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अपरामस / अपरामसन्तु
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अपरामट्ठत्ता - इदं नाम त्वं आपन्नपुब्बो ति केनचि पराम असक्कुणेय्यत्ता च अपरामद्वानि दी. नि. अड. 2113; दिट्टिया पहीनता दिट्ठपरामासेन अग्गहितत्ता अपरामट्ठा, पटि म. अट्ठ. 1.171; 183; अरियकन्तेहि ... अखण्डेहि अपरामट्ठेहि समाधिसंवत्तनिकेहि, स. नि. 3(2).411; अपरामट्टेहीति इदं नाम तया कतं, इदं वीतिक्कन्तन्ति एवं परामसितुं असक्कुणेय्येहि स. नि. अड्ड. 3.307 सीलं अखण्ड अच्छिदं... अपरामहं कत्वा परिपूरेन्तो वदति, उदा. अ. 218: परामासेहि आरम्मणकरणवसेन परामद्वता परामट्ठा, ध. स. अट्ठ 96; मग्गफलनिब्बानानि पन अग्गहितानि अपरामद्वानि अनुपादिण्णानेव घ. स. अड. 377 त नपुं, अपराम का भाव [अपरामृष्टत्व] प्रभावित न होने की अवस्था, प्रदुष्ट न होने की दशा तण्हादिट्ठीहि अपरामत्ता- इदं नाम त्वं आपन्नपुष्योति केनचि परामहं असक्कुणेय्यत्ता च अपरामट्ठानि, दी. नि. अट्ठ 2.113; पारिसुद्धिसील नपुं. कर्म. स. [ अपरामृष्टपरिशुद्धिशील]. सर्वथा अप्रदुष्ट विशुद्धियों से सम्बन्धित शील, शील का एक प्रभेद परियन्तपारिसुद्धिसील, - सत्तन्न सेक्खानं इदं अपरामद्वपारिसुद्धिसीलं, पटि. म. 37. अपरामस / अपरामसन्तु त्रि, परा + मस के वर्त. कृ. का निषे॰ [अपरामृशन्], शा. अ. स्पर्श न कर रहा, नहीं छू रहा, ला. अ. किसी प्रकार का महत्त्व नहीं दे रहा, महत्त्वहीन मान रहा, तृष्णा, मान एवं दृष्टि की पकड़ से मुक्त रहता हुआ, वितर्क या संकल्प-विकल्प न करता हुआ सं पु०, प्र॰ वि॰, ए. व. लोकपञ्ञत्तियो, याहि तथागतो वोहरति अपरामसन्ति दी. नि. 1.178; याहि तथागतो वोहरति अपरामसन्ति याहि लोकसमहि लोकनिरुत्तीहि तथागतो तण्हामानदिद्विपरामासान अभावा अपरामसन्तो वोहरतीति देसनं विनिवट्टेत्वा अरहत्तनिकूटेन निद्वापेसि, लीन. ( दी. नि. टी.) 1.285; अममायन्तो अगण्हन्तो अपरामसन्तो अनभिनिविसन्तो चरेय्य.... यापेय्याति, महानि. 36; अपरामसन्तोति वितक्केन ऊहनं अकरोन्तो, महानि. अ. 128 सन्तं पु. द्वि. वि. ए. व. तं ब्राह्मणं दिट्ठिमनादियन्तं अगण्हन्तं अपरामसन्तं अनभिनिवेसन्तन्ति, महानि. 80: अपरामसन्तन्ति तण्हामानदिद्वीहि न परामसन्तु महानि, अ, 192 सतो पु. च. / ष. वि. ए. व. अपरामसतो चस्स पच्चत्तञ्ञेव निब्बुति विदिता, दी. नि. 1.14; अपरामसतो चस्स अपरामासपच्चया सयमेव अत्तनायेव तेस परामासकिलेसानं निब्बुति विदिता दी. नि.
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अपरिक्खित्त
व.
अ. 1.93: समानो वर्त. कृ., आत्मने, पु. प्र. वि. ए. अनुपादियमानो अगण्हमानो अपरामासमानो अनभिनिविसमानोति, महानि. 77.
अपरायत्तता स्त्री०, अपरायत्त का भाव. [ अपरायत्तता ], दूसरों के अधीन न होने की स्थिति, स्वायत्तता, आत्मनिर्भरता तं द्वि. वि., ए. व. सेरितन्ति सच्छन्दवृत्तितं अपरायत्ततं. सु. नि. अड्ड. 1.66.
अपरायण त्रि, परायन का निषे [ अपरायण], बेसहारा, आश्रयविहीन बन्धुबान्धवो से विहीन णो पु. प्र. वि. ए. व. सोहं सहस्सजीनोव, अबन्धु अपरायणो, जा. अट्ठ 3.413; अपरायणोति असरणो, निप्पतिट्ठोति अत्थो, तदे.; यिनी स्त्री. प्र. वि. ए. व. सा नूनाहं मरिस्सामि, अबन्धु अपरायिनी जा. अड. 3.341: अपरायिनीति अप्पतिद्वा अप्पटिसरणा, तदे.. अपरिकथाकत त्रि, परिकथाकत का निषे [अपरिकथाकृत]. वह कठिन चीवर जो चीवर के महत्व को प्रकाशित करने वाली कथा द्वारा प्राप्त नहीं हुआ हो अपरिकधाकतेन अत्थतं होति कथिनं, महाव. 332; परिकथाकतेनाति कथिनं नाम दातुं वहति कठिनदायको बहु पुग्यं पसवतीति एवं परिकथाय उप्पादितेन महाव. अह. 369. अपरिकुपित त्रि, परिकुपित का निषे [अपरिकुपित], कोप या क्रोध से मुक्त, तीव्र कोप से रहित देवतासु अपरिकुपितासु देवो सम्मा धारं अनुष्पवेच्छति अ. नि. 1 (2).87, अपरिक्कमन नपुं., परिक्कमन का निषे. [अपरिक्रमण], क. घूमने-फिरने के विस्तृत क्षेत्र या मैदान से रहित सारम्भे चे भिक्खु वत्थुरिमं अपरिक्कमने सञ्ञाधिकाय कुटिं कारेय्य पारा 229; सपरिक्कमनं अपरिक्कमनन्ति सउपचारं अनुपचार, पारा. अट्ठ. 2.141; ख. बचने के उपायों से रहित, त्राण के उपायों से रहित सपरिक्कमनो अयं धम्मो, नायं धम्मो अपरिक्कमनो अ. नि. 3 (2) 231. अपरिक्खत त्रि.. परिक्खत का निषे [ अपरिक्षत ], क्षतिरहित, हानि अथवा क्षय को अप्राप्त.... तं अक्खतं केनचि अपरिक्खतं मनुस्सरूपेनेव पाटलिपुत्तं नयिस्सामि, पे. व. अड. 238 धम्म त्रि.. ब. स. [ अपरिक्षयधर्मन्] कभी भी क्षय को प्राप्त न होने वाला, स्वभाव से ही अक्षय अक्षयधम्ममत्थुति अपरिक्खयधम्मं होतु पे. व. अड. 208. अपरिक्खित्त त्रि, परि + √खिप के भू. क. कृ. का निषे. [ अपरिक्षिप्त ]. ऐसा आदास, जो चारों ओर से घिरा हुआ न हो, घेराबन्दी से रहित - अपरिक्खित्तस्स गामस्स घरूपचारे
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