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अपहानधम्म
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अपाणातिपात अपहानधम्म त्रि., ब. स. [अप्रहाणधर्म], वह, जिस के धर्म अविदितकम्मावदानो, जा. अट्ठ. 7.186; - ता स्त्री., अपाकट
का प्रहाण या क्षय नहीं हो सकता है, परिपूर्ण शैक्ष्य, जिसका का भाव. [अप्रकटता], अज्ञातता, अव्यक्त होना - तथागतेन अधःपतन संभव नहीं है और जिसकी शील, समाधि एवं प्रज्ञा भया ओसक्कितं, उदाहु अपाकटताय ओसक्कितं, उदाहु की शिक्षाएं पूर्ण हो चुकी हैं - परिपुण्णसिक्खं अपहानधम्म, दुब्बलताय ओसक्कितं, मि. प. 218; - त्त नपुं॰, अपाकट पत्तरं जातिखयन्तदस्सिं. इतिवु. 30.
का भाव., [अप्रकटत्व]. उपरिवत् - आगतत्ता अपव्यूहापेसि अप + वि + Vऊह के प्रेर. का अद्य०, प्र. पु.. पच्चत्तेकवचनबहुवचनभावस्स पन अपाकटत्ता वेभूय्यप्पवत्तिं ए. व., रास्ते से हटवा दिया, अलग करा दिया, अदृश्य करा सन्धाय .... सद्द. 1.126; - पाटिहारिय नपुं., कर्म. स. दिया - इदानि नं गहिस्सामा ति तरुणसूकरे पक्कोसित्वा [अप्रकटप्रातिहार्य], ऋद्धिबल का वह चमत्कार, जिसमें रुक्खमूलता पेसु अपब्यूहापेसि, जा. अट्ठ. 4.310.
ऋद्धि ही दिखलाई दे, ऋद्धिमान् नहीं- अपाकटपाटिहारिये अपहाय/अवहाय अव + हा का पू. का. कृ., त्याग कर, इद्धि येव पायति न इद्धिमा, विसुद्धि. 2.21; - टीभूत छोड़ कर - बहभण्डं अवहाय, मग्गं अप्पटिवेक्खिय, जा. त्रि., [अप्रकटीभूत], अप्रकट बन चुका, अव्यक्त या अप्रादुर्भूत अट्ठ.4.4.
हो चुका - अपातुभूतन्ति अपाकटीभूतं. स. नि. अट्ट. 2.247. अपहारक पु., अप + Vहर से व्यु., क. ना. [अपहारक, अपाकटिक त्रि., [अप्राकृतिक]. अव्यवस्थित अथवा अपहरण करने वाला, हटा देने वाला, विनष्ट करने वाला अप्राकृतिक अवस्था वाला/वाली, अस्त व्यस्त - इन्द्रियानि - अपहत्ताति अपहारको, म. नि. अट्ठ. (उप.प.) 3.116. अपाकतिकानि, किलन्तरूपानि विय पञआयन्तीति पुच्छि, अपहारी अप + Vहर के प्रेर. का अद्य., उ. पु., ए. व., मैंने ध. प. अट्ट, 1.254. हटवा दिया या मिटवा दिया, मैंने विनष्ट करा दिया - अपागत नपुं., आ + गम का भू. क. कृ., शा. अ. ठीक चिरस्सं न्हापितं लद्धा, लोमं तं अज्ज हारयिन्ति, जा. अट्ठ. से नहीं आना, ला. अ. नियमों का अतिक्रमण या उल्लङ्घन, 3.276; अज्ज हारयिन्ति अज्ज हारेसिं, तदे...
भ्रम - कस्सच्चया न विज्जन्ति, कस्स नत्थि अपागतं. स. अपहारी त्रि., केवल स. उ. प. के रूप में ही प्राप्त नि. 1(1).29. [अपहारिन्], नष्ट करने वाला, मिटा देने वाला, दूर कर अपाची/अवाची स्त्री., [अपाची/अवाची], दक्षिण दिशा - देने वाला - नदतो परिसाय ते, वादितब्बपहारिनो, अप. पाची पतीच्युदीचित्थी पुब्ब पच्छिम उत्तरा, दिसाथ 2.202; थेरीगा. अट्ठ. 163.
दाक्षिणा'पाची, अभि. प. 29. अपहास पु., द्रष्ट. अवहास के अन्त...
अपाचीन त्रि., [अवाचीन]. नीचे की ओर अवस्थित; - नं अपाक 1. त्रि., ब. स. [अपाक], नहीं पका हुआ, कच्चा, नपुं., क्रि. वि., नीचे की ओर - उद्धं तिरियं अपाचीनं, नन्दी अपरिपक्व, नहीं पकाया हुआ - भन्ते, एकिस्सायेव कुम्भिया तेसं न विज्जति, स. नि. 2(1).78; उद्धं तिरिय अपाचीनं, पच्चमानं ओदनं अपाकं असं अपाकन्ति , जा. अट्ठ. 1.325; यावता जगतो गति, इतिवु. 84; अ. नि. 1(2).18. उसभा रुक्खा गावियो गवा च, अस्सो कंसो सिङ्गाली च अपाटली/आपाटली स्त्री., एक पुष्प का नाम - अपाटलिं कुम्भो, पोक्खरणी च अपाकचन्दनं, जा. अट्ठ. 1.321; 2 पु.. अहं पुप्फ उज्झितं सुभहापथे, अप. 1.119. तत्पु. स., नहीं पकना, विपाक को प्राप्त न होना - अपाकं अपाटुम/अपाटुक त्रि., व्यु. संदिग्ध [अप्रतिम/अपटुक?],
अविपाकस्स, छधा छट्ठस्स पच्चयो, विभ. अट्ठ. 166. असंयत स्वभाव वाला, असभ्य, अनुचित व्यवहार करने अपाकट त्रि., पाकट का निषे., तत्पु. स. [अप्रकट]. अस्पष्ट, वाला, प्रतिभा से सम्बन्ध न रखने वाला, अपटु - अव्यक्त, अज्ञात - तत्थ अञ्जतरोति नामगोत्तवसेन नेकतिका वञ्चनिका, कूटसक्खी अपाटुका, थेरगा. 940; अनभिजातो अपाकटो एको, उदा. अट्ठ. 43; अञ्जतरोति __ अपाटुकाति वामका, असंयतवुत्तीति अत्थो, थेरगा. अट्ट. नामगोत्तेन अपाकटो, तस्सं परिसायं निसिन्नो एको भिक्ख, 2.301. उदा. अट्ठ 47; रहोति पटिच्छन्नं अपाकटवसेन, पे. व. अट्ठ. अपाणातिपात पु., पाणतिपात का निषे., तत्पु. स. [बौ. सं. 92; अप्पपज्ञातोति अजातो अपाकटो, स. नि. अट्ठ. 3.163; __ अप्राणातिपात], प्राणों का हनन न करना, प्राणि-हिंसा न - गुण त्रि., ब. स., वह, जिसके गुण सुव्यक्त नहीं हो, करना - अपाणातिपातं निस्साय पाणातिपातो पहातब्बोति, अज्ञात गुणों वाला - तत्थ अातोति अपाकटगुणो म. नि. 2.25.
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