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अपरिसेस
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अपरिहीन
वह, जिसका मानसिक आचरण पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं है - समणब्राह्मणा अपरिसुद्धकायसमाचारा ... अपरिसुद्धमनोसमाचारा अपरिसद्धाजीवा, अ. नि. 1(2).230; - वचीकम्मन्त त्रि., ब. स., वह, जिसके वाणी के कर्म पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं है - ... समणा वा ब्राह्मणा वा अपरिसुद्धवचीकम्मन्ता ... पे.... अरञ्जवनपत्थानी पन्तानि सेनासनानि पटिसेवन्ति, म. नि. 1.23; - वचीसमाचार त्रि., ब. स., वह, जिसकी वाणी के प्रयोग पूरी तरह से शुद्ध नहीं है - समणब्राह्मणा अपरिसुद्धकायसमाचारा अपरिसुद्धवचीसमाचारा ... अपरिसुद्धाजीवा, अ. नि. 1(2).230; - वेय्याकरण त्रि., ब. स., वह, जिसके व्याख्यान या निर्वचन पूरी तरह से शुद्ध नहीं हैं - इधेकच्चो सत्था अपरिसुद्धवेय्याकरणो समानो परिसद्धवेय्याकरणोम्ही ति पटिजानाति परिसुद्ध ... असंकिलिट्ठन्ति, अ. नि. 2(1),116; - वोहार त्रि., ब. स. [अपरिशुद्धव्यवहार], वह, जिसका व्यवहार पूरी तरह से शुद्ध नहीं है - अपरिसुद्धवोहारो अयमायस्मा, अ. नि. 1(2).217; - सील त्रि.. ब. स. [अपरिशुद्धशील, वह, जिसका शील पूरी तरह से विशुद्ध नहीं है - एकच्चो सत्था अपरिसुद्धसीलो समानो परिसुद्धसीलोम्ही ति पटिजानाति परिसुद्धं ... असंकिलिट्ठन्ति, अ. नि. 2(1).115;-द्धाजीव त्रि., ब. स. [अपरिशुद्धाजीव]. वह, जिसके जीविका अर्जित करने के साधन पूरी तरह से शुद्ध नहीं हैं - न खो पनाहं अपरिसुद्धाजीवो अरञ्जवनपत्थानि पन्तानि सेनासनानि पटिसेवामि, परिसुद्धाजीवोहमस्मि, म. नि. 1.23; आजीववारे अपरिसुद्धाजीवाति अपरिसुद्धन वेज्जकम्मदूतकम्मवडिपयोगादिना एकवीसतिअनेसनभेदेन आजीवने समन्नागता. म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).122. अपरिसेस त्रि., ब. स. [अपरिशेष], कुछ भी शेष न रखने वाला, सभी कुछ अपने में अन्तर्भूत कर लेने वाला, सारा का सारा - एत्थेते पापका अकुसला धम्मा अपरिसेसा निरुज्झन्तीति, म.नि. 1.156-57; - सं क्रि. वि., समग्ररूप में, पूरी तरह से, बिना कुछ छोड़े हुए - एत्थ चुप्पन्नं दुक्खिन्द्रियं अपरिसेसं निरुज्झति, स. नि. 3(2).290; कथं चुप्पन्नं दोमनस्सिन्द्रियं ... सोमनस्सिन्द्रियं अपरिसेसं निरुज्झति, ध. स. अट्ठ. 220; नाटपुत्तो सब सब्बदस्सावी
अपरिसेसं आणदस्सनं पटिजानाति, म. नि. 1.130. अपरिस्सावनक' त्रि., परिस्सावनक का निषे. [अपरिस्रव], ऊपर निकल कर न बहने वाला - अनवसेसकन्ति अनवसिञ्चनकं अपरिस्सावनकं, जा. अट्ठ. 1.382.
अपरिस्सावनक: त्रि., ब. स., जल को छानने वाले जलशुद्धिकारक उपकरण (छन्नी) से रहित भिक्षु - अपरिस्सावनकेन अद्धानो पटिपज्जितब्बो, चूळव. 237; अपरिस्सावनको आह, अयं, भन्ते, अन्तरामग्गे मया सद्धिं विवादं कत्वा परिस्सावनं नादीसी ति, जा. अट्ठ. 1.197. अपरिहान नपुं.. परिहान का निषे. [अपरिहाण], हानि का न होना, घाटा न होना, अवनति या अधःपतन की अवस्था का न होना, लाभ की स्थिति, उत्कर्ष - सद्धो परिसपुग्गलो ति, भन्ते, अपरिहानमेतं. हिरिमा .... स. नि. 1(2).184; धम्मा सेखस्स भिक्खुनो अपरिहानाय संवत्तन्ति, इतिवु. 52; - धम्म त्रि., ब. स. [अपरिहाणधर्मन]. परिहानि को न पाने वाला, घाटे में न रहने वाला, क्षति न पाने वाला - राजा
समानो किं लभति? अपरिहानधम्मो होति, न परिहायति .... सब्बसम्पत्तिया, दी. नि. 3.123; - धम्मता स्त्री॰, भाव. [अपरिहाणधर्मता], हानि से मुक्त रहने की स्थिति, लाभ की स्थिति - असहानधम्मतन्ति अपरिहीनधम्म, दी. नि. अट्ठ 3.1073; पाठा. असहानधम्मतन्ति. अपरिहानि स्त्री., परिहानि का निषे. [अपरिहानि], पूर्ण हानि
का अभाव, घाटा न होना, अधःपतन की स्थिति का न रहना - यं पन उपचारप्पनाभेदस्स समाधिनो याव अत्तनो अपरिहानिपवत्ति, .... सु. नि. अट्ठ. 1.8-9; - कर त्रि, हानि न करने वाला, वृद्धि करने वाला - अपरिहानियेति
अपरिहानिकरे, वुद्धिहेतुभूतेति अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 2.102. अपरिहानिय त्रि., अपरिहान से व्यु., हानि न देने वाला, हानि की ओर न ले जाने वाला, सर्वथा सक्षम - अपरिहानिये धम्मे देसेस्सामि, ..... भासिस्सामीति, दी. नि. 2.593 अपरिहानियेति अपरिहानिकरे, वुद्धिहेतुभूतेति अत्थो, दी. नि. अट्ठ. 2.102; सत्त अपरिहानिया धम्मा, उदा. अट्ठ. 273; - सभाव त्रि., ब. स., स्वभाव से ही अहानिकर, स्वभाव से ही वृद्धि की ओर ले जाने वाला - एवं परिहानियसभावा मनुस्सलोका चवित्वा अपरिहानियसभावं एवरूपं देवलोक गमिस्ससीति, जा. अट्ठ. 4.98. अपरिहारी त्रि., परि + Vहर से व्यु., परिहारी का निषे. [अपरिहारिन्], अपने साथ जल आदि को न ले जाने वाला - एको उदकमणिको अच्छिद्दो अहारी अपरिहारी, स. नि. 2(2).302; अहारी अपरिहारीति उदकं न हरति न परिहरति, स. नि. अट्ठ. 3.142. अपरिहीन त्रि., परिहीन का निषे. [अपरिहीन], नहीं छोड़ दिया गया, अशिथल, अनुपेक्षित, अपरित्यक्त - अमतं तेसं.
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