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अपरूपक्कम
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अपलाळेति भिक्खवे, अपरिहीनं येसं कायगतासति अपरिहीनाति, अ. च, दी. नि. 3.152; जनोघमपरेन चाति एतस्स अपरभागे नि. 1(1).60; दानपथो च मे अपरिहीनो भविस्सति, मि. प. जनोघं नाम अझं नगरं दी. नि. अट्ठ. 3.134. 261; अहापेत्वा अलम्बित्वाति अपरिहीनं अलम्बितं कत्वा, अ. अपलाप त्रि., पलाप का निषे., ब. स. [अप्रलाप], वह स्थल, नि. अट्ट, 2.311; - ज्झान त्रि., ब. स. [अपरिहीनध्यान]. जहां प्रलाप या निरर्थक बातचीत न हो, सत्पुरुषों से युक्त कभी भी न टूटने वाले ध्यान से युक्त - हेर्पपत्तिको ... स्थान - अपलापायं, .... परिसा निप्पलापायं, ..., परिसा समापत्तियो निब्बत्तेत्वा अपरिहीनज्झानो कालं कत्वा सुद्धा सारे पतिहिता, अ. नि. 1(2).211; म. नि. 3.125; चतुत्थज्झानभूमियं ... निब्बत्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) अपलापाति पलापरहिता, अ. नि. अट्ठ. 2.360. 1(2).301-02; स. नि. अट्ठ. 1.183; - पदव्यञ्जन त्रि., ब. अपलायन न., पलायन का निषे॰ [अपलायन], पलायन स. [अपरिहीनपदव्यञ्जन], ऐसी वाणी, जिसमें पदों एवं का अभाव, नहीं भाग जाना - तं तं अपलायनं अपरम्प व्यञ्जनों के प्रयोगों में कोई स्खलन या त्रुटि न रहे - अथ बाल्यं, जा. अट्ठ. 3.245. वा अनेलगळायाति अनेलाय च अगळाय च निद्दोसाय अपलायी त्रि., पलायी का निषे. [अपलायिन्], पलायन न अगळितपदव्यञ्जनाय, अपरिहीनपदव्यञ्जनायाति अत्थो, करने वाला, भयरहित, शङ्कारहित - अथ आगच्छेय्य उदा. अट्ठ. 255; अने लगळायाति ... चेव खत्तियकुमारो सुसिक्खितो कतहत्थो कतयोग्गो कतूपासनो अक्खलितपदव्यञ्जनाय च, स. नि. अट्ठ. 1.242.
अभीरु अच्छम्भी अनुत्रासी अपलायी, स. नि. 1(1).118; - अपरूपक्कम त्रि., पर + उपक्कम से व्यु., परूपक्कम का यिनो प्र. वि., ब. व. - सकमित्तस्स कम्मेन, निषे., ब. स., वह, जहां दूसरे पास न फटक सकें, अन्य सहायस्सापलायिनो, जा. अट्ठ. 4.264; सहायस्सापलायिनोति प्राणियों द्वारा न छुए जाने योग्य - गुणा एकरसा अरोगा सहायस्स अपलायिनो मिगराजस्स तदे. - यिनं द्वि. वि., अकुप्पा अपरूपक्कमा अफुसानि किरियानि, मि. प. ए. व. - समन्ता परिकिरेय्यु, सहस्सं अपलायिनं, स. नि. 156.
1(1).214; - यीनं ष. वि., ए. व. - सहस्सं अपलायिनन्ति अपरूपघाती त्रि., परूपघाती का निषे. [अपरोपघातिन]. ये ते समन्ता सरेहि परिकिरेय्यू, तेसं अपलायीनं सङ्घ दूसरों की हत्या न करने वाला, दूसरों को कष्ट या पीड़ा दस्सेन्तो सहस्सन्ति आह, स. नि. अट्ठ. 1.236; - यिनि न पहुंचाने वाला - अप्पम्पि चे निबुति भुञ्जती यदि, स्त्री. संबो. - त्वञ्च खो मेव अक्खाहि, अत्तानमपलायिनी, असाहसेन अपरूपघाती, जा. अट्ठ. 3.461.
जा. अट्ठ. 5.4; अपलायिनीति अपलायित्वा मम सम्मुखे अपरेन अ., अपर सर्व से व्यु., तृ. वि., प्रतिरू. निपा. ठितेति तं देवतं आलपति, जा. अट्ठ. 5.5. [अपरेण], अनेक अर्थों एवं रूपों में प्रयोग, क.1. प. वि. अपळाल/अपलाल पु., व्य. सं., बुद्ध द्वारा दमित एक में अन्त होने वाले पदों के साथ, अगला, बाद में, नागराजा का नाम - तथा हि भगवता तिरच्छानपरिसापि आगे का (स्थान, क्षेत्र)- पुरत्थिमाय दिसाय गजङ्गलं नाम अपलाको नागराजा, पारा. अट्ठ. 1.87; - दमन नपुं.. निगमो तस्सापरेन महासालो. दी. नि. अट्ठ. 1.142; तत्पु. स., अपलाल-नामक नागराज का बुद्ध द्वारा दमन मज्झिमदेसो नाम- पुरत्थिमाय दिसाय ... निगमो, तस्स - आलवकङ्गुलिमाल अपलालदमनं पि च, म. वं. अपरेन महासालो. ..... ओरतो मज्झे, जा. अट्ठ. 1.60; क. 30.84. 2. काल के सन्दर्भ से, बाद में, बाद वाले समय में, अपलाळेति अप + लळ का वर्तः, प्र. पु., ए. व., बहका भविष्य में - दीपङ्करस्स अपरेन, कोण्डओ नाम नायको, बु. कर दूर ले जाता है, फुसला कर किसी के पास से दूर करा वं. 4.1; तत्थ दीपङ्करस्स अपरेनाति दीपङ्करस्स सत्थुनो देता है; - न्ति वर्त., प्र. पु., ब. व. - तेन खो ... अपरभागेति अत्थो, बु. वं. अट्ठ. 153; ख. प. वि. के छब्बग्गिया भिक्खू थेरानं भिक्खून सामणेरे अपलाळेन्ति, 'ततो' के साथ प्रयुक्त - बाद में, आगे आने वाले समय महाव. 108; अपलाळेन्तीति तुम्हाक पत्तं दस्साम, चीवर में - ततो अपरेन दासिभोगेन भुञ्जन्ति, पारा. 201; तमेन दस्सामा ति ... सङ्गण्हन्ति, महाव. अट्ठ. 280; - य्य विधि., परसामिपरेन नारिन्ति तमेनं नारि अपरेन समयेन जरं पत्तं प्र. पु., ए. व. - यो अपलाळेय्य, आपत्ति दुक्कटस्साति, अन्तरहितरूपसोभग्गप्पत्तं पस्सामि, जा. अट्ठ. 3.349; ग, महाव. 108; - तब्बा सं. कृ., स्त्री., प्र. वि., ए. व. - न, पश्चिम दिशा की ओर - उत्तरेन वसिवन्तो, जनोघमपरेन भिक्खवे, अञस्स परिसा अपलाळेतब्बा, महाव. 108; न
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