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अपरिमितपानभोजन
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अपरिप्फन्द
दमेस्सति विनेस्सति ... विज्जति, म. नि. 1.51; ... अपरिपुण्ण त्रि., परिपुण्ण का निषे. [अपरिपूर्ण], क. वह, अपरिनिबुतोति एत्थ पन अनिब्बिसताय अदन्तो, म. नि. जो पूर्ण नहीं है, गोलाकार से रहित - अओसहि अक्खिभण्डा अट्ठ. (मू.प.) 1(1).202; - त्त नपुं., भाव. [अपरिनिर्वृतत्व], अपरिपुण्णा होन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.273; दी. नि. पूर्णतया परिनिर्वाण न पाने की अवस्था - सारिपुत्तत्थेरो अट्ठ. 2.37; ख. अत्यल्प, बहुत अधिक नहीं, छोटा-मोटा, तथागतस्स सन्तिके अपरिनिब्बतत्ता बुद्धानं सन्तिका महन्तं हल्का - ... परिभासाय परिपुण्णाय, नो अपरिपुण्णाया ति, नलभि, जा. अट्ठ. 5.123-124.
दी. नि. 3.59; नो अपरिपुण्णायाति अन्तरा अट्ठपिताय निरन्तरं अपरिमितपानमोजन त्रि., ब. स., बिना सीमा के अत्यधिक पवत्ताय, दी. नि. अट्ठ. 3.41; ग. अपूर्ण, तुच्छ, हीन, घटिया भोजनों और पेय पदार्थों का उपभोग करने वाला - - अकेवली सो असमत्तो सो अपरिपुण्णो सो हीनो निहीनो अपरिमितपानभोजना होन्ति, अ. नि. 1(2).285.
..., महानि. 210; अपरिपुण्णोति न सम्पुण्णो, महानि. अठ्ठ. अपरिपक्क त्रि., परि + vपच के भू. क. कृ. का निषे. 290; अरियो सीलक्खन्धो परिपुण्णो नो अपरिपुण्णो, दी. नि. [अपरिपक्व], शा. अ. कच्चा, वह, जो पूरी तरह से पका 1.183; अपरिपुण्णस्स खो सीलक्खन्धस्स पारिपूरिया ... नहीं है, ला. अ. हज़म न किया हुआ, प्रौढ़ता या गम्भीरता उपनिस्साय विहरेय्यं, स. नि. 1(1).165; घ. अप्राप्त - इमि से रहित - सो पनायमाहारो एवरूपे ओकासे निधानमुपगतो इम अपरिपुण्णो वत्तमानयो, सद्द. 2.319; - कम्मन्त त्रि., ब. भाव अपरिपक्को होति, विसुद्धि. 1.335; एवमेव .... स. [अपरिपूर्णकर्मन], वह, जिसने अपना काम पूर्ण रूप से सेम्हपटलपरियोनद्धो ... उपगन्वा तिद्वतीति एवं अपरिपक्कतो. नहीं किया है - अपरिपुण्णकम्मन्ता विप्पटिसारिनियो पटिक्कूलता पच्चवेक्खितब्बा, विसुद्धि. 1.336; अपरिपक्काम, पच्चानुतापिनियो हीनं कामं उपपन्ना'ति, अ. नि. 3(1).203; ..., चेतोविमुत्तिया पञ्च धम्मा परिपाकाय संवत्तन्ति, उदा. - पत्तचीवर त्रि., ब. स. [अपरिपूर्णपात्रचीवर], वह व्यक्ति, 109; - त्त नपुं.. अपरिपक्क का भाव. [अपरिपक्वत्व], जिसके पास पात्र और चीवर नहीं है - तथागता परिपक्वता का अभाव, कच्चापन, अपूर्णता, परिपाक या अपरिपुण्णपत्तचीवर उपसम्पादेन्तीति, म. नि. 3.296; - विपाक प्राप्त न करने की अवस्था - सबमेतं आणस्स सीस त्रि., ब. स. [अपूर्णशीर्ष], अपूर्ण सिर वाला, वह, अपरिपक्कत्ता तस्स कामानं दुप्पहानताय सम्मापटिपत्तियं जिसका सिर उचित या पूर्ण बनावट वाला नहीं है - अओ योग्यं कारापेतुं वदति, उदा. अट्ठ. 252; पटिपस्सम्भीति पन जना अपरिपुण्णसीसा होन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) इन्द्रियानं अपरिपक्कत्ता, संवेगस्स च नातितिक्खभावतो 2.273; दी. नि. अट्ठ. 2.38; - ण्णायतन त्रि., ब. स. वूपसमि, उदा. अट्ठ. 252; - आणत्त नपुं., भाव. [अपरिपूर्णायतन], वह, जिसकी इन्द्रियां पूर्णरूप से सक्षम [अपरिपक्वज्ञानत्व], मानसिक रूप से अविकसित रहने की। नहीं है, अक्षम इन्द्रियों वाला - जातिवारे जाति सजातीति स्थिति - अयं पन अपरिपक्कञाणत्ता ब्राह्मणकुले ... जाति, सा अपरिपुण्णायतनवसेन युत्ता, म. नि. अट्ठ. उग्गहितवोहारवसेनेव हीळेन्तो एवमाह, म. नि. अट्ठ. (म.प.) (मू.प.) 1(1).226. 2.199; - वेदनिय त्रि., तत्पु. स. [अपक्ववेदनीय], अपरिपूर त्रि., परिपूर का निषे०, अपूर्ण, दोषपूर्ण, दूषित, विपाकक्षण उदित होने से पूर्व ही अनुभव में आने योग्य - अधूरा - अद्धानहीनो, अङ्गहीनो, ... अपरिपूरो, परि. 253; तं मे कम्मं अपरिपक्कवेदनीयं होतूति, अ. नि. 3(1).197; सद्धो च, ..., एवं सो तेनङ्गेन अपरिपूरो होति, अ. नि. अपरिपक्कवेदनीयन्ति अलद्धविपाकवारं अ. नि. अट्ठ. 3. 3(1).138; अपरिपूरं वा सीलवखन्धं परिपूरेस्सामि, पु. प. 263; - न्द्रिय त्रि., ब. स. [अपरिपक्विन्द्रिय], वह, जिसकी 143; एवमिदं ब्रह्मचरियं अपरिपूरं अभविस्स तेनङ्गेन, म. नि. इन्द्रियां पूरी तरह से परिपक्व नहीं है, शिथिल या अक्षम 2.170; - कारी त्रि., पूर्ण रूप से काम को न करने वाला, इन्द्रियों वाला - सचे पन चतुमासं वडवस्सस्सापि भगवतो आधा-अधूरा करने वाला - सरणानि सक्को सिक्खाय वेनेय्यसत्ता अपरिपक्किन्द्रिया होन्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अपरिपूरकारी अहोसी ति, स. नि. 3(2).441. 1(2).55.
अपरिप्फन्द पु., परिप्फन्द का निषे॰ [अपरिष्पन्दन, नपुं०], अपरिपुच्छा स्त्री., परिपुच्छा का निषे. [अपरिपृच्छा], प्रश्न धड़कन या फड़कन का अभाव, उछल-कूद का अभाव, का न होना, पूछताछ का अभाव - असुस्सूसा अपरिपुच्छा स्थिरता - .... आयचित्तानं अपरिप्फन्दनभूतसीतिभाव पाय परिपन्थो, अ. नि. 3(2).113.
पच्चुपट्टाना, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).91.
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