________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अपिहित
403
अपुञ
अपिहित त्रि., आ + अपि + vधा से व्यू. [आपिहित], बन्द, अवरुद्ध - सब्बे अपिहिता द्वारा, ओरुद्धोस्मि यथा दिजो. जा. अट्ट, 4.4; अपिहिताति थकिता, तदे... अपीठसप्पी त्रि., पीठसप्पी का निषे. [अपीठसर्पिन्], वह, जो लंगड़ा लूला या विकलाङ्ग नहीं है, अविकलाङ्ग - तात तेमियकुमार मयं तव अपीठसप्पिंआदिभावं जानाम, जा. अट्ठ. 6.9. अपीत त्रि., vपा के भू, क. कृ. पीत का निषे. [अपीत], नहीं पिया हुआ, शुद्ध - अहि मिगेहि पठमतरं अपीतानि अनुच्छिट्ठोदकानि, जा. अट्ठ. 3.383; - पुब्ब त्रि., ब. स. [अपीतपूर्व], वह जल, जिसे पूर्वकाल में नहीं पिया गया है, पहले कभी न पिया गया -- अपीतपब्बानि च पाणीयानि पिवेय्यान्ति, अ. नि. 3(1).225. अपीळियमान त्रि.. पीळ के कर्म. वा. का वर्त. कृ. [अपीड्यमान], पीड़ा द्वारा पीडित नहीं किया जा रहा - अपरापरं परिवत्तनं अकरोन्तो अपीळियमानो अक्खियमानो विय अधिवासेसि. उदा. अट्ठ. 325; अविहञमानोति अपीळियमानो, सम्परिवत्तसायिताय वेदनानं वसं अगच्छन्तो, स. नि. अट्ठ. 1.71. अपुच्चण्डता स्त्री., भाव. [अपूत्यण्डता]. शा. अ. सड़े गले अण्डे की अवस्था में न रहना, ला. अ. स्वस्थ मानसिक स्थिति -- अपुच्चण्डताय समापन्नो, भब्बो अभिनिभिदाय, भब्बो सम्बोधाय, म. नि. 2.21; अपुच्चण्डतायाति अपूतिअण्डताय, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.23. अपुच्छित त्रि., पुच्छ के भू. क. कृ. पुच्छित का निषे.. नहीं पूछा गया, अयाचित, अप्रार्थित - अनानुपुट्ठोति अपुच्छितो, सु. नि. अठ्ठ 2216; अनानुपुट्ठोति अपुट्ठो अपुच्छितो अयाचितो
अनज्ोसितो अपसादितो, महानि. 48. अपुच्छितब्ब त्रि., vपुच्छ के सं. कृ., पुच्छितब्ब का निषे. [अपृष्टव्य], नहीं पूछने योग्य, प्रश्न करने हेतु अनुपयुक्त - महाराज, विसज्जको अत्थी ति अपछिछतब्बं पुच्छि, किस्स
आकासो निरालम्बो, मि. प. 272. अपुञ 1. त्रि.. ब. स., कलुषित व्यक्ति, पाप करने वाला, पापमय, पुण्य या कुशल कर्मों से रहित - अपुझंचे सद्धार अभिसङ्करोति, स. नि. 1(2).74; अपुज चे सङ्कारन्ति द्वादसचेतनाभेदं अपुजाभिसङ्घारं अभिसङ्घरोति. स. नि. अट्ट. 2.69; 2. नपुं.. निषे. स. [अपुण्य], पाप कर्म, अकुशल कर्म - अपुञाकुसलं कण्हं कलुसं दुरितागु च, अभि. प. 84; अपुजवुच्चति सब्ब अकुसलं. महानि. 64; बहुञ्च त्वं,
देवते, अपुजंपसवेय्यासि. पाचि. 52; - कर त्रि०, उप. स. [अपुण्यकृत]. पुण्यकर्म न करने वाला, अकुशल कर्मो को करने वाला - अप्पस्सुतापुञ्जकरो, अप्पस्मि इध जीविते, इतिवु. 44; अपुञ्जकरोति ततो एव अरियधम्मस्स अकोविदताय किब्बिसकारी पापधम्मो, इतिवु. अट्ठ. 193; - किरिया स्त्री., कर्म. स. [अपुण्यक्रिया], पुण्य न देने वाला कर्म, स. उ. प. के रूप में ही प्राप्त; -- वत्थूनि नपुं.. प्र. वि., ब. व., अपुण्य कराने वाले प्राणि-हत्या आदि दस प्रकार के दुराचार - अपुञ्जकिरियवत्थूनि दस होन्तीति दीपये, सद्धम्मो. 54; - ता स्त्री., अपुञ का भाव. [अपुण्यता]. पुण्य कर्मों को न करने की अवस्था, पापमयता - अप्पपुञताति अपुञता अकतकल्याणता, पे. व. अट्ठ. 236; - पटिपदा स्त्री., कर्म. स., दुराचार का मार्ग, पापमय मार्ग - निरयं पापकम्मन्ताति अपुञप्पटिपदा, ... तत्थ या च पुञप्पटिपदा या च अपुञप्पटिपदा ..., नेत्ति. 79; - भागिय त्रि., अपने पाप कर्मों के अनुरूप रहने वाला - दुच्चरितपारिपूरिया अपाये निवत्तस्स अत्तभावो अपुञभागियो नाम, अ. नि. अट्ठ. 3.137; वेदियमानो तज्जं तज्ज अत्तभावं अभिनिब्बत्तेति पुञभागियं वा अपुञभागियं वा, अ. नि. 2(2).116; - लाभ पु.. तत्पु. स. [अपुण्यलाभ], अकुशल कर्मों के फलस्वरूप नरक आदि में पुनर्जन्म के रूप में अकुशल-विपाक का लाभ -- अपुञलाभ न निकामसेय्यं, निन्दं ततीयं निरयं चतुत्थं ध, प. 309; अपुञलाभन्ति अकुसललाभ, ध. प. अट्ठ. 2.275; अपुञलाभो च गती च पापिका, भीतस्स भीताय रती च थोकिका, ध. प. 310; अपुञलाभो चाति एवं तस्स अयञ्च अपुञलाभो, तेन च अपुञ्जेन निरयसखाता पापिका गति होति, ध. प. अट्ठ. 275; - वन्तु त्रि.. [अपुण्यवत्]. पुण्यों का संग्रह न करने वाला, पुण्यकर्म न करने वाला, पापी - ... पुञ्जवन्तं वा अपुञवन्तं वा ब्रह्मचरियवन्तं वा अब्रह्मचरियवन्तं वा ... पब्बाजेतुं वाति, म. नि. 2.338; - वत्थु नपुं.. कर्म, स., अपुण्य कर्म या अकुशलकर्म, पुण्यरहित प्राणातिपात आदि दस अकुशलधर्म - दस चापुञवत्थूनि यथा फलवसेन हि, सद्धम्मो. 75; - जाभिसङ्खार पु., तत्पु. स. [अपुण्याभिसंस्कार], अकुशल कर्मों का समुच्चय या राशि, अकुशल कर्मों का चेतना द्वारा अभिसंस्करण -- तयो सवारा-पुञाभिसङ्घारो, अपुञाभिसङ्घारो, आनेजाभिसङ्घारो, दी. नि. 3.174; अपुओ च सो अभिसङ्घारो चाति अपुञाभिसवारो, दी. नि. अट्ठ. 3.164; .... न अपआभिसवारं अभिसङ्करोति न आनेज्जाभिसङ्घारं अभिसङ्करोति, स. नि.
For Private and Personal Use Only