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अपरिक्खीण
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अपरिचितकुसलता
ठितस्स मज्झिमस्स पुरिसस्स लेड्डपातो, पारा. 52; तस्मा । धन आदि के "यह मेरा है" इस रूप में मन द्वारा पकड़ ... अपरिक्खितस्से गामस्स घरूपचारे ठितस्स ... वृत्तं, कर नहीं रखना, ख. अविवाहित रहने की स्थिति - सो पारा. अट्ठ. 1.240; .... अपरिक्खित्तस्स उपचारो, पाचि. अपरिग्गहभावं अत्वा समीपं गत्वा भद्दे, का नाम त्वन्ति 216.
पुच्छि, जा. अट्ठ. 6.192; - रस त्रि., ब. स., वह जिसका अपरिक्खीण त्रि., परिक्खीण का निषे. [अपरिक्षीण], पूरी कृत्य पकड़ कर या बांधकर रखना न हो - अपरिग्गहणरसो तरह से क्षय को अप्राप्त, पूरी तरह से समाप्त न होने वाला, मुत्तभिक्खु विय, ध. स. अट्ठ. 172. अप्रयुक्त - यावकीवञ्च मेति यत्तकं कालं मम सकं मुत्तकरीसं अपरिग्गहित त्रि., परि + गह के भू. क. कृ. का निषे. अपरिक्खीणं होति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).359; [अपरिगृहीत], क, अविवाहित, गृहस्थ जीवन के आवरण से अपरिक्खीणा च आसवा न परिक्खयं गच्छति, म. नि. रहित - अवावटाति अपेतावरणा अपरिग्गहा, जा. अट्ठ. 1.150; सति वा उपादिसेसेति उपादानसेसे वा सति 5.202; ख. "यह मेरा है" इस रूप में मन द्वारा अचिन्तित, अपरिक्खीणे, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).311; - ता स्त्री., मन द्वारा अगृहीत - ... अपरिग्गहिता कामा, महानि. 2; अपरिक्खीण का भाव. [अपरिक्षीणता], पूरी तरह क्षीण न अपरिग्गहिताति तथा अपरिग्गहिता उत्तरकुरुकानं कामा, होना, समाप्त न होना - यानि तेसु संयोजनानि अखीणासवानं महानि. अट्ठ. 13. तेसं अपरिक्खीणता च, उदा. अट्ठ. 32.
अपरिचक्खितु पु., परि + चक्ख से व्यु., क्रि. ना. का अपरिक्खोभ त्रि., परिक्खोभ/परिखोभ का निषे., ब. स. निषे. [अपरिचष्ट्र], वह, जो सावधान या चौकन्ना नहीं है, [अपरिक्षोभ], परिक्षोभ अथवा बाधक तत्त्वों से मुक्त, क्लेश सूक्ष्म परीक्षण न करने वाला - विकिण्णवाचं अनिगुय्हमन्तं, आदि से मुक्त - किलेसपरिखोभाभावेन अपरिखोभं, उदा. असञ्जतं अपरिचक्खितारं जा. अट्ठ. 5.72; अपरिचक्खितारन्ति अट्ठ. 301.
अयं मया कथितमन्तं रक्खितुं सक्खिस्सति न सक्खिस्सतीति अपरिगमनता स्त्री०, अपरिगमन का भाव., जन्म-मरण के पुग्गलं ओलोकेतुं उपपरिक्खितुं असक्कोन्तं, जा. अट्ठ. 5.73. चक्र में आने जाने से मुक्ति, भवचक्र से मुक्ति, आवागमन अपरिचरित्वान परि + /चर के पू. का. कृ. का निषे., से छुटकारा - अपरिगमनताय ठितो, महानि. 16; परिचर्या न करके, उचित देखभाल न करके, उपेक्षा करके अपरिगमनतायाति संसारे अगमनभावेन पुनागमनाभावेनाति - मातरं अपरिचरित्वान, किच्छं वा सो निगच्छति, जा. अट्ठ. अत्थो, महानि. अट्ठ. 70.
5.324; मिच्छा चरित्वानाति मातरं अपटिजग्गित्वा, जा. अपरिगुत्ति स्त्री., परिगुत्ति का निषे. [अपरिगुप्ति], सुरक्षा अट्ठ. 5.326. का अभाव, असुरक्षा - ये तत्थ अपरिगुत्तिया च... आबाधं न अपरिचारक त्रि., परिचारक का निषे. [अपरिचारक], ठीक करोन्ति, विसुद्धि. 1.32.
से सेवा या देखभाल न करने वाला, उपेक्षा करने वाला - अपरिग्गह त्रि., ब. स. [अपरिग्रह], शा. अ. परिग्रह अथवा एवं किच्छा भतो पोसो, पितु अपरिचारको, जा. अट्ठ. 5.324. धन-सम्पत्ति आदि भौतिक साधनों से रहित, मन के लगाव अपरिचिण्ण त्रि., परि + चर के भू. क. कृ. का निषे० से मुक्त, "मेरा है इस प्रकार के मनोभाव से मुक्त - मनुस्सा [अपरिचीर्ण], वह, जिसकी उचित देख भाल नहीं की गयी तत्थ जायन्ति, अममा अपरिग्गहा, दी. नि. 3.151; अपरिग्गहाति है, केवल स. उ. प. के रूप में प्राप्त; - छान नपुं., कर्म. इत्थिपरिगहेन अपरिग्गहा, दी. नि. अट्ठ. 3.133; अममा स., ऐसा स्थान या अवसर, जहां किसी की सेवा या सम्मान अपरिग्गहा, नियतायुका, अ. नि. 3(1).207; अपरिग्गहाति न किया गया हो- बुद्धानं पन अपरिचिण्णट्ठाने आसनपत्तिं 'इदं महान्ति परिग्गहरहिता, अ. नि. अट्ठ. 3.271; ला. अ. आचिक्खन्तेन एकेन भिक्खुना पठमतरं गन्तुं वट्टति, ध. प. पत्नी-रहित, अविवाहित - सपरिग्गहो वा ब्रह्मा अपरिग्गहो अट्ठ. 1.43; - पुब्ब त्रि., ब. स., वह, जिसकी पहले कभी वाति? दी. नि. 1.223; अपरिग्गहो भो गोतमातिआदीसुपि भी ठीक से सेवा-सुश्रूषा या देखभाल नहीं की गयी है - कामच्छन्दस्स अभावतो इत्थिपरिग्गहेन अपरिग्गहो, दी. नि. अग्गि सुलभरूपो यो मया अपरिचिण्णपुब्बो इमिना दीघेन अट्ठ. 1.304; सा अपरिग्गहापि न सेवितब्बा, जा. अट्ठ. अद्भुना, म. नि. 1.116. 5.445; ... सपरिग्गहा, अपरिग्गहाति पुच्छापेसि, जा. अट्ठ. अपरिचितकुसलता स्त्री., अपरिचितकुसल का भाव., कर्म. 6.176; - भाव पु. , तत्पु. स. [अपरिग्रहभाव], क. स्त्री, स., कुशल कर्मों या शील के विषय में अपरिचय, शील
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