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अनुप्पबन्ध
विषय पर प्रज्ञप्त नियम अत्थि तत्थ पञ्ञति, अनुपञ्ञति, अनुष्पन्नपञ्ञति, परि 1: अयहि अनुष्पन्नपञ्ञत्ति नाम अनुप्पन्ने दोसे पञ्ञत्ता, परि. अट्ठ 138; - पुब्ब त्रि., कर्म. स. [ अनुत्पन्नपूर्व] पूर्व काल में अनुत्पन्न, वह जिसकी उत्पत्ति पूर्वकाल में नहीं हुई है- इतो पुब्बे याव सत्तमा राजकुलपरिवट्टा एवरूपं अनुप्यन्नपुबं खु. पा. अड. 130 मोगुप्पत्ति स्त्री. तत्पु, स. [अनुत्पन्नमोगुत्पत्ति], पहले से अप्राप्त भोगसाधनों की प्राप्ति- अदिन्नादाना अनन्तभोगता अनुष्यन्नभोगु व्यत्तिता... खु. पा. अ. 23 - वेवचन नपुं तत्पु, स. [ अनुत्पन्नविवचन] अनुत्पन्न शब्द का पर्याय असञ्जातस्साति इदं अनुष्पन्नवेवचनमेव स. नि. अट्ठ. 1.244.
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अनुप्पबन्ध पु०, अनु + प + √बन्ध से व्यु० क्रि० ना० [ अनुप्रबन्ध], सातत्य, निरन्तरता, लगातारपन, अविच्छिन्न प्रवृत्ति - सुखुमट्ठेन अनुमज्जनसभावद्वेन च घण्टानुरवो विय अनुष्पबन्धो विचारों, ध. स. अड. 160 सत्तस्स उत्पन्न म्मानं अनुप्पबन्धवसेन अविच्छेदाय, म. नि. अट्ठ० (मू०प.) 1 (1) 215; ता स्त्री अनुष्पबन्ध का भाव [अनुप्रबन्धता]. सातत्यपन, निरन्तरता, अविच्छिन्न प्रवृत्ति की अवस्था या स्थिति अनुप्पबन्धता तेस, सन्ततीति पवुच्चति, अभि. अव. 90 पच्चुपद्वान त्रि. ब. स. [ अनुप्रबन्धप्रत्युपस्थान ]. निरन्तरता अथवा अविच्छिन्नता से उदित होने वाला चित्तस्स अनुपबन्धपच्युपद्वानो, ध. स. अड. 160 अभि. अव. 20 भाव पु. तत्पु, स. [अनुप्रबन्धभाव] निरन्तरता की दशा - सुखवोकिण्णत्ता पन अनुपबन्धाभावा च दुज्जानमेतं पुथुज्जनेहीति पारा, अड. 2.55: पाठा, अनुष्पबन्धभावा अनुपबन्धति अनु + पबन्ध का वर्त. प्र. पु. ए. व. [ अनुप्रबध्नाति], लगातार जारी रहता है न्त वर्त. कृ. लगातार जारी रहता हुआ महामेघो अपरापरं अनुष्पबन्धो अभिवरसेय्य मि. प. 135 पाठा. अनुप्पबन्धन्तो धेय्युं विधि. प्र. पु. ब. व., लगातार जारी रहें अन्वास्सर्वयुं अनुबन्धेय्युं अज्झोत्थरेय्यु, ध. स. अ. 420. अनुष्पबन्धनता स्त्री अनुष्पबन्धन का भाव [अनुप्रबन्धता]. निरन्तरता लगातारपन मेघस्स, भन्ते, अनुष्पबन्धतायाति मि. प. 135.
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अनुप्यबन्धना स्त्री. अनुप्पबन्धन से व्यु [अनुप्रबन्धन]. लगातारपन या निरन्तरता ठपना सण्ठपना अनुसंसन्दना अनुष्पबन्धना दहीकम्म कोधस्स पु. प. 124 विभ. 412: अनुष्पबन्धनाति पुरिमेन सद्धिं पच्छिमस्स घटना, विभ. अड्ड.
