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अपुट्ठ
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अपुप्फित 1(2).74; - ञायतन नपुं.. तत्पु. स. [अपुण्यायतन], अपुनगेय्य त्रि., पुनगेय्य का निषे. [अपुनर्गेय], फिर दुबारा अपुण्य का आगमन-द्वार, अपुण्य की आधार-स्थली - एतं न दुहराने योग्य अथवा न पाठ करने योग्य - अपुञायतनं विवज्जये, उम्मादनं मोहनं बालकन्तं, सु. नि. बहलाधिकारतो असमत्थेहि पि केहिचि होति - अपनगेय्या 401; - पग त्रि., उप. स. [अपुण्योपग], अपुण्य कर्म गाथा, मो. व्या. 3.12. के विपाक के समीप पहुंच रहा, अकुशल विपाक को कर अपुनप्पुनं अ., अकार निपातमात्र, नहीं बारम्बार, नहीं और रहा - अपुञ्जूपगं होति विज्ञाणं, स. नि. 1(2).74. आगे - नाहं पुनं न च पुन, न चापि अपुनप्पुन, जा. अट्ठ. अपुट्ठ त्रि., vपुच्छ के भू. क. कृ. पुट्ठ का निषे. [अपृष्ठ]. नहीं 1.479; तत्थ न चापि अपुनप्पुनन्ति अकारो निपातमत्तो, पूछा हुआ, वह, जिसे किसी ने पूछा नहीं है - अपुट्ठोति जा. अट्ठ. 1.480... मूलपदं, तस्स अपुच्छितोति अत्थो, महानि. अट्ठ. 155. अपुनमव पु.. पुनब्भव का निषे. [अपुनर्भव]. शा. अ. अपुत्त पु., निषे. तत्पु. स. [अपुत्र]. वह, जो पुत्र नहीं है, पुत्र पुनर्जन्म का अभाव, ला. अ. पूर्ण विमुक्ति, निर्वाण - ते से भिन्न कोई और - अपुत्तं पुत्तं इव आचरति पुत्तीयति दुत्तरं ओघमिमं तरन्ति, अतिण्णपुब्बं अपुनभवाया ति, सु. सिस्सं आचरियो, सद्द. 2.587; - क' त्रि.. ब. स. [अपुत्रक, नि. 275; ये च नं विनोदेन्ति, ते दुत्तरं ओघमिमं तरन्ति पुत्ररहित, बिना पुत्रों वाला - ... राजा अपुत्तको हुत्वा अतिण्णपुब्बं अपुनभवाय, सु. नि. अट्ठ. 2.37; मग्गञ्च अत्तनो इथियो पुत्तपत्थनं करोथा ति आह, जा. अट्ठ 2.272; लद्धा अपुनभवाय, न पुनप्पुनं जायति भूरिपओ ति, स. नि. तं अपुत्तको सेट्टि तस्स मातापितून धनं दत्वा पुत्तं कत्वा 1(1).203; ... अपुनभवायाति अपुनब्भवाय मग्गो नाम अग्गहेसि. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).284; सो हि राजकुमारो निब्बानं तं लभित्वाति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.227; - भूत अपुत्तको, सुतञ्चानेन अहोसि, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.229; त्रि.. [अपुनर्भवभूत], पुनर्जन्म से रहित, पुनर्जन्म न लाने - क' पु., व्य. सं., एक व्यापारी का नाम - हनन्ति भोगाति वाला - अभिनिब्बत्ति च नाम यस्मा पुनब्भवभूतापि इमं धम्मदेसनं ... विहरन्तो अपुत्तकसेटिं नाम आरम अपुनभवभूतापि, पारा. अट्ठ. 1.100; अ. नि. अट्ट 3.202. कथेसि.ध. प. अट्ट, 2.325; - तिका स्त्री., बिना पुत्रों वाली अपुनरावती त्रि., पुनरावत्ती का निषे. [अपुनरावर्तिन, स्त्री- दुग्गताहं पुरे आसिं, विधवा च अपुत्तिका, थेरीगा. गृहस्थ जीवन/सांसारिक जीवन में पुनः वापस न लौटने 122; सा पन अपुत्तिका, तेनस्सा थऑनस्थि, जा. अट्ठ. वाला - गिही येव ... यदा अपुनरावत्ति होति तदा सो 5.425; - कं नपुं., प्रायः सापतेय्यं के विशे के रूप में पब्बाजेतब्बो, मि. प. 231; - त्तिता स्त्री.. अपुनरावत्ति का प्रयुक्त, उत्तराधिकारी-रहित, वारिस-रहित - मा नो अपत्तकं भाव., गृही जीवन में पुनः वापस न लौटना, गृही या सापतेय्यं लिच्छवयो अतिहरापेसुन्ति, पारा. 18; मा नो । सांसारिक जीवन के प्रति अनासक्तिभाव- अगेधता निरालयता अपुत्तकं सापतेय्यं लिच्छवयो अतिहरापेसुन्ति मयज्हि लिच्छवीनं चागो पहानं अपुनरावत्तिता सुखुमता ... बुद्धधम्मस्स, मि. गणराजूनं रज्जे वसाम, पारा. अट्ठ. 1.163; - कता स्त्री., प. 257; - गमनदीपनीयमकगाथा स्त्री.. जिना. के एक भाव. [अपुत्रकता]. पुत्रहीनता, सन्तानरहितता, निपूतापन, गाथासमुच्चय का शीर्षक, जिना. (12) 78-86. वंशोच्छेद - अपुत्तकताय पटिपन्नो समणो गोतमो, महाव. अपुनागमन नपुं.. पुनागमन का निषे॰ [अपुनरागमन], शा. 48; - भाव पु., किसी के पुत्र या वारिश न होने की दशा अ. इस लोक में पुनः नहीं आना, पुनर्जन्म का न होना, - अथ नं विनिच्छय नेत्वा अपुत्तभावं कत्वा नीहरापेसि, जा. वापस न लौटना, ला. अ. निर्वाण - येसु पमत्तो अपनागमनं. अट्ठ. 5.464; - सुत्त नपुं., स. नि. के दो सुत्तों के शीर्षक, अनागतो पुरिसो मच्चुधेय्या ति, स. नि. 1(1),26; अपुनागमनं स. नि. 1(1).107-109; तथा 109-111; - सेद्विवत्थु नपुं.. ... तेभूमकवट्टसङ्घाता मच्चुधेय्या अपुनागमनसतातं निब्बानं ध. प. अट्ठ. के एक कथानक का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. अनागता, स. नि. अट्ठ. 1.57. 2.325-327.
अपुष्फित त्रि., पुप्फित का निषे. [अपुष्पित], फूलों को अपुथुज्जनसेवित त्रि., पुथुज्जनसे वित का निषे. धारण न किया हुआ, नहीं फूला हुआ - द्वान नपुं.. [अपृथग्जनसेवित], सामान्य अज्ञानी जनों द्वारा नहीं अपनाया [अपुष्पित स्थान], ऐसा स्थान, जहां पुष्प फूले न हों - गया, अज्ञानियों द्वारा अगृहीत - अकम्पियं अतुलियं, मूलतो पडाय याव अग्गा अपुफितद्वानं नाम नत्थि म. नि. अपुथुज्जनसेवितं, थेरीगा. 201.
अट्ठ. (मू.प.) 1(2).148.
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