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अपरिणायक
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अपरिनिब्बुत खाने वाला - सप्पाये मत्तं न जानाति, अपरिणतभोजी च होना; - नं द्वि. वि., ए. व. - उपादापरितस्सनञ्च ..., होति, अ. नि. 2(1).136.
देसेस्सामि अनुपादाअपरितस्स - नञ्च, स. नि. 2(1).15; अपरिणायक त्रि., ब. स. [अपरिणायक], नेता-रहित, .... अपरितस्सनन्ति अग्गहणेन अपरितस्सनं, स. नि. अट्ट, मार्गदर्शक या नायक से रहित - एकचिन्तितोयमत्थो, बालो 2.231; कथञ्चावुसो, अनुपादाना अपरितस्सना होति, म. अपरिणायको, जा. अट्ठ. 2.189; बालो अपरिणायकोति अयं नि. 3.276; स. नि. 2(1).16; - वार पु., तत्पु. स., खुज्जो बालो, ..... तदे; -यिका स्त्री., नेतृत्वरहित या व्याकुलता या उद्विग्नता के अभाव की बारी या अवसर - मार्गदर्शक-रहित नारी- सानूनसा कपणिका, अन्धा अपरिणायिका अपरितस्सनावारे न एवं होतीति येहि किलेसेहि एवं भवेय्य, जा. अट्ट, 483; ते हिन्न मरिस्सन्ति, अन्धा अपरिणायका, जा. अट्ट तेसं पहीनत्ता न एवं होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).17. 4.372
अपरितस्सी त्रि., परितस्सी का निषे., परित्रास न करने अपरितस्स पु., परितस्स = परितास का निषे. [अपरित्रास, वाला, व्याकुलता से रहित, मन में भय या चिन्ता न लाने बौ. सं. अपरितास], अकम्पन, तृष्णा एवं दृष्टियों के भय से । वाला- सो अछम्भी अकम्पी अवेधी अपरितस्सी विगतलोमहंसो. मुक्ति, निडरता, अनुदद्वेग, बेचैनी का अभाव - रुञो पच्चन्तिमे म. नि. 2.346. नगरे बहु सालियवकं सन्निचितं होति अब्भन्तरानं रतिया अपरित्त त्रि., परित्त का निषे. [अपरीत्त], शा. अ. अनल्प, अपरितस्साय फासुविहाराय बाहिरानं पटिघाताय, अ. नि. असीम, अधिक, अप्रमाण, ला. अ. कामावचरभूमि से ऊपर 2(2).242; अपरितस्सायाति तासं अनापज्जनत्थाय, अ. नि. वाले महग्गत चित्त - एकच्चो पुग्गलो ... भावितपओ अट्ठ. 3.183; एवमेवं ... विहरतो रतिया अपरितस्साय अपरित्तो महत्तो अप्पमाणविहारी, अ. नि. 1(1).282-283; फासविहाराय ओक्कमनाय निब्बानस्स, अ. नि. 3(1).64; अपरित्तोति न परित्तगुणो, अ. नि. अट्ठ. 2.218; तेसं पहाना अपरितस्सायाति तण्हादिद्विपरितस्सनाहि अपरितस्सनत्थाय, अपरित्तञ्च मे चित्तं भविस्सति अप्पमाणं सुभावितान्ति, म. अ. नि. अट्ठ. 3.225.
नि. 3.46; अपरित्तन्ति कामावचरचित्तं परित्तं नाम, तस्स अपरितस्सं/अपरितस्सन्त/अपरितस्समान त्रि., परि + पटिक्खेपेन महग्गतं अपरित्तं नाम, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) Vतस के वर्त. कृ. का निषे॰ [अपरित्रसन], व्याकुल न होता 3.39. हुआ, उद्विग्न न रहता हुआ, भय न करता हुआ - अनुपादयं अपरिदेव पु., परिदेव का निषे, विलाप या रोने कलपने का न परितस्सति, अपरितस्सं पच्चत्त व परिनिब्बायति, दी. अभाव - अपरिदेवो अभिनेय्यो, पटि. म. 11; परिदेवा नि. 2.53; म. नि. 1.98; अपरितस्सन्ति अपरितस्समानो, हित्वा अपरिदेवं पक्खन्दतीति- गोत्रभु, पटि. म. 60. दी. नि. अट्ठ. 2.88; - स्सन्तं द्वि. वि., ए. व. - भगवता अपरिनिहित त्रि, परि + नि+vठा के भू, क. कृ. का निषे. अज्झत्तक्खन्धविनासे अपरितस्सन्तं खीणासवं दस्सेत्वा देसना [अपरिनिष्ठित], पूर्णता को अप्राप्त, पूर्ण न किया हुआ, आधे निट्ठापिता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).17; - स्सतो च./ष. अधूरे रूप में तैयार - मम आगमनपच्चया अपरिनिहिता वि., ए. व. - विआणे ... असण्ठिते अनुपादाय अपरितस्सतो सिखं अप्पत्ता, दी. नि. अट्ठ. 1.47; दस पारमियो ... आयति जातिजरामरणदुक्खसमुदयसम्भवो न होतिति, इतिवु. अननुच्छविकमेतन्ति अपरिनिट्ठताव मालायो गहेत्वा.... दी. 67; - स्समानं द्वि. वि., ए. व. - इमिना भगवा नि. अट्ठ. 2.150. अज्झत्तक्खन्धविनासे अपरितस्समानं खीणासवं दस्सेन्तो देसनं अपरिनिप्फन्न त्रि., परि + नि + पद के भू. क. कृ. का मत्थक पापेसि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).16.
निषे. [अपरिनिष्पन्न], हेतुओं एवं प्रत्ययों द्वारा उत्पन्न न अपरितस्सक त्रि., अपरितस्स से व्यु. [बौ. सं. अपरितासक], किया गया, अवास्तविक - रूपं अपरिनिफन्नन्ति? आमन्ता, परित्रास न करने वाला, मन में व्याकुलता न लाने वाला, कथा. 505; ... पन्नरस रूपानि परिनिष्फन्नानि नाम, दस भयरहित - अज्झत्तं अपरितस्सन्ते ... परिक्खारविनासे अपरिनिप्फन्नानि नाम, ध. स. अट्ठ. 373; - कथा स्त्री., परितस्सकेन अपरितस्सकेन चापि भवितब्ब, म. नि. अट्ठ. कथा. की एक कथा का शीर्षक, कथा. 505-506. (मू.प.) 1(2).17.
अपरिनिब्बुत त्रि., परिनिब्बुत का निषे. [अपरिनिर्वृत], पूर्ण अपरितस्सना स्त्री., अपरितस्सन से व्यु. [अपरित्रसन], रूप से मुक्ति को अप्राप्त, परिनिर्वाण को अप्राप्त, पूर्णतया भय या मानसिक व्याकुलता का अभाव, परित्रास का न अविमुक्त - अत्तना अदन्तो अविनीतो अपरिनिबुतो परं
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