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अत्थानिसंस
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अस्थि
वेदितब्ब, म. नि. अट्ठ. 1(1).274; - विचक्खण त्रि., [अर्थानर्थविचक्षण], अर्थ एवं अनर्थ के निर्णय में अतिकुशल -- भूमिया थिरभावत्थं अत्थानत्थविचक्खणो, म. वं. 29.4. अत्थानिसंस पु., ष, तत्पु. स. [अर्थानृशंस्य], वस्तु या पदार्थ के अच्छे गुण, वस्तु या पदार्थ में विद्यमान, प्रशंसनीय तत्त्व - अत्थवसन्ति अस्थानिसंसं अत्थकारणं, स. नि. अट्ठ. 1.235. अत्थानुसारी त्रि., [अर्थानुसारी], अर्थ या यथार्थ सत्य का अनुसरण करने वाला, अर्थ की प्राप्ति में लगा हुआ - सद्धम्म सुणमानस्स यो हि अत्थानुसारिनो, सद्धम्मो.
528.
अत्थानुसासन नपुं. अत्थः + अनुसासन, [अर्थानुशासन], अर्थो या प्रशासनिक विषयों का प्रबंधन - ... ये अत्थानुसासनेसु परिग्गहा .... दी. नि. अट्ठ. 3.104; - सन्थागारसाला स्त्री., प्रशासकीय भवन, सभागार - सन्थागारेति राजकुलानं अत्थानुसासनसन्था - गारसालायं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).169, तुल. अत्थानुसिट्टि. अत्थापगत त्रि., तृ. तत्पु. स. [अर्थापगत], अर्थ से हटा हुआ, अर्थ से रहित, निरर्थक - अत्थापगतं भणितान्ति अस्थतो अपहरन्ति .... महानि. 121; अत्थापगतन्ति अत्थतो अपगतं, अत्थो नत्थीति, महानि. अट्ठ. 226. अत्थापत्ति स्त्री., तत्पु. स. [अर्थापत्ति], स्त्री. सङ्केतित अर्थ, तात्पर्य के आधार पर गृहीत अर्थ, भगवान बुद्ध के जीवनकाल में तथा उनके परिनिर्वाण के पश्चात् भिक्षुओं के अपराध - अत्थतो आपादेत्वा, सु. नि. अट्ठ.2.169; अत्थापत्ति दिवा आपज्जति, नो रत्ति, पारा. अट्ठ. 1.224; परि. 242. अत्थापाय पु.. अत्थ+ अपाय तत्पु. स. [अर्थापाय]. कल्याण, हित अथवा लाभ की क्षति - अत्थापाये जहन्ति नं. जा. अट्ठ. 3.342; अत्थापाये वड्डिया अपगमने परिहीनकाले. तदे... अत्थापेति/अत्थापयति [अर्थायति], अत्थ का ना. धा., वर्त, प्र. पु., ए. व., हितकारक या कल्याणकारक धर्म के विषय में शिक्षा देता है - अत्थं आचिक्खति, अत्थापयति, मो. व्या. 5.13, द्रष्ट, सच्चादीहापि. अत्थाभिसमय पु., अत्थ + अभिसमय, [अर्थाभिसमय], हित का लाभ, इस लोक और परलोक दोनों लोकों से सम्बन्धि त हितों का लाभ या साक्षात्कार - अत्थाभिसमया धीरो, पण्डितोति पवुच्चतीति, इतिवु. 14; अत्थाभिसमया ति दुविष्ट स्सिपि अत्थस्स हितस्स पटिलाभा, इतिवु, अट्ठ. 71, द्रष्ट. अभिसमय.
अत्थार पु., [आस्तार, आ + Vस्तु + घञ्], बिछावन, गलीचा, दरी - न अञत्र पुग्गलस्स अत्थारा अत्थतं होति कथिनं, महाव. 332, तुल. अत्थरण; - क त्रि., अत्थार + क, [आस्तारक], बिछाने वाला, फैलाने वाला - द्विन्न पुग्गलानं अत्थतं होति कथिनं अत्थारकस्स च अनुमोदकस्स च, परि. 326; - मूलक त्रि., [आस्तारमूलक], संघ द्वारा अनुमोदित एवं प्रशंसित कथिन चीवर - आनिसंसो महा होति, यस्स अत्थारमूलको, विन. वि. 2243; अत्थारमूलको ... ति यो च... अनुज्ञातो तस्मिं विहारे उप्पज्जनकचीवर
वत्थानिसंसो, विन. वि. टी. 2.69. अत्थावह त्रि., [अर्थावह], कल्याणकारी, लाभ, हित या भलाई को लाने वाला, उपयोगी - ... यत्थ अत्थावह सुतन्ति, जा. अट्ठ. 3.191. अत्थि क्रि. रू., Vअस का वर्त., प्र. पु., ए. व., [अस्ति],
शा. अ. अस्तित्व में रहता है, पाया जाता है, संभव होता है आदि, ला. अ. विविध प्रकार के अर्थ; क. प्रायः ष. वि. के साथ स्वामित्व-सङ्केतक - इदं ब्राह्मण, मे अस्थि, जा. अट्ठ. 3.45; ख. निमि. कृ. के साथ - गन्तं न हि तीरमपत्थि. सु. नि. 677; ग. प्र. वि. के संज्ञापद के साथ संयोजक क्रि. प. के रूप में भी - असि म. पु., ए. व. - बालोसि, जा. अट्ठ. 2.132; घ. तप्रत्ययान्त अथवा तब्ब-प्रत्ययान्त के साथ सहायक क्रिया के रूप में - वञ्चितो मेसि, जा. अट्ठ. 2.132; - सिया सप्त./प. वि., ए. व. - ... पेसकारसालन्ति वत्तब्बं सिया, ध, प. अट्ठ. 2.99; ङ. यदा-कदा उपवाक्यों में सुनिश्चित अर्थवाली अन्य क्रिया के साथ वाक्य के आरम्भ में प्रयुक्त - अत्थि, भिक्खवे, भिक्ख उम्मत्तको सरतिपि उपोसथं नपि सरति, महाव. 154; - अस्मि वर्त. उ. पु., ए. व. - पञ्चसु उपादानक्खन्धेस अस्मीति अधिगतं, स. नि. 2(1).117; रूपं अस्मीति वदेसि, तदे. अस्मीति, भिक्ख मञितमेतं, म. नि. 3.295; - असि वर्त., म. पु., ए. व. - युवा च दहरो चासि, सु. नि. 422; त्वञ्चासि आगन्तुको, चूळव. 285; केनासि एवं जलितानुभावा .... वि. व. 3; ... सेतकेतु चण्डालेनासि पादन्तरेन गमितो, जा. अट्ठ. 3.204; - अस्म/अस्मु/अस्मा वर्त, उ. पु., ब. व. - ते मे न वज्झा मयमस्म वज्झा, जा. अट्ठ. 1.177; तेविज्जा मयमस्मुभो, सु. नि. 599; आरोहपरिणाहेन, तुल्यास्मा वयसा उभो, जा. अट्ठ. 5.338; - अत्थ वर्तः, म. पु., ब. व. - भातिक, तरुणायेव तावत्थ, ध. प. अट्ट, 1.5; खेमं पत्तत्थ भिक्खवो, म. नि. 1.292; - सन्ति वर्त, प्र. पु.. ब. व. - सन्ति सत्ता
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