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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपरिमितपानभोजन 379 अपरिप्फन्द दमेस्सति विनेस्सति ... विज्जति, म. नि. 1.51; ... अपरिपुण्ण त्रि., परिपुण्ण का निषे. [अपरिपूर्ण], क. वह, अपरिनिबुतोति एत्थ पन अनिब्बिसताय अदन्तो, म. नि. जो पूर्ण नहीं है, गोलाकार से रहित - अओसहि अक्खिभण्डा अट्ठ. (मू.प.) 1(1).202; - त्त नपुं., भाव. [अपरिनिर्वृतत्व], अपरिपुण्णा होन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) 2.273; दी. नि. पूर्णतया परिनिर्वाण न पाने की अवस्था - सारिपुत्तत्थेरो अट्ठ. 2.37; ख. अत्यल्प, बहुत अधिक नहीं, छोटा-मोटा, तथागतस्स सन्तिके अपरिनिब्बतत्ता बुद्धानं सन्तिका महन्तं हल्का - ... परिभासाय परिपुण्णाय, नो अपरिपुण्णाया ति, नलभि, जा. अट्ठ. 5.123-124. दी. नि. 3.59; नो अपरिपुण्णायाति अन्तरा अट्ठपिताय निरन्तरं अपरिमितपानमोजन त्रि., ब. स., बिना सीमा के अत्यधिक पवत्ताय, दी. नि. अट्ठ. 3.41; ग. अपूर्ण, तुच्छ, हीन, घटिया भोजनों और पेय पदार्थों का उपभोग करने वाला - - अकेवली सो असमत्तो सो अपरिपुण्णो सो हीनो निहीनो अपरिमितपानभोजना होन्ति, अ. नि. 1(2).285. ..., महानि. 210; अपरिपुण्णोति न सम्पुण्णो, महानि. अठ्ठ. अपरिपक्क त्रि., परि + vपच के भू. क. कृ. का निषे. 290; अरियो सीलक्खन्धो परिपुण्णो नो अपरिपुण्णो, दी. नि. [अपरिपक्व], शा. अ. कच्चा, वह, जो पूरी तरह से पका 1.183; अपरिपुण्णस्स खो सीलक्खन्धस्स पारिपूरिया ... नहीं है, ला. अ. हज़म न किया हुआ, प्रौढ़ता या गम्भीरता उपनिस्साय विहरेय्यं, स. नि. 1(1).165; घ. अप्राप्त - इमि से रहित - सो पनायमाहारो एवरूपे ओकासे निधानमुपगतो इम अपरिपुण्णो वत्तमानयो, सद्द. 2.319; - कम्मन्त त्रि., ब. भाव अपरिपक्को होति, विसुद्धि. 1.335; एवमेव .... स. [अपरिपूर्णकर्मन], वह, जिसने अपना काम पूर्ण रूप से सेम्हपटलपरियोनद्धो ... उपगन्वा तिद्वतीति एवं अपरिपक्कतो. नहीं किया है - अपरिपुण्णकम्मन्ता विप्पटिसारिनियो पटिक्कूलता पच्चवेक्खितब्बा, विसुद्धि. 1.336; अपरिपक्काम, पच्चानुतापिनियो हीनं कामं उपपन्ना'ति, अ. नि. 3(1).203; ..., चेतोविमुत्तिया पञ्च धम्मा परिपाकाय संवत्तन्ति, उदा. - पत्तचीवर त्रि., ब. स. [अपरिपूर्णपात्रचीवर], वह व्यक्ति, 109; - त्त नपुं.. अपरिपक्क का भाव. [अपरिपक्वत्व], जिसके पास पात्र और चीवर नहीं है - तथागता परिपक्वता का अभाव, कच्चापन, अपूर्णता, परिपाक या अपरिपुण्णपत्तचीवर उपसम्पादेन्तीति, म. नि. 3.296; - विपाक प्राप्त न करने की अवस्था - सबमेतं आणस्स सीस त्रि., ब. स. [अपूर्णशीर्ष], अपूर्ण सिर वाला, वह, अपरिपक्कत्ता तस्स कामानं दुप्पहानताय सम्मापटिपत्तियं जिसका सिर उचित या पूर्ण बनावट वाला नहीं है - अओ योग्यं कारापेतुं वदति, उदा. अट्ठ. 252; पटिपस्सम्भीति पन जना अपरिपुण्णसीसा होन्ति, म. नि. अट्ठ. (म.प.) इन्द्रियानं अपरिपक्कत्ता, संवेगस्स च नातितिक्खभावतो 2.273; दी. नि. अट्ठ. 2.38; - ण्णायतन त्रि., ब. स. वूपसमि, उदा. अट्ठ. 252; - आणत्त नपुं., भाव. [अपरिपूर्णायतन], वह, जिसकी इन्द्रियां पूर्णरूप से सक्षम [अपरिपक्वज्ञानत्व], मानसिक रूप से अविकसित रहने की। नहीं है, अक्षम इन्द्रियों वाला - जातिवारे जाति सजातीति स्थिति - अयं पन अपरिपक्कञाणत्ता ब्राह्मणकुले ... जाति, सा अपरिपुण्णायतनवसेन युत्ता, म. नि. अट्ठ. उग्गहितवोहारवसेनेव हीळेन्तो एवमाह, म. नि. अट्ठ. (म.प.) (मू.प.) 1(1).226. 2.199; - वेदनिय त्रि., तत्पु. स. [अपक्ववेदनीय], अपरिपूर त्रि., परिपूर का निषे०, अपूर्ण, दोषपूर्ण, दूषित, विपाकक्षण उदित होने से पूर्व ही अनुभव में आने योग्य - अधूरा - अद्धानहीनो, अङ्गहीनो, ... अपरिपूरो, परि. 253; तं मे कम्मं अपरिपक्कवेदनीयं होतूति, अ. नि. 3(1).197; सद्धो च, ..., एवं सो तेनङ्गेन अपरिपूरो होति, अ. नि. अपरिपक्कवेदनीयन्ति अलद्धविपाकवारं अ. नि. अट्ठ. 3. 3(1).138; अपरिपूरं वा सीलवखन्धं परिपूरेस्सामि, पु. प. 263; - न्द्रिय त्रि., ब. स. [अपरिपक्विन्द्रिय], वह, जिसकी 143; एवमिदं ब्रह्मचरियं अपरिपूरं अभविस्स तेनङ्गेन, म. नि. इन्द्रियां पूरी तरह से परिपक्व नहीं है, शिथिल या अक्षम 2.170; - कारी त्रि., पूर्ण रूप से काम को न करने वाला, इन्द्रियों वाला - सचे पन चतुमासं वडवस्सस्सापि भगवतो आधा-अधूरा करने वाला - सरणानि सक्को सिक्खाय वेनेय्यसत्ता अपरिपक्किन्द्रिया होन्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अपरिपूरकारी अहोसी ति, स. नि. 3(2).441. 1(2).55. अपरिप्फन्द पु., परिप्फन्द का निषे॰ [अपरिष्पन्दन, नपुं०], अपरिपुच्छा स्त्री., परिपुच्छा का निषे. [अपरिपृच्छा], प्रश्न धड़कन या फड़कन का अभाव, उछल-कूद का अभाव, का न होना, पूछताछ का अभाव - असुस्सूसा अपरिपुच्छा स्थिरता - .... आयचित्तानं अपरिप्फन्दनभूतसीतिभाव पाय परिपन्थो, अ. नि. 3(2).113. पच्चुपट्टाना, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).91. For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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