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अन्वेत
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अपकवन्ति
अन्वेत त्रि., अनु + Vइ का भू. क. कृ. [अन्वित], वह, अन्वेसना स्त्री., अन्वेसन से व्यु. [अन्वेषणा], उपरिवत् - जिसका किसी के द्वारा अनुगमन किया जा रहा हो, उपगत, परियेसनान्वेसना परियेट्टि गवेसना, अभि. प. 428. युक्त, सहित - यथा वा विस्सासवसेन सीह मिगमातुका अन्वेसी त्रि., [अन्वेषिन्], अन्वेषण या किसी वस्तु की खोज अन्वेता उपगताति अत्थो, जा. अट्ठ. 1.371.
करने वाला, इच्छा या अभिलाषा करने वाला, केवल स. उ. अन्वेति अनु + Vइ का वर्त, प्र. पू., ए. व. [अन्वेति], प. के रूप में प्रयुक्त - कुसलानुएसीति कुसलधम्मे अन्वेसमानो, अनुगमन करता है, पीछा करता है, पीछे लगा रहता है - सु. नि. अट्ठ. 2.264; पाठा. कुसलानुएसी. ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कव वहतो पदान्ति, ध. प. 1; सु. अन्वेसित त्रि०, अनु + Vइस का भू. क. कृ., चाहा गया, नि. 776; ततो नं दुक्खमन्वेतीति ततो तिविधदुच्चरिततो तं प्रार्थित, अभीष्ट, वाञ्छित - मग्गितं परियेसितं, अन्वेसितं पुग्गलं दुक्खं अन्वेति, दुच्चरितानुभावेन चतूसु अपायेसु, गवेसितं, अभि. प. 753. मनुस्सेसु ... कायिकचेतसिकं विपाकदुक्खं अनुगच्छति, ध. अन्ह पु., अण्ह का अप॰ [अहन्], दिन, केवल स. उ. प. प. अट्ट, 1.15; ..., तेनेव मारो अन्वेति जन्तुं. सु. नि. 1109; के रूप में प्राप्त, पुब्बण्ह, मज्झन्ह, अपरण्ह के अन्त. द्रष्ट.. तेनेव मारो अन्वेति जन्तुन्ति तेनेव उपादानपच्चय- अप' प्राप्ति अर्थ वाली एक धातु - अप सम्भु च पापुणने निब्बत्तकम्माभिसङ्कारनिब्बत्तवसेन पटिसन्धिक्खन्धमारो तं सत्तं ...., धा. मं. 117; अप पापुणे, सद्द. 2.493. अनुगच्छति, सु. नि. अट्ठ. 2.291; -न्ति वर्त, प्र. पु., ब. अप. अ., उप. [अप], क. क्रि. प. एवं ना. प. के पूर्व में व. - ... निन्दमेव अन्वेन्ति, गरहमेव अन्वेन्ति, अकित्तिमेव प्रयुक्त एक उप., यत्र-तत्र अव के स्थान पर भी प्रयुक्त, अन्वेन्ति, ... -सब्बेव ते निन्दमन्वानयन्ति, महानि. 224; - वर्जन, निवारण, प्रदूषण, गर्दा या निन्दा, अर्थों का संकेतक तु अनु., प्र. पु., ए. व. [अन्वेतु]. - तस्सा सा वसमन्वेतु, - अपसद्दो अपगते गरहावज्जनेसु च पदुस्सने पूजनादिअत्थेसु या ते अम्बे अवाहरी ति, जा. अट्ठ. 3.118; तस्स एवरूपस्स पिच दिस्सति, सद्द. 3.884; निद्देसे वज्जने पूजापगतेवारणे महल्लकस्स सा वसं अन्वेतु, तथारूपं पतिं लभतु, तदे.; - पि च, अभि. प. 1184; ख. निन्दा अर्थ में - अपगब्भो न्तु अनु., प्र. पु., ब. व. - नेगमा च मं अन्वेन्त, गच्छ समणो गोतमो ति, पारा. 4; ग. वर्जन या मना करने के पुत्तनिवेदको, जा. अट्ठ. 6.26; - सि अद्य., प्र. पु., ए. व.. अर्थ में - अपसालाय आयन्ति वाणिजा, सद्द. 3.702; घ. - सिविमग्गेन अन्वेसि, पुत्ते आदाय लक्खणा ति, जा. अट्ठ. प्रदूषण अर्थ में - अपरद्धा सुद्धिमकेवली ते, सु. नि. 897; 7.268; अन्वेसीति तं अगमासि, पासादा ओतरित्वा रथं ... गन्तुं न हि तीरमपत्थि, सब्बसमा हि समन्तकपल्ला, सु. नि. अत्थो, तदे. - तुं निमि. कृ. - ... पाणिं विसं अन्वेतुं न 677; गन्तुं न हि तीरमपत्थीति अपगन्तुं न हि तीरं अत्थि, सक्कोति, ध. प. अट्ठ. 2.17.
सु. नि. अट्ठ. 2.182; ङ. प. वि. में अन्त होने वाले पद अन्वेसति अनु + Vइस का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अन्विष्यति], से पूर्व में प्रयुक्त - से दूर, से बाहर, के बिना, से रहित व्यु. क्रि. रू. - सं वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. [अन्विष्यन्]. - अप सालाय आयन्ति वणिजा, क. व्या. 274; सद्द. खोज करता हुआ, ढूंढता हुआ, अन्वेषण करता हुआ -- 702.18; कल्याणिनामनगरा अप दक्षिणस्मि, चू, वं. 91.63; भिक्खु सइन्दा देवा सब्रह्मका सपजापतिका अन्वेसं च. अव्ययी. स. के पद के रूप में द्वि. वि. अथवा प. वि. नाधिगच्छन्ति, म. नि. 1.194; तत्थ अन्वेसन्ति अन्वेसन्ता । के स. प. के पू. प. के रूप में प्राप्त, उपरिवत् - अपपब्बतं गवेसन्ता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).22; - न्त त्रि., वर्त. वस्सि देवो, अपपब्बतो, मो. व्या. 3.5. कृ., उपरिवत् - ततो सो वट्टगतं मग्गं, अन्वेसन्तो कुमारको, अपकट्ठ त्रि., अप + ।कस का भू. क. कृ. [अपकृष्ट]. चरिया. 403; तत्थ अन्वेसन्ति अन्वेसन्ता गवेसन्ता, म. नि. खींचकर दूर ले जाया गया, दूर हटा दिया गया, दृढ़ता के अट्ठ. (मू.प.) 1(2).22; - मान त्रि., वर्त. कृ., आत्मने., साथ नहीं जुड़ा हुआ - न च कायसिम अल्लीनं न च उपरिवत् - कुसलानुएसीति कुसलधम्मे अन्वेसमानो, सु. कायस्मा अपकट्ठ, ... म. नि. 2.347; अपकट्ठन्ति नि. अट्ट. 2.264; फलमन्वेसमाना ते. अलभिंसु फलं तदा, खलिसाटको विय कायतो मुच्चित्वापि न तिट्ठति, म. नि. अप. 1.325.
अट्ठ. (म.प.) 2.278. अन्वेसन नपुं., अनु + Vइस से व्यु.. क्रि. ना. [अन्वेषण], अपकड्डन्ति अप+ कड्ड का वर्त., प्र. पु.. ब. व. [अपकर्षन्ति], खोज, तलाश - मग अन्वेसने, सद्द. 2.524.
खींच कर दूर ले जाते हैं, दूर हटा देते हैं, दूर तक खींच
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