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अपरिच्चत्त
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अपरिणत
विषयक अज्ञान - सा पनेसा अस्सद्धकुसलस्स धीता चिरकालं अपरिचितकुसलताय साधुजनाचारविरहिता अनादरा अलक्खिका विय अट्ठासि, पे. व. अट्ठ. 57. अपरिच्चत्त त्रि, परि + चिज के भू. क. कृ. का निषे. [अपरित्यक्त], शा. अ. वह, जिसका परित्याग न किया गया हो, ला. अ. वह, जिसे दान में न दे दिया गया हो - .... अदिन्नं अनिस्सटुं अपरिच्चत्तं रक्खितं गोपितं ममायितं परपरिग्गहितं. पारा. 52; यथाठाने ठितम्पि अनपेक्खताय न परिच्चत्तन्ति अपरिच्चत्तं, पारा. अट्ठ. 1.241; अपरिच्चत्तं खो रओ नागस्स जीवितान्ति, म. नि. 1.85; अपरिच्चत्तन्ति अनिस्सट्ठ, परेसं जयं अम्हाकञ्च पराजयं पस्सीति मति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.92. अपरिच्छिन्नपुब्बापरको टिक त्रि., ब. स. [अपरिच्छिन्नपूर्वापरकोटिक], वह, जिसके पूर्वान्त एवं अपरान्त (भविष्य) की कोटियां या सिरे अपरिमित हों - ...
अपरिच्छिन्नपुब्बापरकोटिकोति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 2.138. अपरिच्छिन्नप्पमाण त्रि., अपरिमित प्रमाण वाला - अप्पमाणिकायोति एत्तकेन निट्ठ गच्छिस्सन्तीति एवं अपरिच्छिन्नप्पमाणायो, ... अत्थो, पारा. अट्ठ. 2.134. अपरिच्छिन्नक त्रि., परिच्छिन्नक का निषे. [अपरिच्छिन्नक], परिच्छेद या सुनिश्चित माप तौल या निश्चित सीमा से रहित, अपरिमित, असीम - अपरिच्छिन्नसङ्घयत्ता सङ्घयामहत्तेनपि महता, उदा. अट्ठ. 195.. अपरिच्छेद त्रि., ब. स. [अपरिच्छेद], उपरिवत् - महावनेति महावनं नाम सयंजातं अरोपिमं अपरिच्छेदं महन्तं वनं. उदा. अट्ठ. 148. अपरिजानं/अपरिजानन्त त्रि., परि + आ के वर्त. कृ. का निषे. [अपरिजानन्], अच्छी तरह से या पूर्ण रूप से नहीं जान रहा - अनभिजानं अपरिजानं तत्थ चित्तं अविराजयं अप्पजहं अभब्बो दुक्खक्खयाय, इतिवु. 4; अपरिजानन्ति न परिजानन्तो, इतिवु. अट्ठ. 47; अनभिजानं अपरिजानं
अविराजयं अप्पजहं अभब्बो दुक्खक्खयाय, स. नि. 2(2).96. अपरिज्ञआणधम्म त्रि., ब. स. [अपरिज्ञानधर्मन], ज्ञान की क्षमता से रहित, स्वभाव से ही अज्ञानी - सचे बालो
अपरिआतधम्मो सीलादिगुणा परिबाहिरो तित्थायतने पब्बजितो .... ध. प. अट्ठ. 1.284, पाठा. अपरिञातधम्मों. अपरिञात त्रि., परि + Vा के भू, क. कृ. का निषे. [अपरिज्ञात], पूरी तरह से या अच्छी तरह से नहीं जाना या समझा हुआ, तीन परिज्ञाओं द्वारा ग्रहण न किया गया
- अमतं तेसं, भिक्खवे, अपरिजातं येसं कायगतासति अपरिञाता, अ. नि. 1(1).62; अपरिजातन्ति आतपरिआवसेन अपरिआतं, अ. नि. अट्ठ. 1.404; यत्थ सासवं विआणं अपरिञातं तत्थ वीजत्थो, नेत्ति. 663; अपरिञातं तस्सातिवदामि, म. नि. 1.2; - त नपुं., अपरिआत का भाव. [अपरिज्ञातत्व], तीन प्रकार की परिज्ञाओं द्वारा ज्ञात न होने की अवस्था - वाचावत्थुमत्तस्सेव भाणिनो अत्थस्स अपरिञातत्ता, उदा. अट्ठ. 260; - धम्म त्रि., ब. स. [अपरिज्ञातधर्मन], स्वभाव से ही धर्मों का परिज्ञान न रखने वाला, अज्ञानी, पृथग्जन - सचे बालो
अपरिआतधम्मो सीलादिगुणा परिबाहिरो तित्थायतने पब्बजितो ..... ध. प. अट्ठ. 1.284; - वत्थु क त्रि., ब. स. [अपरिज्ञातवस्तुक], वह, जिसे वस्तुओं का परिज्ञान नहीं है, धर्मों को यथार्थरूप में न जानने वाला - स्वायं इध यस्मा पुथुज्जनो अपरिआतवत्थुको, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).28. अपरिज्ञामूलिक त्रि., ब. स. [अपरिज्ञामूलक], वह, जिसके मूल में अज्ञान रहे - अपरिआमूलिका च इधाधिप्पेतानं सब्बधम्मानं मूलभूता मञ्जना होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).28. अपरिडरहमान त्रि., परि + डह के कर्म. वा. के वर्त. कृ., आत्मने. का निषे. [परिदह्यमान], नहीं जलाया जा रहा, राग एवं द्वेष की अग्नि से नहीं जल रहा - अनवस्सुतो अपरिडरहमानो, एको चरे खग्गविसाणकप्पो, सु. नि. 63; अपरिडरहमानोति एवं अन्वास्सवविरहाव किलेसग्गीहि अपरिडरहमानो, सु. नि. अट्ठ. 1.92; चूळनि. अट्ठ. 121; अपरिडरहमानोति रागजेन परिळाहेन अपरिडरहमानो, चूळनि. 261; - चित्त त्रि., ब. स. [अपरिदह्यमानचित्त], वह, जिसका चित्त क्लेशों की अग्नि द्वारा जलाया नहीं जा रहा है - ... अभिनिबुतत्तोति गुत्तचित्तो अपरिडरहमानचित्तो च, सु. नि. अट्ठ. 2.73. अपरिणत त्रि., परि + Vनम के भू. क. कृ. का निषे. [अपरिणत], शा. अ. नहीं पका हुआ, अपरिवर्तित, ला. अ. क. वह, जो किसी एक को उद्देश्य बनाकर नहीं दिया गया है, या उचित रूप में विनियोजित नहीं किया गया है - अपरिणते परिणतसञी, आपत्ति दुक्कटस्स, पारा. 394; ला. अ. ख. अक्षीण, क्षय को अप्राप्त - अपक्क न परिपाचेन्तीति अपरिणतं अखीणं आयं अन्तराव न उपच्छिन्दन्ति, दी. नि. 2.360; - भोजी त्रि., बिना पकी हुई चीजों को
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