अनुप्पादन
464; अनुप्पबन्धता तेसं, सन्ततीति पवुच्चति, अभि. अव.
90.
अनुप्पबन्धापेय्युं अनु पबन्ध के प्रेर. का विधि, प्र. पु०, ब० व., लगातार जारी रखने को प्रेरित करें, निरन्तर बनाए रखने को कहें - यदि तत्थ अपरापरं अनुप्पबन्धापेच्यु अभिवस्सापेप्यु. मि. प. 135. अनुप्ययोग पु. [ अनुप्रयोग] पूर्ववर्ती शब्द के ही समान अर्थ में दूसरे शब्द का अतिरिक्त रूप में प्रयोग - ब्यापाराभेदे तु सामञ्ञवचनस्सेव ब्यापकत्ता अनुपयोगो भवति, ओदनं भुञ्ज, यागुम्पिव, धाना खादेत्वेवायमज्झो हरति, मो. व्या. 6.13 पाठा. अनुपयोगो वचन नपुं. कर्म. स. पूर्ववर्ती शब्द के समान अर्थ में प्रयुक्त शब्द तं सरूपतो दस्सेतुं असम्मोहत्थ अनुपयोगवचनं पारा. अड. 2.278. अनुष्पवच्चति देखिए अनुपवेच्चति के अन्त... अनुष्पाद पु. उप्पाद का निषे [ अनुत्पाद]. शा. अ. उत्पत्ति का अभाव, अप्रादुर्भाव, अस्तित्व में न आना, निरोध, ला. अ. निर्वाण यथा च पहीनस्स कामच्छन्दस्स आयतिं अनुष्यादो होति तञ्च पजानाति म. नि. 1.78; निरोधों होतीति अनुष्पादो होति. म. नि. अड. (भू.प.) 1 (2).204; उप्पादो सङ्घारा, अनुप्पादो निब्बानन्ति अभिज्ञय्यं, पटि म. 14 उप्पादो भयं अनुप्पादों खेमन्तिआदि विपक्खपटिपक्खक्सेन उभयं समासेत्वा पटि म. अड्ड.
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अकुसलानं धम्मानं
1.222 दाय च वि. ए. व. अनुष्पादाय छन्द जनेति म. नि. 2.213 दा प. वि. ए. व. [ अनुत्पादात्], उत्पत्ति न होने के कारण, निरोध हों जाने से अनुष्पादा वा तथागतानं अ. नि. 1 ( 1 ) 321: दे सप्त, वि. ए. व. [अनुत्पादे] उत्पत्ति न होने पर खयेञाणं अनुप्पादेञाणं, दी. नि. 3. 171; - धम्म त्रि०, ब० स० [अनुत्पादधर्म] पुनः पुनर्जन्म को ग्रहण न करने वाला - अनभावकतो आयतिं अनुष्यादधम्मो ति पजानाति दी. नि. 3.216 पारा 4 धम्मता स्त्री. भाव. [अनुत्पादधर्मता ]. पुनः पुनर्जन्म ग्रहण न करने की अवस्था या स्थिति सा मग्गस्स भावितत्ता अनुष्पादधम्मत आपज्जनेन खीणा, उदा. अ. 140 निरोध पु तत्पु. स. [ अनुत्पादनिरोध]. पूर्णरूप से पुनर्जन्म की समाप्ति या निरोध असेसं निस्सेसं विरागेन अरियमग्गेन यो अनुप्पादनिरोधो, तं निब्बानन्ति उदा. अट्ठ 174; 40 99.
अनुष्पादन नपुं. उप्पादन का निषे [अनुत्पादन] उत्पन्न न करना, उपेक्षा, उत्पादन का न रह जाना तम्पि
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