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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 299 अनुसन्धीयति अनुसयिक/अनुसायिक अनुसन्धियोजनाक्कमेन वित्थारो, सु. नि. अट्ट, 1.194; - पापका अकुसला धम्मा, नेत्ति. 18; पञआय अनुसया पहीयन्ति, वचन नपुं.. तत्पु. स. [अनुसन्धिवचन], भगवान् बुद्ध के नेत्ति. 14; स. उ. प. के रूप में अधिट्ठानाभिनिवेशानु.. वचनों के साथ जुड़े हुए श्रावकों के वचन - किं .... अननु, अविज्जानु., अहङ्कारम्मकारमानानु०, कामरागानु.. अनुसन्धिवचनं नीतत्थं नेय्यत्थं संकिलेसभागिय निब्बेधभागियं तण्हानु., दिट्ठानु.. दिट्ठिमानानु., मानानु., रागानु.. असेक्खभागियं, नेत्ति. 20; अनुसन्धिवचनन्ति सावकभासितं विचिकिच्छानु., व्यापादानु., सक्कायदिट्ठानु., सानु.. तहि भगवतो वचनं अनुसन्धेत्वा पवत्तनतो अनुसन्धिवचनान्ति सीलब्बतपरामासानु के अन्त. द्रष्ट; - जालमोत्थत त्रि., वृत्तन्ति, नेत्ति. अट्ठ. 208; - वचनपथ पु. तत्पु. स. अनुशयों अथवा चित्तसन्तति में सोये हए अकुशल मनोभावों [अनुसन्धिवचनपथ]. परस्परसम्बन्ध या प्रयोग को दरसाने के जाल में फंसा हुआ - ओघसंसीदनो कायो, वाले वचन के प्रकार - .... अनुसन्धिवचनपथं न जानाति, अनुसयजालमोत्थतो, थेरगा. 572; तेस जालेन ओत्थतो परि. 255; अनुसन्धिवचनपथन्ति कथानुसन्धि - अभिभूतोति अनुसयाजालमोत्थतो. थेरगा. अट्ठ. 2.170; - विनिच्छयानुसन्धिवसेन वत्थु न जानाति, परि. अट्ठ. 177. पटिपक्ख पु., तत्पु. स. [अनुशयप्रतिपक्ष], अनुशयों का अनुसन्धीयति अनु + सं + vधा के कर्म. वा. का वर्त., प्र. अभाव या उच्छेद - पञआय अनुसयपटिपक्खो, विसुद्धि. पु., ए. व. [अनुसन्धीयते]. सम्बद्ध कराया जाता है, 1.6; - पजहन नपुं., अनुशयों का परित्याग या विनाशसुसङ्गतरूप में जोड़ दिया जाता है - केचि निब्बानं वदन्ति, मग्गस्स हि एकमेव किच्चं अनुसयप्पजहनं, ध. स. अट्ठ. तं पुरिमपदेन नानुसन्धीयति, खु. पा. अट्ठ. 124; - न्घेतो 275; - पहान नपुं.. तत्पु. स. [अनुशयप्रहाण], अनुशयों वर्त. कृ. [अनुसन्धीयमान], अनुसन्धि या परस्पर-सम्बन्ध का उच्छेद या निरोध - अविज्जानिरोधाति अरियमग्गेन को सुसङ्गतरूप में बैठाता हुआ - ... अनुसन्धेन्तो भिक्खूनं अविज्जाय अनवसेसनिरोधा, अनुसयप्पहानवसेन अग्गमग्गेन धम्मकथं कथेसि, खु. पा. अट्ठ. 158. अविज्जाय.... उदा. अट्ठ. 38-39; - यमक नपुं.. यम. के अनुसम्पवङ्कता स्त्री, अनु + सम्पवङ्क का भाव. [अनुसम्पर्यङ्कता], एक खण्ड का शीर्षक जिसमें अनुशयों का विवेचन हुआ है, घनिष्टता, निकटता, अत्यन्त निकटवर्ती होना, परस्पर- यम. 2.77-369; - वग्ग पु., अ.