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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपुट्ठ 404 अपुप्फित 1(2).74; - ञायतन नपुं.. तत्पु. स. [अपुण्यायतन], अपुनगेय्य त्रि., पुनगेय्य का निषे. [अपुनर्गेय], फिर दुबारा अपुण्य का आगमन-द्वार, अपुण्य की आधार-स्थली - एतं न दुहराने योग्य अथवा न पाठ करने योग्य - अपुञायतनं विवज्जये, उम्मादनं मोहनं बालकन्तं, सु. नि. बहलाधिकारतो असमत्थेहि पि केहिचि होति - अपनगेय्या 401; - पग त्रि., उप. स. [अपुण्योपग], अपुण्य कर्म गाथा, मो. व्या. 3.12. के विपाक के समीप पहुंच रहा, अकुशल विपाक को कर अपुनप्पुनं अ., अकार निपातमात्र, नहीं बारम्बार, नहीं और रहा - अपुञ्जूपगं होति विज्ञाणं, स. नि. 1(2).74. आगे - नाहं पुनं न च पुन, न चापि अपुनप्पुन, जा. अट्ठ. अपुट्ठ त्रि., vपुच्छ के भू. क. कृ. पुट्ठ का निषे. [अपृष्ठ]. नहीं 1.479; तत्थ न चापि अपुनप्पुनन्ति अकारो निपातमत्तो, पूछा हुआ, वह, जिसे किसी ने पूछा नहीं है - अपुट्ठोति जा. अट्ठ. 1.480... मूलपदं, तस्स अपुच्छितोति अत्थो, महानि. अट्ठ. 155. अपुनमव पु.. पुनब्भव का निषे. [अपुनर्भव]. शा. अ. अपुत्त पु., निषे. तत्पु. स. [अपुत्र]. वह, जो पुत्र नहीं है, पुत्र पुनर्जन्म का अभाव, ला. अ. पूर्ण विमुक्ति, निर्वाण - ते से भिन्न कोई और - अपुत्तं पुत्तं इव आचरति पुत्तीयति दुत्तरं ओघमिमं तरन्ति, अतिण्णपुब्बं अपुनभवाया ति, सु. सिस्सं आचरियो, सद्द. 2.587; - क' त्रि.. ब. स. [अपुत्रक, नि. 275; ये च नं विनोदेन्ति, ते दुत्तरं ओघमिमं तरन्ति पुत्ररहित, बिना पुत्रों वाला - ... राजा अपुत्तको हुत्वा अतिण्णपुब्बं अपुनभवाय, सु. नि. अट्ठ. 2.37; मग्गञ्च अत्तनो इथियो पुत्तपत्थनं करोथा ति आह, जा. अट्ठ 2.272; लद्धा अपुनभवाय, न पुनप्पुनं जायति भूरिपओ ति, स. नि. तं अपुत्तको सेट्टि तस्स मातापितून धनं दत्वा पुत्तं कत्वा 1(1).203; ... अपुनभवायाति अपुनब्भवाय मग्गो नाम अग्गहेसि. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).284; सो हि राजकुमारो निब्बानं तं लभित्वाति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 1.227; - भूत अपुत्तको, सुतञ्चानेन अहोसि, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.229; त्रि.. [अपुनर्भवभूत], पुनर्जन्म से रहित, पुनर्जन्म न लाने - क' पु., व्य. सं., एक व्यापारी का नाम - हनन्ति भोगाति वाला - अभिनिब्बत्ति च नाम यस्मा पुनब्भवभूतापि इमं धम्मदेसनं ... विहरन्तो अपुत्तकसेटिं नाम आरम अपुनभवभूतापि, पारा. अट्ठ. 1.100; अ. नि. अट्ट 3.202. कथेसि.ध. प. अट्ट, 2.325; - तिका स्त्री., बिना पुत्रों वाली अपुनरावती त्रि., पुनरावत्ती का निषे. [अपुनरावर्तिन, स्त्री- दुग्गताहं पुरे आसिं, विधवा च अपुत्तिका, थेरीगा. गृहस्थ जीवन/सांसारिक जीवन में पुनः वापस न लौटने 122; सा पन अपुत्तिका, तेनस्सा थऑनस्थि, जा. अट्ठ. वाला - गिही येव ... यदा अपुनरावत्ति होति तदा सो 5.425; - कं नपुं., प्रायः सापतेय्यं के विशे के रूप में पब्बाजेतब्बो, मि. प. 231; - त्तिता स्त्री.. अपुनरावत्ति का प्रयुक्त, उत्तराधिकारी-रहित, वारिस-रहित - मा नो अपत्तकं भाव., गृही जीवन में पुनः वापस न लौटना, गृही या सापतेय्यं लिच्छवयो अतिहरापेसुन्ति, पारा. 18; मा नो । सांसारिक जीवन के प्रति अनासक्तिभाव- अगेधता निरालयता अपुत्तकं सापतेय्यं लिच्छवयो अतिहरापेसुन्ति मयज्हि लिच्छवीनं चागो पहानं अपुनरावत्तिता सुखुमता ... बुद्धधम्मस्स, मि. गणराजूनं रज्जे वसाम, पारा. अट्ठ. 1.163; - कता स्त्री., प. 257; - गमनदीपनीयमकगाथा स्त्री.. जिना. के एक भाव. [अपुत्रकता]. पुत्रहीनता, सन्तानरहितता, निपूतापन, गाथासमुच्चय का शीर्षक, जिना. (12) 78-86. वंशोच्छेद - अपुत्तकताय पटिपन्नो समणो गोतमो, महाव. अपुनागमन नपुं.. पुनागमन का निषे॰ [अपुनरागमन], शा. 48; - भाव पु., किसी के पुत्र या वारिश न होने की दशा अ. इस लोक में पुनः नहीं आना, पुनर्जन्म का न होना, - अथ नं विनिच्छय नेत्वा अपुत्तभावं कत्वा नीहरापेसि, जा. वापस न लौटना, ला. अ. निर्वाण - येसु पमत्तो अपनागमनं. अट्ठ. 5.464; - सुत्त नपुं., स. नि. के दो सुत्तों के शीर्षक, अनागतो पुरिसो मच्चुधेय्या ति, स. नि. 1(1),26; अपुनागमनं स. नि. 1(1).107-109; तथा 109-111; - सेद्विवत्थु नपुं.. ... तेभूमकवट्टसङ्घाता मच्चुधेय्या अपुनागमनसतातं निब्बानं ध. प. अट्ठ. के एक कथानक का शीर्षक, ध. प. अट्ठ. अनागता, स. नि. अट्ठ. 1.57. 2.325-327. अपुष्फित त्रि., पुप्फित का निषे. [अपुष्पित], फूलों को अपुथुज्जनसेवित त्रि., पुथुज्जनसे वित का निषे. धारण न किया हुआ, नहीं फूला हुआ - द्वान नपुं.. [अपृथग्जनसेवित], सामान्य अज्ञानी जनों द्वारा नहीं अपनाया [अपुष्पित स्थान], ऐसा स्थान, जहां पुष्प फूले न हों - गया, अज्ञानियों द्वारा अगृहीत - अकम्पियं अतुलियं, मूलतो पडाय याव अग्गा अपुफितद्वानं नाम नत्थि म. नि. अपुथुज्जनसेवितं, थेरीगा. 201. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).148. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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