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अप्पटिजानन्त
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अप्पटिपहरण
ब. व. -धनकामानं उप्पन्नं धनम्पि मातरं अपटिजग्गन्तानं अप्पटिनिस्सज्जन नपुं., पटि + नि+सज के क्रि. ना. नरसतीति मे सुतन्ति, जा. अट्ठ. 5.326; - ग्गित्वा पू. का. का निषे., अपरित्याग - अप्पटिनिस्सग्गोति अत्तना गहितस्स कृ., उचित देखभाल न कर, उचित रूप में ध्यान न देकर - अप्पटिनिस्सज्जनं, विभ. अट्ठ. 465; - रस त्रि., ब. स., वह, मिच्छा चरित्वानाति मातरं अपटिजग्गित्वा, जा. अट्ठ. 5.326;- जिसका कार्य परित्याग को न होने देना है - उपनन ग्गिय त्रि.. सं. कृ., असाध्य, अनुपचार्य, लाइलाज - निलक्खणो उपनाहो, वेर अप्पटिनिस्सज्जनरसो, कोधानुपबन पूतिगत्ततिस्सत्थरोत्वेवस्स नाम उदपादि, अथस्स अपरभागे भावपच्चुपट्टानो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).113. अट्ठीनि भिजिंस सो अप्पटिजग्गियो अहोसि.ध. प. अट्ठ. अप्पटिनिस्सज्जित्वा पटि + नि + Vसज के पू. का. कृ. 1.181.
का निषे., परित्याग न करके, नहीं छोड़ कर - ... दिद्धिं अप्पटिजानन्त त्रि, पटि + Vा के वर्त. कृ. का निषे. अप्पटिनिस्सज्जित्वा समणस्स गोतमस्स सम्मुखीभावं [अप्रतिजानत्]. वचन न देते हुए, प्रतिज्ञा नहीं कर रहा, गच्छेय्यन्ति, दी. नि. 3.9; अप्पटिनिस्सद्वतण्हाति अनुमोदन नहीं कर रहा, सहमत नहीं हो रहा - ... अनु सयकिले स अप्पटिनिस्स-ज्जित्वा ठितत्ता अत्तना उप्पादितभावं अप्पटिजानन्तो ..., उदा. अट्ठ. 15. अप्पटिनिस्सद्वतण्हा, महानि. अट्ठ. 125. अप्पटिञा स्त्री., पटिञा का निषे., तत्पु. स. [अप्रतिज्ञा]. अप्पटिनिस्सह त्रि., पटि + नि + सज के भू, क. कृ. का प्रतिज्ञा का अभाव, अनुमोदन या स्वीकृति का अभाव, निषे. [अप्रतिनिःसृष्ट], क, कर्मवा. में - वह, जिसका अस्वीकृति - पटिञायकरणीयं कम्मं अपटिञाय करोति परित्याग नहीं किया गया है, नहीं त्यागा गया या छोड़ा ... महाव. 424; अप्पटिआय कतं होति- ... समन्नागतं गया, ख. कर्तृ. वा. - नहीं त्यागने वाला - जानं ... दिदि तज्जनीयकम्म अधम्मकम्मञ्च होति, अविनयकम्मञ्च, अप्पटिनिस्सटेन सद्धि सम्भुजिस्सथापि संवसिस्सथापि दुवूपसन्तञ्च, चूळव. 4; ब्राह्मणा अप्पटिञाय तेसं सहापि सेय्यं कप्पेस्सथ, पाचि. 183;- तण्ह त्रि., ब. स., समणब्राह्मणानं, म. नि. 2.395.
वह, जिसने अभी तक तृष्णा का त्याग नहीं किया है - अप्पटिनाद पु./त्रि., [अप्रतिनाद], अद्वितीय नाद या गर्जना अप्पटिनिस्सट्टतण्हाति निस्सरणप्पहानाभावेन भवे पतिहित - तत्थ सीहनादन्ति सेटनादं अभीतनादं अप्पटिनादंअ. अनुसयकिलेसं अप्पटिनिस्सज्जित्वा ठितत्ता अप्पटिनिस्सट्टतण्हा, नि. अट्ठ. 2.175.
महानि. अट्ठ. 125; अमुत्ततण्हा अप्पहीनतण्हा अप्पटिनिस्सग्ग पु.. पटिनिस्सग्ग का निषे. [अप्रतिनिःसर्ग]. अप्पटिनिस्सद्वतण्हाति-अवीततण्हासे भवाभवेसु, महानि. 35. अपरित्याग, अपलायन, पीछे की ओर पैर नहीं खींचना - यो अप्पटिपक्खभाव पु., तत्पु. स. [अप्रतिपक्षभाव], विरोध का पळासो पळासायना ... विवादवानं यगग्गाहो अप्पटिनिस्सग्गो, अभाव, किसी एक तार्किक प्रतिज्ञा के विरुद्ध विरोधी द्वारा अयं वुच्चति पळासो, पु. प. 125; तथा अप्पटिनिस्सग्गे, स्थापित विपरीत प्रतिज्ञा का अभाव - न्हानस्स पापहेतूनं पापिकाय हि दिट्ठिया, उत्त. वि. 516; 932; - मन्ती त्रि., अप्पटिपक्खभावतो, उदा. अट्ठ. 61. [अप्रतिनिसर्गमन्त्रिन्]. परित्याग करने की बात नहीं सोचने अप्पटिपज्जन नपुं. पटिपज्जन का निषे., अनभ्यास, व्यवहार वाला, वाद-विवाद में अपनी स्थापना को नहीं छोड़ने वाला में नहीं उतारना, स्वयं को नहीं लगा देना - यथानुसिट्ठ - ते असञ्जत्तिबला अनिज्झत्तिबला अप्पटिनिस्सग्गमन्तिनो अप्पटिपज्जनतो पदक्खिणेन अनुसासनिं न गण्हातीति तमेव अधिकरणं थामसा परामासा अभिनिविस्स वोहरन्ति अप्पदक्खिणग्गाही अनुसासनि, पारा. अट्ठ. 2.179. अ. नि. 1(1).90; इमे पन न तथा मन्तेन्तीति अप्पटिपज्जमान त्रि., पटिपज्जमान का निषे. अप्पटिनिस्सग्गमन्तिनो, अ. नि. अट्ठ. 2.48.
[अप्रतिपद्यमान], अभ्यास नहीं कर रहा, व्यवहार में आचरण अप्पटिनिस्सज्ज पटि + नि + Vसज के पू. का. कृ. का न करने वाला, स्वयं को न लगा देने वाला - सद्धाविरहितो निषे०, क्षमा याचना न करके, अपने पापकर्म के लिए ... अत्तनो विषये अपटिपज्जमानो विसेसं नाधिगच्छति, सु. पश्चात्ताप का भाव प्रकट न करके - सारिपत्तो आसज्ज नि. अट्ट, 1.113. अप्पटिनिस्सज्ज चारिक पक्कन्तोति, अ. नि. 3(1).190; अप्पटिपहरण नपुं, पटिप्पहरण का निषे. [अप्रतिप्रहार], अप्पटिनिस्सज्जाति अक्खमापेत्वा अच्चयं अदेसेत्वा, अ.नि. उलटकर प्रहार न करना, पलट कर वार न करना - अट्ठ.3.261.
पहरन्तं वा अप्पटिपहरणं, ध, प. अट्ठ. 2.368.
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