नि. के अनुशयविवेचनपरक सम्बन्ध का रहना - यो तत्थ अनुवादो अनुवदना ... एक वर्ग का शीर्षक, अ. नि. 2(2).161-167; - वार पु.. अनुसम्पवङ्कता अब्भुस्सहनता अनुबलप्पदानं .... चूळव. यम. के अनुसययमक के प्रथम उपखण्ड का शीर्षक, यम. 196, 202; अनुसम्पवङ्कताति पुनप्पुनं कायचित्तवाचाहि तत्थेव । 78-134; - समुग्घाटन नपुं.. तत्पु. स. सम्पवङ्कता, अनुवदनभावोति अत्थो, चूळव. अट्ठ. 39. [अनुशयसमुदघाटन], अनुशयों को उखाड़ फेंकना या अनुसम्मति द्रष्ट., अनुसुम्भाति के अन्त., आगे, अनुशयों का पूर्णरूप से उच्छेद - अनुसयसमुग्घाटनत्थं अनुसय पु., अनु + Vसी से व्यु. [अनुशय], चित्त में खो, आवुसो, भगवति ब्रह्मचरियं वस्सती ति, स. नि. निष्क्रिय रूप में विद्यमान राग, द्वेष आदि क्लेश या कुछ 3(1).26; - समुग्घात पु., तत्पु. स. [अनुशयसमुद्घात]. अकुशल चित्तवृत्तियां, मानसिक अभिप्राय, क्लेशों के मूल उपरिवत् - ..., केन सोता पिघीयरेति अनुसयसमुग्घातं या बीज, कामराग, पटिघ (द्वेष), मान, दिट्टि, विचिकिच्छा, पुच्छति, नेत्ति. 14; सो च तस्सन्नं ... पदव्यञ्जननेहि भवराग एवं अविज्जा नामक सात प्रकार की मन की सूक्ष्म अनुप्पबन्धेहि अनुसयसमुग्घाताय, म. नि. 1.277; दुष्प्रवृत्तियां - पच्छातापानुबन्धेसु रागादोअनुसयोभवे, अभि. अनुसयसमुग्घातायाति सत्तन्न अनुसयानं समुग्घातत्थाय, प. 853; थामगततुन अनुसेतीति अनुसयो, ध. स. अट्ठ. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).151; इन्द्रियानि भावितानि 392; अनुसयो हि भवपवत्तिया मूलं. उदा. अट्ठ. 303; सत्त बहुलीकतानि अनुसयसमुग्घाताय संवत्तन्ति, स. नि. 3(2). अनुसया कामरागानुसयो, पटिघानुसयो, दिट्ठानुसयो, 309; - यानुक्कमसहित त्रि., तत्पु. स. विचिकिच्छानुसयो, मानानुसयो, भवरागानुसयो, अविज्जानुसयो, [अनुशयानुक्रमसहित], अनुशयों के साथ - सन्दानं दी. नि. 3.200; अप्पहीनतुन अनुसयन्तीति अनुसया, दी. सहनुक्कमन्ति अनुसयानुक्कमसहितं द्वासहिदिहिसन्दानं, नि. अट्ठ. 3.204; इध तथागतो सत्तानं आसयं जानाति, ..., ध. प. अट्ठ. 2.376; सु. नि. अट्ठ. 2.170. अनुसयं जानाति चरितं जानाति, अधिमुत्तिं जानाति, .... अनुसयिक/अनुसायिक त्रि., अनु + Vसी से व्यु., शेष, उदा. अट्ठ. 112; अनुसया अकुसलमूलानि, इमे उप्पन्ना बचा हुआ, स्वाभाविक अथवा जन्म से ही विद्यमान, पुराना, For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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