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अनुसन्धीयति
अनुसयिक/अनुसायिक अनुसन्धियोजनाक्कमेन वित्थारो, सु. नि. अट्ट, 1.194; - पापका अकुसला धम्मा, नेत्ति. 18; पञआय अनुसया पहीयन्ति, वचन नपुं.. तत्पु. स. [अनुसन्धिवचन], भगवान् बुद्ध के नेत्ति. 14; स. उ. प. के रूप में अधिट्ठानाभिनिवेशानु.. वचनों के साथ जुड़े हुए श्रावकों के वचन - किं .... अननु, अविज्जानु., अहङ्कारम्मकारमानानु०, कामरागानु.. अनुसन्धिवचनं नीतत्थं नेय्यत्थं संकिलेसभागिय निब्बेधभागियं तण्हानु., दिट्ठानु.. दिट्ठिमानानु., मानानु., रागानु.. असेक्खभागियं, नेत्ति. 20; अनुसन्धिवचनन्ति सावकभासितं विचिकिच्छानु., व्यापादानु., सक्कायदिट्ठानु., सानु.. तहि भगवतो वचनं अनुसन्धेत्वा पवत्तनतो अनुसन्धिवचनान्ति सीलब्बतपरामासानु के अन्त. द्रष्ट; - जालमोत्थत त्रि., वृत्तन्ति, नेत्ति. अट्ठ. 208; - वचनपथ पु. तत्पु. स. अनुशयों अथवा चित्तसन्तति में सोये हए अकुशल मनोभावों [अनुसन्धिवचनपथ]. परस्परसम्बन्ध या प्रयोग को दरसाने के जाल में फंसा हुआ - ओघसंसीदनो कायो, वाले वचन के प्रकार - .... अनुसन्धिवचनपथं न जानाति, अनुसयजालमोत्थतो, थेरगा. 572; तेस जालेन ओत्थतो परि. 255; अनुसन्धिवचनपथन्ति कथानुसन्धि - अभिभूतोति अनुसयाजालमोत्थतो. थेरगा. अट्ठ. 2.170; - विनिच्छयानुसन्धिवसेन वत्थु न जानाति, परि. अट्ठ. 177. पटिपक्ख पु., तत्पु. स. [अनुशयप्रतिपक्ष], अनुशयों का अनुसन्धीयति अनु + सं + vधा के कर्म. वा. का वर्त., प्र. अभाव या उच्छेद - पञआय अनुसयपटिपक्खो, विसुद्धि. पु., ए. व. [अनुसन्धीयते]. सम्बद्ध कराया जाता है, 1.6; - पजहन नपुं., अनुशयों का परित्याग या विनाशसुसङ्गतरूप में जोड़ दिया जाता है - केचि निब्बानं वदन्ति, मग्गस्स हि एकमेव किच्चं अनुसयप्पजहनं, ध. स. अट्ठ. तं पुरिमपदेन नानुसन्धीयति, खु. पा. अट्ठ. 124; - न्घेतो 275; - पहान नपुं.. तत्पु. स. [अनुशयप्रहाण], अनुशयों वर्त. कृ. [अनुसन्धीयमान], अनुसन्धि या परस्पर-सम्बन्ध का उच्छेद या निरोध - अविज्जानिरोधाति अरियमग्गेन को सुसङ्गतरूप में बैठाता हुआ - ... अनुसन्धेन्तो भिक्खूनं अविज्जाय अनवसेसनिरोधा, अनुसयप्पहानवसेन अग्गमग्गेन धम्मकथं कथेसि, खु. पा. अट्ठ. 158.
