रि., पधान का निषे. [अप्रधान], गौण, अन्यविशुद्ध चित्त वाला, - त्ता पु.. प्र. वि., ब. व. - ते सापेक्ष, अप्रमुख, दूसरे पर निर्भर, नामपद के रूप में प्रयुक्त, अञमज अप्पद्वचित्ता अकिलन्तकाया अकिलन्तचित्ता, अप्रधान पद - नामभूतेहि अप्पधानेहि च सब्बादीहि यं वृत्तं दी. नि. 1.18; - पदोसी त्रि., क. अप्रदूषित या निर्दोष ...., मो. व्या. 2141; - लिङ्ग नपुं, कर्म, स., [अप्रधानलिङ्ग], व्यक्ति को प्रदूषित करने वाला - तस्मा यो अप्पदुट्ठस्स अप्रधान या विशेषणभूत नामपद - अविभावी धम्मविभावीआदीनि नरस्स दुस्सति, ... ति एवं वुत्तो अप्पदुट्ठपदोसी पुग्गलो, अप्पधानलिङ्गानि, सद्द. 1.233. स. नि. अट्ठ. 1.45; ख. निरपराध, निर्दोष, विशुद्ध - सिनं अप्पना/अप्पणा स्त्री., [अर्पण, नपुं.], क. किसी एक पु., वि. वि., ए. व. - एतादिसंखो कटुकं, अप्पट्ठप्पदोसिनं आलम्बन पर चित्त की एकाग्रता, ध्यान में चित्त को लगा पे. व. 762; अप्पदुप्पदोसिनं इसिं सब्बतं आसज्ज आसादेत्वा देना, गम्भीर ध्यान, समाधि के दो प्रभेदों में से एक, जिसमें पापकम्मन्ता पुग्गला ... पच्चन्तीति योजना, पे. व. अट्ठ. पूर्ण रूप से एकाग्र चित्त को किसी एक आलम्बन पर स्थिर 231; - मनसङ्कप्प त्रि., ब. स. [अप्रदुष्टमनसङ्कल्प], कर दिया जाता है -- ना प्र. वि., ए. व. - एकग्गं चित्तं अप्रदूषित मानसिक संकल्प वाला, वह, जो अपने मन में बुरे आरम्मणे अप्पेतीति अप्पना, ध. स. अट्ठ. 187; यो तस्मिं विचारों को न लाए - अब्यापन्नचित्तो खो पन होति समये तक्को वितक्को सङ्कप्पो व्यप्पना चेतसो अभिनिरोपना अप्पदुट्ठमनसङ्कप्पो, म. नि. 1.362.
सम्मासङ्कप्पो, ध. स. 7; 21; 298; - नं द्वि. वि., ए. व. - अप्पदुस्सिय त्रि.. प+vदुस के सं. कृ. का निषे॰ [अप्रदूष्य]. सह निमित्तुप्पादेनेवेत्थ अप्पनं निब्बत्तेतीति अत्थो, ध. स. दूषित नहीं किए जाने योग्य - आपदास सहायो मे अभेज्जो अट्ठ. 232; - नाय तृ. वि., ए. व. - तत्थ किञ्चापि अप्पदुस्सियो, सद्धम्मो. 312.
अन्तोअप्पनाय सुभान्ति आभोगो नत्थि,ध. स. अट्ठ. 265; - अप्पधंसिक त्रि., पधंसिक का निषे. [अप्रध्वंस्य], गुणों से तो प. वि., ए. व. - अप्पनातोति अप्पनाकोडासतो. विभ. अथवा स्थान से बिलग न किए जाने योग्य, ध्वस्त या अट्ठ. 219; ख. तर्क, निगमन, व्याख्या - इमानि तानीति विनष्ट नहीं किए जाने योग्य - अप्पधंसिको होतीति गुणतो अप्पनं करोति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).343; अप्पनन्ति वा ठानतो वा पधंसेतुं चावेतुं असक्कुणेय्यो, दी. नि. अट्ठ. निगमनं म. नि. टी. (मू.प.) 1(2).22; - उपचार पु., तत्पु. 3.110; - ता स्त्री., भाव., गुणों या अच्छे कर्मों से बिलग स., अर्पणा समाधि से पूर्ववर्ती समाधि का चरण- देसेसीति न रहना, गुण-सम्पन्नता - अप्पधंसिकता आनिसंसो, दी. ... लभति, समापत्तिं एवं निब्बत्तेतीति अपनाउपचारं पापेत्वा नि. अट्ठ. 3.110.
एककसिणपरिकम्म कथेसि. म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.1443; अप्पधंसित त्रि.. प + vधंस के भू. क. कृ. का निषे. - कम्मट्ठान नपुं., तत्पु. स. [बौ. सं. अर्पणाकर्मस्थान]. [अप्रध्वस्त], अनुल्लंघित, वह, जिसे ध्वस्त या अभिभूत न समाधि की अर्पणा स्थिति की चर्या या साधना - नानि प्र. किया गया हो- ... कच्चिसि अप्पधसिताति, अप्पधसिताम्हि वि., ब. व. - तत्थ आनापानपब्बं ... द्वे अप्पनाकम्मट्ठानानि, अय्ये ति, पाचि. 305; 306.
... द्वादसपि उपचारकम्मट्ठानानेवाति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अप्पधंसिय त्रि., ध्वस्त नहीं करने योग्य, स्थान से या गुणों 1(1).285; - कोट्ठास नपुं, कर्म, स. [बौ. सं. अर्पणाकोष्ठांश], से रहित न बनाने योग्य - यो पु., प्र. वि., ए. व. - न अर्पणा समाधि में चित्त के लिए आलम्बन बनाया गया रूप सुप्पसव्होति अप्पधंसियो, पे. व. अट्ठ. 103; - या स्त्री॰, प्र.. का कोष्ठांश - अप्पनातोति अप्पनाकोडासतो, विभ. अट्ठ.
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