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अप्पमाण
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अप्पमाणक
- णा स्त्री॰, प्र. वि., ए. व. - अप्पमाणा चेतोविमुत्ति या च महग्गता चेतोविमुत्ति, म. नि. 186; - णो पु., प्र. वि., ए. व. - मुदुना कम्मञ्जुन चित्तेन अप्पमाणो समाधि होति सुभावितो, अ. नि. 3(1).228; अप्पमाणो समाधीति चतुब्रह्मविहारसमाधिपि मग्गफलसमाधिपि अप्पमाणो । समाधि नाम, अ. नि. अट्ठ. 3.276; - णानि नपुं॰, प्र. वि., ब. व. - अज्झत्तं ... पस्सति अप्पमाणानि सवण्णदुब्बण्णानि, दी. नि. 2.85; अप्पमाणानीति वद्धिततप्पमाणानि, महन्तानीति
अत्थो , दी. नि. अट्ठ. 2.136. अप्पमाण नपुं. निषे. तत्पु. स. [अप्रमाण], वह, जो यथार्थज्ञान
का उचित साधन या आधार नहीं है, प्रमाण का अभाव, नहीं प्रमाण - एत्थ च यस्मा अवि परे अप्पमाणं, खु. पा. अट्ट. 197; एतेसं वचनं अप्पमाणं जा. अट्ठ. 2.267; काळपक्खो वा जुण्हपक्खो वा एत्थ अप्पमाणन्ति वुत्तं होति, जा. अट्ठ. 1.167. अप्पमाणक त्रि., ब. स. [अप्रमाणक], बिना प्रमाण वाला, प्रमाण-रहित, असङ्गत - पाळं पत्वान तेसन्तु वचणं अप्पमाणकं. सद्द. 1.9; - गुण त्रि.. ब. स. [अप्रमाणगुण], असंख्य गुणों से युक्त - बहुगुणो अनेकगुणो अप्पमाणगुणो गुणरासि गुणपुञ्जो सत्तानं ... मि. प. 188; - ता स्त्री॰, भाव. [अप्रमाणगुणत्व]. असंख्य गुणों से भरपूर होना - ... तिण्णं रतनानं अप्पमाणगुणतं दस्सेत्वा सप्पमाणे सत्ते दस्सेतुं ..., जा. अट्ठ. 2.121; - गोचरता स्त्री., अप्पमाणगोचर का भाव. [अप्रमाणगोचरता], अपरिमेय विषयों वाला होना, आलम्बनों या विषयों की अपरिमेयता - एवं अप्पमाणगोचरताय एकलक्खणासु चापि एतासु पुरिमा ... होन्ति, ध. स. अट्ठ. 241; - चित्त/चेतस त्रि., ब. स. [अप्रमाणचित्त/ अप्रमाणचेत], शा. अ. वह व्यक्ति, जिसका चित्त अप्रमेय हो अर्थात् प्रमाणों द्वारा ग्राह्य न हो, ला. अ. लोकोत्तर चित्त वाला, क्लेशों से मुक्त चित्त वाला - सो पु., प्र. वि., ए. व. - उपडितकायस्सति च विहरति, अप्पमाणचेतसो तञ्च चेतोविमुत्तिं पञआविमुत्तिं ..., स. नि. 2(2).12526; म. नि. 1.341; अप्पमाणचेतसोति उपडितसतिताय निक्किलेसचित्तेन अप्पमाणचित्तो. स. नि. अट्ठ. 3.43; तत्थ अप्पमाणचेतसोति अप्पमाणं लोकुत्तरं चेतो अस्साति अप्पमाणचेतसो, मग्गचित्तसमङ्गीति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).207; - दस्स त्रि., [अप्रमाणदर्श]. प्रमाणों से अग्राह्य निर्वाण को देखने वाला, प्रमाणों के अविषयीभूत निर्वाण का साक्षात्कार करने वाला, - दस्सं पु., द्वि. वि..
ए. व. - ... बुद्ध भगवन्तं अप्पमाणदस्सं अग्गदस्सं ... असमं असमसमं अप्पटिसमं ... पटिलभिं, चूळनि. 189190; अप्पमाणदस्सन्ति पमाणं अतिक्कमित्वा अप्पमाणं निब्बानदस्सं. चूळनि. अट्ठ. 77; - पाक त्रि., ब. स., अनग्गपाळ नाम की सार्थकता को प्रकाशित करने हेतु प्रयुक्त, पकाए हुए भोज्य पदार्थों को बिना किसी सोच विचार के जिस किसी को भी दान देने वाला - तस्सपि तेनेव कारणेन अनग्गपाळोति नामं जातं, अप्पमाणपाकोति अत्थो, अ. नि. अट्ठ. 1.195; - विहारी त्रि., [अप्रमाणविहारिन्]. शा. अ. प्रमाणों को अतिक्रमण कर चुकी स्थिति में विहार करने वाला, ला. अ. आस्रवों को नष्ट कर चुका अर्हत्, प्रमाण या परिसीमन करने वाले राग आदि से मुक्त चित्तभूमि में विहार करने वाला अर्हत्, राग आदि से मुक्त अर्हत्वफल में विहार करने वाला - ... भावितकायो होति भावितसीलो भावितचित्तो भावितपओ अपरित्तो महत्तो अप्पमाणविहारी, अ. नि. 1(1).283; अप्पमाणविहारीति खीणासवस्सेतं नाममेव, सो हि पमाणकरानं रागादीनं अभावेन अप्पमाणविहारी नाम, अ. नि. अट्ठ. 2.218; - रिनो पु.. ष. वि., ए. व. - समाधि न विकम्पति, अप्पमाणविहारिनो, स. नि. 1(2).210; अप्पमाणविहारिनोति अप्पमाणेन फलसमाधिना विहरन्तरस, स. नि. अट्ठ. 2.183; - सञी त्रि., [अप्रमाणसंज्ञिन्], शा. अ. प्रमाण से परे अथवा अत्यधिक विपुलविषय की संज्ञा रखने वाला, ला. अ. ऐसी आत्मा, जो अत्यधिक विपुल विषय की संज्ञा कर सके, सांख्य एवं वैशेषिक दर्शनों में प्रतिपादित सर्वज्ञ पुरुष या आत्मा - अप्पमाणसञी अत्ता होति. दी. नि. 1.26%; विपुलकसिणवसेन अप्पमाणसञीति वेदितब्बा, दी. नि. अट्ठ. 1.102; कपिलकणादादयो विय अत्तनो सब्बगतभावपटिजाननवसेन अप्पमाणो सञी चाति अप्पमाणसञीति .... लीन. (दी.नि.टी.) 1.152; - सत्तारम्मण त्रि.. ब. स. [अप्रमाणसत्त्वालम्बन], अप्रमाण या असंख्य प्राणियों को अपना आलम्बन बनाने वाला - अप्पमाणन्ति अप्पमाणसत्तारम्मणं, जा. अट्ठ. 5.183; -- त्त नपुं., अप्पमाणारम्मण का भाव. [अप्रमाणालम्बनत्व], अप्रमाण या असीम आलम्बनों वाला होना - अप्पमाणेनाति अप्पमाणसत्तानं अप्पमाणारम्मणत्ता अप्पमाणेन. जा. अट्ठ. 2.50; - समाधि पु., कर्म. स. [अप्रमाणसमाधि]अर्हत्व के मार्गक्षण में स्थित साधक द्वारा की जा रही समाधि - अभियुय्य दिसा सब्बा, अप्पमाणसमाधिना, अ. नि. 1(1).269;
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