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अप्पट्टम
अप्पटिस्सति अप्पतिस्सा असभागवुत्तिका विहरिस्सन्तीति, महाव. 106; यं मयं अञ्जम अगारवा अपतिस्सा असभागवत्तिनो विहरेय्याम, जा. अट्ट, 1.215. अप्पटिस्सति स्त्री., पटिस्सति का निषे. [अप्रतिस्मृति], स्मृति का अभाव, अनुस्मृति का अभाव, चित्त की जागरूकता का अभाव - या अस्सति अननुस्सति अप्पटिस्सति अस्सति अस्सरणता अधारणता, पु. प. 127; ध. स. 1356; अननुस्सति अप्पटिस्सतीति उपसग्गवसेन पदं वद्धितं.ध. स. अट्ठ. 424. अप्पटिस्सय त्रि., अट्ठ. में अप्पटिस्स के निर्वचन के सन्दर्भ में सदा अप्पटिस्स के साथ प्रयुक्त [अप्रतिश्रय], शा. अ. स्वीकृतिपरक उत्तर न देने वाला, ला. अ. आज्ञापालन न करने वाला, उद्दण्ड, हठी, - स्सया पु., प्र. वि., ब. क. - अप्पतिरसाति अप्पतिस्सया अनीचत्तिका, स. नि. अट्ठ. 179; अप्पतिस्सोति अप्पतिस्सयो अनीचवुत्ति, दी. नि. अट्ठ. 3.198; - वुत्तिरस त्रि., ब. स. [अप्रतिश्रयवृत्तिरस], आज्ञापरायणता से च्युत होने की क्रिया करने वाला, उद्दण्डता या हठधर्मिता की क्रिया करने वाला - थम्भो अप्पतिस्सयवुत्तिरसो अमद्दवता पच्चुपट्टानो, म. नि. अट्ट. (मू.प.) 1(1).114. अप्पटिस्सव/अप्पतिस्सव त्रि., ब. स., अप्पटिस्स का समाना. [अप्रतिश्रव], स्वीकृतिपरक वचन न बोलने वाला, आज्ञा का पालन न करने वाला, उद्दण्ड - चतुत्थ सिक्खापदे - अप्पतिस्साति अप्पतिस्सवा, पाचि. अट्ठ. 7; -- ता स्त्री., भाव. [अप्रतिश्रवता], उद्दण्डता, आज्ञा का पालन न करना, हठधर्मिता - अनादरियं अनादरियता अगारवता अप्पतिस्सवता - अयं वुच्चति दोवचरसता, पु. प. 126; अनादरियं अनादरता अगारवता अप्पटिस्सवता- अयं वुच्चति दोवचस्सता, ध. स. 1332; - भाव पु., उपरिवत् - सजेटकवासं अवसनवसेन उप्पन्नो अप्पटिस्सवभावो अप्पटिस्सवता, ध. स. अट्ठ. 415; - वास पु., तत्पु. स. [अप्रतिश्रववास]. शा. अ. उत्तरदायित्व से रहित समाज में निवास, ला. अ. राजा से रहित समाज में निवास- अम्हाकं पनन्तरे राजा नाम अस्थि, अप्पतिस्सवासो नाम न वट्टति, जा. अट्ठ. 2.291. अप्पटिहत त्रि., पटि + Vहन के पू. का. कृ. का निषे. [अप्रतिहत], रुकावटों से मुक्त, बाधाओं से मुक्त, बिना रुकावट वाला, बेरोक-टोक, अप्रभावित, अतिरस्कृत, सर्वव्यापी, - तो पु., प्र. वि., ए. व. - फलं लद्धापि अलद्धापि अननुनीतो अप्पटिहतो मज्झतो येव हुत्वा गच्छति, सु. नि. अट्ठ. 2.195; सब्बत्थ अप्पटिहतो निसभो ति, सु. नि. अट्ठ. 1.33; - तं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अतीते बुद्धस्स भगवतो
अप्पटिहतं आणं, अनागतेबुद्धस्स भगवतो अप्पटिहतं जाणं, पटि. म. 368; - चार त्रि., बिना रुकावट के चारों ओर विचरण करने वाला - येन कामञ्च पक्कमति अप्पटिहतचारो, उदा. अठ्ठ. 131; - चारता स्त्री., भाव., बिना रुकावट के या उन्मुक्त रूप से विचरना, स्वतन्त्र रूप से विचरना - इमिना कत्थचि अप्पटिहतचारतं दस्सेति, वि. व. अट्ठ. 11; - चित्त नपुं० [अप्रतिहतचित्त], राग एवं द्वेष आदि से अप्रभावित चित्त, अबाधित विशुद्ध चित्त - आगतवाने दोसेन चित्तस्स पहतभावो वुत्तो, इध पन दोसेन अप्पटिहतचित्तस्साति अत्थो, ध. प. अट्ठ. 1.176; - प्राण त्रि., ब. स. [अप्रतिहतञाण], बाधा-रहित अथवा बिना रुकावट के सर्वत्र प्रसृत ज्ञान से युक्त -- लोकस्स अग्गपुग्गलो अतीतादीसु अप्पटिहतञाणो सत्था वसति, ध. प. अट्ठ, 1.254; -- ञाणचारता स्त्री., भाव., बाधारहित ज्ञान का सर्वत्र फैलाव होना, ज्ञान का अबाधित रूप से प्रसार -- अत्थो अस्थि सब्बत्थ अप्पटिहतञाणचारताय एकप्पमाणत्ता जेय्यधम्मेसु, उदा. अट्ठ. 23; - परिमोक्खता स्त्री॰, भाव., प्रातिमोक्ष का अबाधित रूप से नियमित अनुष्ठान होना - पसन्नानञ्च भिय्योभावाय साधारण पदद्वान, अप्पटिहतपातिमोक्खता दुम्मङ्कनञ्च पुग्गलानं निग्गहाय, नेत्ति. 42; - भाव पु., बिना बाधा वाला या बिना रुकावट वाला होना, निर्बाधता, उन्मुक्तता - नत्वेवाति इमिना सब्ब ताणस्स अप्पटिहतभावं दस्सेति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.315. अप्पट्ट त्रि., ब. स. [अल्पार्थ], छोटे-छोटे विषयों से सम्बद्ध, अल्प महत्व वाला, छोटे-मोटे प्रयोजनों वाला, अमहत्वपूर्ण - कम्मट्ठानं अप्पटुं अप्पकिच्चं अप्पाधिकरणं अप्पसमारम्भ विपज्जमानं अप्पफलं होति, म. नि. 2.422; अप्पट्ठो अप्पकिच्चो अप्पाधिकरणो अप्पसमारम्भो, म. नि. 2.428; भिक्खु अप्पट्ठो होति अप्पकिच्चो सुभरो सुसन्तोसो जीवितपरिक्खारेसु, अ. नि. 2(1).112; - तर त्रि., तुल. वि., तुलनात्मक रूप से कम कठिन अथवा कम आपत्तिप्रद, - रो पु०, प्र. वि., ए. व. - सोळसपरिक्खाराय अप्पट्टतरो च अप्पसमारम्भतरो च महप्फलतरो च, दी. नि. 1.127; - तरा स्त्री., प्र. वि., ए. व. - कतमा पटिपदा खमति अप्पत्थतरा च महप्फलतरा, अ. नि. 1(1)196. अप्पट्ठम त्रि., पठम का निषे. [अप्रथमा], प्रथमा विभक्ति से भिन्न अन्य विभक्ति-प्रत्ययों वाला - तेहि तुम्हाम्हहि यो अप्पठमो आकं होति वा, क. व्या. 162.
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