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अप्पटिकूल/अप्पटिक्कूल
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अप्पटिक्खित्त विशुद्धि न चाहने वाला - भिक्खुं धम्मेन विनयेन सत्थुसासनेन घृणित या अहितकर को अनुकूल हितकर या शुभ समझने अनादरं अप्पटिकारं अकतसहायं तमनुवत्तेय्य, पाचि. 293; वाला -- सो सचे आकङ्घति - पटिकूले अप्पटिकूलसी 2. किए हुए उपकार का बदला न देने वाला, प्रत्युपकार विहरेय्यन्ति, अप्पटिकुलसी तत्थ विहरति, म. नि. के रूप में कुछ न करने वाला - रिकायो स्त्री., प्र. वि., 3.364; भिक्खु कालेन कालं पटिकूले अप्पटिकूलसञी ब. व. - कतविनासनेन मित्तदुभिताय कतरस । विहरेय्य, अ. नि. 2(1).159. अप्पटिकारिकायोति, जा. अट्ट. 5.414; 3. असाध्य, लाइलाज, अप्पटिकोपयन्त त्रि., पटि + कुप के प्रेर. के वर्त. कृ., उपचार न किये जा सकने योग्य, अनिवार्य, - रं नपुं.. प्र. पटिकोपयन्त का निषे. [अप्रतिकोपयत्], नहीं तोड़ता हुआ, वि., ए. व. - मरणं नाम सब्बसाधारणं अप्पटिकारञ्च, तस्मा भग्न न करता हुआ - एतादिसं दुक्खमहं तितिक्खं उपोसथं मा त्वं पितरि अतिबाळ्हं सोचि, पे. व. अट्ठ. 239; - क त्रि., अप्पटिकोपयन्तो, जा. अट्ठ. 5.166. उपरिवत् - रिकायो स्त्री., प्र. वि., ब. व. - लहुचित्तायो अप्पटिक्कमना स्त्री., पटिक्कमन के स्त्री. का निषे. कतस्स अप्पटिकारिकायो अनिलो विय येनकामंगमायोति, [अप्रतिक्रमण], शा. अ. पीछे की ओर वापस न जाना, जा. अट्ट. 5.413.
पीछे की ओर कदम न मोड़ना, ला. अ. शक्ति से रहित न अप्पटिकूल/अप्पटिक्कूल त्रि., पटिकूल का निषे., तत्पु. हो जाना, क्षमता, सामर्थ्य - अप्पटिवानिताति अप्पटिक्कमना स. [अप्रतिकूल]. अनुकूल, हितकर, विरोधरहित, मनोहर, अनोसक्कना, अ. नि. अट्ठ. 2.5. उपयोगी, आपत्ति-रहित, - लं नपुं.. प्र. वि., ए. व. - अप्पटिक्कुज्झन्त त्रि., पटि + vकुध के वर्त. कृ. का निषे. चारुदस्सनोति ... अप्पटिकूलं रमणीयं चारु एव दस्सनं [अप्रतिक्रुध्यत्], बदले में क्रोध नहीं कर रहा - कुद्ध अस्साति चारुदस्सनो, सु. नि. अट्ठ. 2.156; - ला' स्त्री., अप्पटिकुज्झन्तो, सङ्गामं जेति दुज्जयं, थेरगा. प्र. वि., ए. व. - गन्तुं अप्पटिकूलासि, उदा. 96%; 442. अप्पटिकूलाति न पटिकूला, मनापा मनोहराति अत्थो, उदा. अप्पटिक्कूल ऊपर द्रष्ट., अप्पटिकूल के अन्त.. अट्ठ. 149; - ला' पु., प्र. वि., ब. व. - मेत्ताय भावितत्ता अप्पटिक्कोसना स्त्री., पटि + Vकुस से व्यु., क्रि. ना. का सत्ता अप्पटिकूला होन्ति, पटि. म. 225; ध. स. अट्ट. 235; निषे. [अप्रतिक्रोषण], उपेक्षा, तिरस्कार या डांट-फटकार - लानि नपुं.. प्र. वि., ब. व. - सुभान्यप्पटिकूलानि, का अभाव, बदले में किसी को खरी-खोटी न सुनाना या फोटुब्बानि अनुस्सर थेरगा. 734; -- गंध कर्म. स. डांट-डपट नहीं करना - उपगमनं अज्झपगमनं अधिवासना [अप्रतिकूलगन्ध], सुगन्ध, मन को प्रिय लगने वाली गन्ध अप्पटिकोसना - इदं तत्थ पटिआतकरणस्मि, चूळव. - अप्पटिगन्धिकाति अपटिक्कूलगन्धेन उदकेन समन्नागता, 216; 220. जा. अट्ठ. 5.402; - गाहिता स्त्री., [अप्रतिकूलग्राहित्व, अप्पटिक्कोसित त्रि., पटि + vकुस के भू. क. कृ. का निषे. नपुं.], विपरीत रूप में किसी बात को ग्रहण न करने की [अप्रतिक्रुष्ट], नहीं तिरस्कृत, नहीं निराकृत, अनुमोदित, अवस्था, बातों को प्रतिकूल रूप में या विपरीत आशय में अनुमत, समर्थित - एसा सद्धम्मविदूहि गरूहि अप्पटिकोसिता ग्रहण न करना - सहधम्मिके वुच्चमाने सोवचस्सायं अनुमता सम्पटिच्छिता, सद्द. 1.57. सो वचस्सियं सो वचस्सता अप्पटिक लग्गाहिता अप्पटिकोसित्वा पटि + Vकुस के पू. का. कृ. का निषे. अविपच्चनीकसातता सगारवता, ध, स. 1334; पु. प. 130; [अप्रतिक्रुष्य], बुरा-भला न कह कर, खण्डन न करके, - वादी त्रि., [अप्रतिकूलवादी]. प्रतिकूल या विपरीत रूप स्पष्ट रूप से अस्वीकार न करके - अनभिनन्दित्वा में न बोलने वाला, पुरानी बातों को मन में बांध कर द्वेष अप्पटिक्कोसित्वा उट्ठायासना पक्कामि, म. नि. 2.225; म. आदि से प्रभावित होकर न बोलने वाला, अनुकूल रूप में नि. 3.256; अनभिनन्दित्वा अप्पटिक्कोसित्वा पहो पुच्छितब्बो, बोलने वाला, कटु वचनों से अप्रभावित हो स्वयं मृदु वचन म. नि. 3.78. बोलने वाला - खन्ता दुरुत्तानमप्पटिकूलवादी, अधिवासनं अप्पटिक्खित्त त्रि., पटि+vखिप के भू. क. कृ. का निषे. सोत्थानं तदाहु जा. अट्ठ. 4.68; अप्पटिकूलवादीति अक्कोच्छि [अप्रतिक्षिप्त], अप्रतिषिद्ध, नहीं अस्वीकृत, नहीं वर्जित, मं अवधि मन्ति युगग्गाहं अकरोन्तो अनुकूलमेव वदति, जा. अनुमोदित - इदं न कप्पतीति अप्पटिक्खित्तं तञ्चे अकप्पियं अट्ठ. 4.69; - सञी त्रि., [अप्रतिकूलसंज्ञिन्], प्रतिकूल अनुलोमेति, महाव. 327.
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