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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्वेत 353 अपकवन्ति अन्वेत त्रि., अनु + Vइ का भू. क. कृ. [अन्वित], वह, अन्वेसना स्त्री., अन्वेसन से व्यु. [अन्वेषणा], उपरिवत् - जिसका किसी के द्वारा अनुगमन किया जा रहा हो, उपगत, परियेसनान्वेसना परियेट्टि गवेसना, अभि. प. 428. युक्त, सहित - यथा वा विस्सासवसेन सीह मिगमातुका अन्वेसी त्रि., [अन्वेषिन्], अन्वेषण या किसी वस्तु की खोज अन्वेता उपगताति अत्थो, जा. अट्ठ. 1.371. करने वाला, इच्छा या अभिलाषा करने वाला, केवल स. उ. अन्वेति अनु + Vइ का वर्त, प्र. पू., ए. व. [अन्वेति], प. के रूप में प्रयुक्त - कुसलानुएसीति कुसलधम्मे अन्वेसमानो, अनुगमन करता है, पीछा करता है, पीछे लगा रहता है - सु. नि. अट्ठ. 2.264; पाठा. कुसलानुएसी. ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कव वहतो पदान्ति, ध. प. 1; सु. अन्वेसित त्रि०, अनु + Vइस का भू. क. कृ., चाहा गया, नि. 776; ततो नं दुक्खमन्वेतीति ततो तिविधदुच्चरिततो तं प्रार्थित, अभीष्ट, वाञ्छित - मग्गितं परियेसितं, अन्वेसितं पुग्गलं दुक्खं अन्वेति, दुच्चरितानुभावेन चतूसु अपायेसु, गवेसितं, अभि. प. 753. मनुस्सेसु ... कायिकचेतसिकं विपाकदुक्खं अनुगच्छति, ध. अन्ह पु., अण्ह का अप॰ [अहन्], दिन, केवल स. उ. प. प. अट्ट, 1.15; ..., तेनेव मारो अन्वेति जन्तुं. सु. नि. 1109; के रूप में प्राप्त, पुब्बण्ह, मज्झन्ह, अपरण्ह के अन्त. द्रष्ट.. तेनेव मारो अन्वेति जन्तुन्ति तेनेव उपादानपच्चय- अप' प्राप्ति अर्थ वाली एक धातु - अप सम्भु च पापुणने निब्बत्तकम्माभिसङ्कारनिब्बत्तवसेन पटिसन्धिक्खन्धमारो तं सत्तं ...., धा. मं. 117; अप पापुणे, सद्द. 2.493. अनुगच्छति, सु. नि. अट्ठ. 2.291; -न्ति वर्त, प्र. पु., ब. अप. अ., उप. [अप], क. क्रि. प. एवं ना. प. के पूर्व में व. - ... निन्दमेव अन्वेन्ति, गरहमेव अन्वेन्ति, अकित्तिमेव प्रयुक्त एक उप., यत्र-तत्र अव के स्थान पर भी प्रयुक्त, अन्वेन्ति, ... -सब्बेव ते निन्दमन्वानयन्ति, महानि. 224; - वर्जन, निवारण, प्रदूषण, गर्दा या निन्दा, अर्थों का संकेतक तु अनु., प्र. पु., ए. व. [अन्वेतु]. - तस्सा सा वसमन्वेतु, - अपसद्दो अपगते गरहावज्जनेसु च पदुस्सने पूजनादिअत्थेसु या ते अम्बे अवाहरी ति, जा. अट्ठ. 3.118; तस्स एवरूपस्स पिच दिस्सति, सद्द. 3.884; निद्देसे वज्जने पूजापगतेवारणे महल्लकस्स सा वसं अन्वेतु, तथारूपं पतिं लभतु, तदे.; - पि च, अभि. प. 1184; ख. निन्दा अर्थ में - अपगब्भो न्तु अनु., प्र. पु., ब. व. - नेगमा च मं अन्वेन्त, गच्छ समणो गोतमो ति, पारा. 4; ग. वर्जन या मना करने के पुत्तनिवेदको, जा. अट्ठ. 6.26; - सि अद्य., प्र. पु., ए. व.. अर्थ में - अपसालाय आयन्ति वाणिजा, सद्द. 3.702; घ. - सिविमग्गेन अन्वेसि, पुत्ते आदाय लक्खणा ति, जा. अट्ठ. प्रदूषण अर्थ में - अपरद्धा सुद्धिमकेवली ते, सु. नि. 897; 7.268; अन्वेसीति तं अगमासि, पासादा ओतरित्वा रथं ... गन्तुं न हि तीरमपत्थि, सब्बसमा हि समन्तकपल्ला, सु. नि. अत्थो, तदे. - तुं निमि. कृ. - ... पाणिं विसं अन्वेतुं न 677; गन्तुं न हि तीरमपत्थीति अपगन्तुं न हि तीरं अत्थि, सक्कोति, ध. प. अट्ठ. 2.17. सु. नि. अट्ठ. 2.182; ङ. प. वि. में अन्त होने वाले पद अन्वेसति अनु + Vइस का वर्त, प्र. पु., ए. व. [अन्विष्यति], से पूर्व में प्रयुक्त - से दूर, से बाहर, के बिना, से रहित व्यु. क्रि. रू. - सं वर्त. कृ., पु., प्र. वि., ए. व. [अन्विष्यन्]. - अप सालाय आयन्ति वणिजा, क. व्या. 274; सद्द. खोज करता हुआ, ढूंढता हुआ, अन्वेषण करता हुआ -- 702.18; कल्याणिनामनगरा अप दक्षिणस्मि, चू, वं. 91.63; भिक्खु सइन्दा देवा सब्रह्मका सपजापतिका अन्वेसं च. अव्ययी. स. के पद के रूप में द्वि. वि. अथवा प. वि. नाधिगच्छन्ति, म. नि. 1.194; तत्थ अन्वेसन्ति अन्वेसन्ता । के स. प. के पू. प. के रूप में प्राप्त, उपरिवत् - अपपब्बतं गवेसन्ता, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).22; - न्त त्रि., वर्त. वस्सि देवो, अपपब्बतो, मो. व्या. 3.5. कृ., उपरिवत् - ततो सो वट्टगतं मग्गं, अन्वेसन्तो कुमारको, अपकट्ठ त्रि., अप + ।कस का भू. क. कृ. [अपकृष्ट]. चरिया. 403; तत्थ अन्वेसन्ति अन्वेसन्ता गवेसन्ता, म. नि. खींचकर दूर ले जाया गया, दूर हटा दिया गया, दृढ़ता के अट्ठ. (मू.प.) 1(2).22; - मान त्रि., वर्त. कृ., आत्मने., साथ नहीं जुड़ा हुआ - न च कायसिम अल्लीनं न च उपरिवत् - कुसलानुएसीति कुसलधम्मे अन्वेसमानो, सु. कायस्मा अपकट्ठ, ... म. नि. 2.347; अपकट्ठन्ति नि. अट्ट. 2.264; फलमन्वेसमाना ते. अलभिंसु फलं तदा, खलिसाटको विय कायतो मुच्चित्वापि न तिट्ठति, म. नि. अप. 1.325. अट्ठ. (म.प.) 2.278. अन्वेसन नपुं., अनु + Vइस से व्यु.. क्रि. ना. [अन्वेषण], अपकड्डन्ति अप+ कड्ड का वर्त., प्र. पु.. ब. व. [अपकर्षन्ति], खोज, तलाश - मग अन्वेसने, सद्द. 2.524. खींच कर दूर ले जाते हैं, दूर हटा देते हैं, दूर तक खींच For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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