अविज्जाय.... उदा. अट्ठ. 38-39; - यमक नपुं.. यम. के अनुसम्पवङ्कता स्त्री, अनु + सम्पवङ्क का भाव. [अनुसम्पर्यङ्कता], एक खण्ड का शीर्षक जिसमें अनुशयों का विवेचन हुआ है, घनिष्टता, निकटता, अत्यन्त निकटवर्ती होना, परस्पर- यम. 2.77-369; - वग्ग पु., अ.नि. के अनुशयविवेचनपरक सम्बन्ध का रहना - यो तत्थ अनुवादो अनुवदना ... एक वर्ग का शीर्षक, अ. नि. 2(2).161-167; - वार पु.. अनुसम्पवङ्कता अब्भुस्सहनता अनुबलप्पदानं .... चूळव. यम. के अनुसययमक के प्रथम उपखण्ड का शीर्षक, यम. 196, 202; अनुसम्पवङ्कताति पुनप्पुनं कायचित्तवाचाहि तत्थेव । 78-134; - समुग्घाटन नपुं.. तत्पु. स. सम्पवङ्कता, अनुवदनभावोति अत्थो, चूळव. अट्ठ. 39. [अनुशयसमुदघाटन], अनुशयों को उखाड़ फेंकना या अनुसम्मति द्रष्ट., अनुसुम्भाति के अन्त., आगे,
अनुशयों का पूर्णरूप से उच्छेद - अनुसयसमुग्घाटनत्थं अनुसय पु., अनु + Vसी से व्यु. [अनुशय], चित्त में खो, आवुसो, भगवति ब्रह्मचरियं वस्सती ति, स. नि. निष्क्रिय रूप में विद्यमान राग, द्वेष आदि क्लेश या कुछ 3(1).26; - समुग्घात पु., तत्पु. स. [अनुशयसमुद्घात]. अकुशल चित्तवृत्तियां, मानसिक अभिप्राय, क्लेशों के मूल उपरिवत् - ..., केन सोता पिघीयरेति अनुसयसमुग्घातं या बीज, कामराग, पटिघ (द्वेष), मान, दिट्टि, विचिकिच्छा, पुच्छति, नेत्ति. 14; सो च तस्सन्नं ... पदव्यञ्जननेहि भवराग एवं अविज्जा नामक सात प्रकार की मन की सूक्ष्म अनुप्पबन्धेहि अनुसयसमुग्घाताय, म. नि. 1.277; दुष्प्रवृत्तियां - पच्छातापानुबन्धेसु रागादोअनुसयोभवे, अभि. अनुसयसमुग्घातायाति सत्तन्न अनुसयानं समुग्घातत्थाय, प. 853; थामगततुन अनुसेतीति अनुसयो, ध. स. अट्ठ. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).151; इन्द्रियानि भावितानि 392; अनुसयो हि भवपवत्तिया मूलं. उदा. अट्ठ. 303; सत्त बहुलीकतानि अनुसयसमुग्घाताय संवत्तन्ति, स. नि. 3(2). अनुसया कामरागानुसयो, पटिघानुसयो, दिट्ठानुसयो, 309; - यानुक्कमसहित त्रि., तत्पु. स. विचिकिच्छानुसयो, मानानुसयो, भवरागानुसयो, अविज्जानुसयो, [अनुशयानुक्रमसहित], अनुशयों के साथ - सन्दानं दी. नि. 3.200; अप्पहीनतुन अनुसयन्तीति अनुसया, दी. सहनुक्कमन्ति अनुसयानुक्कमसहितं द्वासहिदिहिसन्दानं, नि. अट्ठ. 3.204; इध तथागतो सत्तानं आसयं जानाति, ..., ध. प. अट्ठ. 2.376; सु. नि. अट्ठ. 2.170. अनुसयं जानाति चरितं जानाति, अधिमुत्तिं जानाति, .... अनुसयिक/अनुसायिक त्रि., अनु + Vसी से व्यु., शेष, उदा. अट्ठ. 112; अनुसया अकुसलमूलानि, इमे उप्पन्ना बचा हुआ, स्वाभाविक अथवा जन्म से ही विद्यमान, पुराना,
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