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अन्वागमेति
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अन्वावज्जना
परवर्ती काल में प्राप्त या अधिगत, किसी से परिपूर्ण या भरपूर - तुम्हेव पादे सरणं गतास्मि, अन्वागता पुत्तसोकेन, जा. अट्ठ. 4.346; कतं किच्चं रतं रम्म, सुखेनन्वागत सुखान्ति, थेरगा. 63; ख. कर्तृ. वा. में, 1. वापस लौटा हुआ, पुनः आया हुआ - यक्खा हवे सन्ति महानुभावा, अन्वागता इसयो साधुरूपा, जा. अट्ठ. 4.346; अन्वागताति अनु आगता, तदे.; 2. वह, जिसने किसी का अनुगमन किया है अथवा किसी को अभिभूत कर लिया है - यं मं पण्डारकनागं सुपण्णो अन्वागतोति, जा. अट्ठ. 5.73; ... भयं महन्तं अन्वगतं, जा. अट्ठ. 5.167. अन्वागमति अनु + आ + गम के प्रेर. का वर्त., प्र. पु.. ए. व. [अन्वागमयति], आने देता है, वापस आने हेतु प्रेरित करता है, पुनः आने देता है - कथञ्च, भिक्खवे, अतीतं अन्वागमेति? म. नि. 3.228; - मेय्य विधि., प्र. पु., ए. व. [अन्वागमयेत्], पुनः आने दे - अतीतं नान्वागमेय्य, नप्पटिको अनागतं, म. नि. 3.227; नान्वागमेय्याति तण्हादिट्ठीहि नानुगच्छेय्य, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.176. अन्वाचय पु०, अनु + आ +चि से व्यु. [अन्वाचय], प्रधान वाक्य में एक क्रिया द्वारा मुख्य कार्य का कथन करके पुनः उपवाक्य की क्रिया द्वारा गौण कार्य का कथन, मुख्य कथ्य के साथ गौण कथ्य को जोड़ना, 'च' निपात का एक अर्थ - तत्थ केवलसमुच्चये अन्वाचये च समासो न होति, सद्द. 3.768; तत्र अन्वाचये भिक्खञ्च देहि गवञ्चानेहीति वा दानञ्च देहि सीलञ्च रक्खाहीति वा इति अन्वाचयो भिक्खकिरियविसये दट्ठब्बो, सद्द. 3.887. अन्वादिट्ठ त्रि., अनु + आ + दिस का भू. क. कृ. [अन्वादिष्ट], पुनः निर्दिष्ट, पूर्व में उल्लिखित शब्द या विचार का पुनः सङ्केत या उल्लेख - एत्थाति अनन्तरवृत्तधम्माव अन्वाधिट्ठाति आह कण्हसक्क.... लीन. (दी.नि.टी.) 3.35. अन्वादिसाहि अनु + आ + दिस का अनु., म. पु., ए. व. [अन्वादिस], पुनः संपुष्टि करो- देहि पुत्तक मे दानं, दत्वा अन्वादिसाहि मे, पे. व. 121; अन्वादिसाहि मेति यथा दिन्नं दक्खिणं मय्ह उपकप्पति, तथा उद्दिस पत्तिदानं देहि पे. व. अट्ठ. 69. अन्वादेस पु., अनु + आ + दिस से व्यु., क्रि. ना. [अन्वादेश], अनुकथन, पूर्वोक्त शब्द या कथन की पुनरुक्ति - अथोति अन्वादेसेपि स्वागतं ते महाराज अथो ते अदुरागतं. सद्द. 3.892.
अन्वाधिक त्रि., अनु + अधिक से व्यु., वकार में दीर्धीकरण अच्चाहित के मि. सा. के कारण, अधिक या अतिरिक्त प्रदान करने वाला - अन्वाधिकम्पि आरोपेतु, महाव. 389; अन्वाधिकम्पि आरोपेतुन्ति आगन्तुकपत्तम्पि दातुं महाव. अट्ठ. 386; सब्बेसु अप्पहोन्तेसु देय्यमन्वाधिकम्पि वा, विन. वि. 561. अन्वानयन्ति अनु + आ + नी का वर्त०, प्र. पु., ब. व. [अन्वानयन्ति], बार-बार लाते हैं, पुनः पुनः प्राप्त कराते हैं - सब्बेव ते निन्दमन्वानयन्तीति, महानि. 224; तत्थ अन्वानयन्तीति अनु आनयन्ति पुनप्पुनं आहरन्ति, महानि. अट्ठ. 295. अन्वामद्दि अनु + आ + मद्द का अद्य०, प्र. पु., ए. व., अनुमर्दन किया, निचोड़ दिया, दबा दिया, चाप दिया - गलकं अन्वावमद्दि, नत्थि दुढे सुभासितं, जा. अट्ठ. 3.425; पाठा. अन्वावमद्दि. अन्वाय अ०, अनु + आ + vs का पू. का. कृ., आदेति से आदाय, निधेति से निधाय आदि के मि. सा. के द्वारा व्यु., द्वि. वि. में अन्त होने वाले नामपद के पश्चसर्ग के रूप में प्रयुक्त, क. के पश्चात्, के परिणाम-स्वरूप, के फलस्वरूप - अथ खो सालवती गणिका गभस्स परिपाकमन्वाय पुत्तं विजायि, महाव. 375; 464; ..., तेसं संवासमन्वाय पुत्तो जायेथ, दी. नि. 1.84; न खो सो, भिक्खवे, कुमारो वुद्धिमन्वाय इन्द्रियानं परिपाकमन्वाय यानि तानि कुमारकानं कीळापनकानि तेहि कीळति, म. नि. 1.337; ख. के द्वारा, माध्यम से, के फलस्वरूप, सहारा लेकर - एकच्चो ... आतप्पमन्वाय... सम्मामनसिकारमन्वाय तथारूपं चेतोसमाधि फुसति, दी. नि. 1.11; एवं तिप्पभेदं वीरियं अन्वाय आगम्म पटिच्चाति अत्थो, दी. नि. अट्ट, 1.90. अन्वायिक त्रि., अनु + (इ से व्यु., अनुगमन करने वाला, अनुयायी, पीछे लगा रहने वाला- महास्स जनो अन्वायिको होति, दी. नि. 3.127; ... दुक्खं अन्वेति अनुगच्छति अन्वायिक होति, महानि. 13; सील सिरी चापि सतञ्च धम्मो, अन्वायिका पञ्जवतो भवन्ति, जा. अट्ठ. 5.142; ... अन्वायिका पञवतो
भवन्ति पञ्जवन्तमेव अनुगच्छन्ति, तदे... अन्वारुहि अनु + आ + रुह का अद्य., प्र. पु., ए. व., आरोहण किया, किसी अन्य के साथ प्रवेश किया - तं नागकआ चरितं गणेन, अन्वारुही कासिराजा पसन्नो, जा. अट्ठ. 4.420. अन्वावज्जना स्त्री., अनु + आ + Vवज्ज से व्यु., पुनः पुनः होने वाली प्रतिकूलता या विरुद्धता - सच्चविप्पटिकूलेन वा
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