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अपिलापन
अपिहित बहाव का अभाव, छलांग-रहित, ला. अ. अविस्मरण, नहीं नहीं देता है, स्मृति में ला देता है - सति कुसले धम्मे भूल जाना, पुनः पुनः बोलना - अपिलापे करोति अपिलापेति. अपिलापेति-इमे चत्तारो सतिपट्टाना, ..., ध. स. अट्ठ. म. नि. टी. (मू.प.) 1(1).155.
166; सति
उप्पज्जमाना अपिलापन नपुं.. पिळु के प्रेर. से व्यु. पिलापन का निषे. कुसलाकुसलसावज्जानवज्जहीनपणीतकण्हसुक्कसप्पअथवा अपि + Vलप से व्यु. [अप्लावन]. शा. अ. बाढ़ या टिभागधम्मे अपिलापेति, मि. प. 35. जल-प्रलय में निमग्न नहीं हो जाना या डूब न जाना, बार- अपिवन्तियो स्त्री., vपा के वर्त. कृ. का प्र. वि., ब. व., बार दुहराना ला. अ. अविस्मरण, नहीं भूल जाना, अप्रभोष (पिबन्तियो) का निषे. [अपिबन्त्यः], नहीं पी रहीं, जल का - अपिलापनं असम्मोसो निमुञ्जित्वा विय आरम्मणस्स पान न ही कर रहीं - यथा ता तिणं अखादन्तियो पानीयं ओगाहणे वा, नेत्ति. अट्ठ. 220; सा पजाननटेन पञ्जा, अपिवन्तियो सयन्ति, तथा सयन्तीति अत्थो, जा. अट्ठ. 5.18. यथादिट्ठ अपिलापनढेन सति, नेत्ति. 15; आरम्भढेन वीरियं अपिसुण त्रि., पिसुण का निषे., तत्पु. स. [अपिशुन], शा. अपिलापनढेन सति अविक्खेपढेन समाधि, पजाननटेन पञ्जा, अ. चुगली न करने वाला, ला. अ. चुगलखोरी से रहित, नेत्ति. 45; - किच्च नपुं, तत्पु. स., अविस्मरण का कृत्य, सज्जन, निष्ठावान् व्यक्ति - नानुम्मत्तो नापिसुणो, नानये नहीं भूल जाने का कार्य, स्मृति को जागृत रखने की क्रिया नाकुतूहलो, जा. अट्ठ. 2.347; नापिसुणोति एत्थापि यो - सतिया च अपिलापनकिच्चं साधेन्तिया लद्धपकारो हुत्वा पिसुणो होति, तदे, अपिसुणं वाचं निस्साय पिसुणा वाचा सक्कोति, विभ. अट्ठ. 84; - ता स्त्री., अपिलापन का भाव. पहातब्बाति, म. नि. 2.26. [अप्लावनता], अविस्मरण की अवस्था, नहीं भूल जाना, अपिह त्रि., पिहा का निषे., ब. स. [अस्पृह], स्पृहा या अविप्रमोष, स्मृति की जागरूकता - सति सरणता धारणता इच्छा से रहित, कामनाओं से मुक्त - अपिहा नूनं मयिपि, अपिलापनता असम्मुस्सनता सति सतिन्द्रियं सतिबलं वनथो तेन विज्जति, थेरगा. 338; - नसील त्रि., ब. स. सम्मासति, ध. स. 14; 23; 290; तेनेव सद्धा ओकप्पनाति अस्पृहणशील], स्वभाव से ही लोभ-लालच से मुक्त, स्वभाव वुत्ता, सति अपिलापनताति, समाधि अवहितीति, पञआ। से ही कामनाओं से रहित - अपिहालूति अपिहनसीलो, परियोगाहनाति, ध. स. अट्ठ. 188; - भाव पु., तत्पु. स... पत्थनातण्हाय रहितोति वुत्तं होति, सु. नि. अट्ट. 2.241. उपरिवत् - अनुपविसनसङ्घातेन ओगाहनढेन अपिलापनभावो अपिहा स्त्री., पिहा का निषे. स॰ [अस्पृहा], कामना या तृष्णा अपिलापनता, ध. स. अट्ठ. 191; - रस त्रि., ब. स., विस्मृत का अभाव - अपिहा नूनं मयिपि, वनथो ते न विज्जति, न कर देने का कार्य करने वाला, वह, जिसका कार्य स्मृति थेरगा. 338; - गिध त्रि., ब. स. [अस्पृहगृध], ईर्ष्या, द्वेष को विलुप्त न होने देना है - इमे चत्तारो सतिपट्ठानाति एवं लोभ-लालच से रहित, राग और द्वेष से मुक्त चित्त वाला वित्थारो, अपिलापनरसा, किच्चवसेनेव हिस्स एतं लक्खणं - विचरन्तं तमद्दक्खिं पिण्डत्थं अपिहागिधं, अप. 2.126; - थेरेन वुत्तं. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).90; - लक्ख ण त्रि.. लु त्रि.. [अस्पृहालु], अत्यधिक तृष्णा या आसक्ति को न ब. स. [अप्लावनलक्षण], वह, जिसका लक्षण स्मृति को रखने वाला - अपिहालूति अपिहनसीलो, पत्थनातण्हाय मिटाना या धुंधला करना न हो- अपिलापनलक्खणा सति, रहितोतिवुत्तं होति, सु. नि. अट्ठ. 2.241; पतिलीनो अकुहको, तस्सा सतिपट्टानं पदट्ठान, नेत्ति. 25; सा पनेसा अपिहालु अमच्छरी, सु. नि. 858; दब्बो चिररत्तसमाहितो, उपट्ठानलक्खणा, अपिलापनलक्खणा वा, म. नि. अट्ठ. अकुहको निपको, अपिहालु, स. नि. 1(1).217; - लुक त्रि., (मू.प.) 1(1).89; अपरो नयो - अपिलापनलक्खणा सति, अपिहालु से व्यु., उपरिवत् - तेन अलङ्करणेन ध. स. अट्ठ. 167.
अनपेक्खणसीलो, अपिहालुको, नित्तण्हो, विभूसनहाना विरतो अपिलापिस पु., व्य. सं., एक चक्रवर्ती राजा का नाम - सच्चवादी एको चरेति, सु. नि. अट्ठ. 1.89.
छळासीतिम्हितो कप्पे, अपिलासिसनामको, अप. 1.209. अपिहित' त्रि., पिहित का निषे. [अपिहित], खुला हुआ, नहीं अपिलापेति प + Vलप के प्रेर. के वर्त, प्र. पु., ए. व. का वर्जित, नहीं बन्द किया हुआ - अनोवटोति अपिहितो निषे. [अप्रलापयति/अभिलापयति], शा. अ. छिपाकर अवारितो अप्पटिक्खित्तो, पाचि. अट्ठ. 58; - द्वारता स्त्री., नहीं रखवाता है, टालमटोल नहीं कराता है, बार बार भाव., द्वारों का खुला हुआ होना, द्वारों का बन्द न रहना - दुहराता है; ला. अ. विलुप्त नहीं होने देता है, भुलाने अनावटद्वारतायाति अपिहितद्वारताय, दी. नि. अट्ठ. 3.126.
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