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अपरिप्फन्दन
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अपरिमित अपरिप्फन्दन नपं., परिप्फन्दन का निषे. [अपरिष्पन्दन]. स. अट्ठ. 399; - गारह त्रि., [अपरिभोगार्ह]. परिभोग या उपरिवत् - संयतहत्थपादताय ... अभावतो अपरिफन्दनेन उपभोग न करने योग्य - तेन अभिहटभिक्खाय परेसं ठितेन करजकायेन चाति ... ठितेन, उदा. अट्ठ. 261; - अपरिभोगारहतो च तथा वत्तुं वट्टतीति दस्सितं होति, उदा. न्दन्त त्रि., वर्त. कृ., न धड़कता हुआ, न उछलता-कूदता अट्ठ. 324. हुआ - सो च सुसिक्खितत्ता अपरिप्फन्दन्तो निपज्जि, उदा. अपरिमण्डल त्रि., ब. स. [अपरिमण्डल]. शा. अ. परिमण्डल अट्ठ. 279.
से रहित, ला. अ. उपयुक्त स्वरूप से रहित, अपूर्ण आकार अपरिप्फुटालाप त्रि., ब. स. [अपरिष्फुटालाप], सुस्पष्ट वाला - तस्स कथा अपरिमण्डला नाम होति. म. नि. अट्ठ. बातचीत न करने वाला - मम्मनाति अप्परिप्पुटतलापा, (मू.प.) 1(2).151; - लं अ., क्रि. वि., (अन्तरावासक के) लीन. (दी.नि.टी.) 3.111.
नाभि से घुटनों तक लटक रहे घेरे के बिना, परिमण्डल के अपरिभासनेय्य/अपरिभासिय त्रि., परि + भास के सं. बिना - अथ खो परिमण्डलंयेव निवासेस्सामीति विरज्झित्वा कृ. का निषे. [अपरिभाषनीय/अपरिभाष्य], निन्दा न करने अपरिमण्डलं निवासेन्तस्स अनापत्ति, पाचि. अट्ठ. 150. योग्य, अनिन्दनीय, निर्दोष - सो वचसा परिभासति अझं अपरिमाण त्रि., ब. स. [अपरिमाण], वह, जिसकी कोई माप अभासनेय्यम्पि पुग्गलं. सु. नि. अट्ठ. 2.180; पाठा. अभासनेय्य; न हो या सीमा न हो, असीम, अत्यधिक प्रचुर, असंख्य, तथागता वत्थु याचन्ति, ताय अवत्थुयाचनाय अपरिभासिया । कालातीत - खीणकुलीने कपणे, अनुभूतं ते दुखं अपरिमाणं, भवन्तीति, मि. प. 211.
थेरीगा. 220; एवम्पि सब्बभूतेसु मानसं भावये अपरिमाणं अपरिभिन्न त्रि., परि + भिद के भू, क. कृ. का निषे. सु. नि. 149; 150; न अस्स परिमाणन्ति अपरिमाणं खु. पा. [अपरिभिन्न], स्वस्थ, सही-सलामत, अपीड़ित - चक्खं अट्ठ. 201; अखुद्दावकासोति एत्थ भगवतो अपरिमाणोयेव अपरिभिन्नं होति, म. नि. 1.251.
दस्सनाय ओकासोति वेदितब्बो, दी. नि. अट्ठ. 1.229; तस्मि अपरिभुत्त त्रि., परि + vभुज के भू. क. कृ. का निषे. दिवसे अपरिमाणेसु चक्कवाळेसु अपरिमाणा सत्ता सब्बे [अपरिभुक्त], क. वह, जिसका आनन्द न लिया गया हो या सुवण्णवण्णाव अहेसुं, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).87; ... जिसका अनुभव न किया गया हो, अननुभूत - अमतं तेसं. पठमे धम्मदेसने अट्ठारस ब्रह्मकोटियो अपरिमाणा च देवतायो, ..... अपरिभुत्तं येसं कायगतासति अपरिभुत्ता, अ. नि. मि. प. 317; - गणन त्रि., ब. स., गणना न करने योग्य 1(1).61; ख. प्रयोग न किया गया, अप्रयुक्त - अनुच्छि8 संख्या वाला, बहुत ऊंची संख्या वाला - अनेकसहस्साति अपरिभुत्तं दातुं वट्टतीति अत्तनो वसनट्ठानेयेव एकपस्से सहस्सेहिपि अपरिमाणगणना, दी. नि. अट्ठ. 3.9; - वण्ण अपरिभुत्तपल्लङ्कञ्च सेनासनञ्च पञआपेसि, जा. अट्ठ. 225; त्रि०, ब. स. [अपरिमाणवर्ण, भिन्न अर्थ में], असीम या - काम त्रि., ब. स., वह, जिसने सांसारिक भोगों का पूरा- अपरिमित प्रशंसा का पात्र, असीम या अत्यधिक स्तुतियों का पूरा उपभोग न किया हो - अनिकीळिताविनो कामेसूति विषय, अप्रमेय स्तुति या प्रशंसा पाने योग्य गुणों वाला - ... कामकीळा, तं अकीळितपुब्बा, अपरिभूत्तकामाति अत्थो, अपरिमाणवण्णो हि सो भवं गोतमो ति, दी. नि. 1.103; स. नि. अट्ठ. 3.39.
अपरिमाणवण्णोति तथारूपेनेव सब्ब नापि अप्पमेय्यवण्णो अपरिभोग' त्रि., ब. स. [अपरिभोग], शा. अ. उपभोग न ..... दी. नि. अट्ठ. 1.232; - सत्तारम्मण त्रि., ब. स. करने योग्य, उपभोग न करने वाला - तीहि ठानेहि मंस [अप्रमेयसत्त्वालम्बन], असंख्य प्राणियों को अपना आलम्बन अपरिभोगन्ति वदामि, म. नि. 2.35; तथागतो ... एवरूपानं बनाने वाला- तञ्च अपरिमाणसत्तारम्मणवसेन एकस्मि वा सुपिनन्तेपि अपरिभोगो, खु. पा. अट्ठ. 140; ला. अ. निरर्थक, सत्ते अनवसेसफरणवसेन अपरिमाणं भावेयेति, खु. प. अट्ट. तुच्छ, त्याज्य - तथेव भिन्दति वा छड्डेति वा झापेति वा अपरिभोगं वा करोति, पारा. 54; अपरिभोगं वा करोतीति अपरिमित त्रि., परि + vमा के भू, क. कृ. का निषे. अखादितब्बं वा अपातब्बं वा करोति, पारा. अट्ठ. 1.257; अमुं [अपरिमित], शा. अ. वह, जिसे मापा-जोखा न जा सके, उदपानं अपरिभोगं करिस्साम, उदा. अट्ठ. 308.
असीमित, वह, जो मापा हुआ या नपा-तुला न हो, ला. अ. अपरिभोग पु., परिभोग का निषे. [अपरिभोग], उपभोग न प्रचुर, अत्यधिक, सीमाओं से परे - पेतेसु च निरयेसु च, करना, त्याग - अपरिभोगदुप्परिभोगादिवसेन विनासेति, ध. अपरिमिता दिस्सरे धाता, थेरीगा. 477; अपरिमितञ्च दुक्खं
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