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अपच्चवेक्खित्वा
तेजसाति इदं सत्था जेतवने विहरन्तो अपच्चवेक्खितपरिभोगं आरम्भ कथेसि, जा० अट्ठ. 1.363. अपच्चवेक्खित्वा अ., पच्चवेक्खति के भू० क० कृ० का निषे. पूरी पूरी जांच पड़ताल न करके, सूक्ष्म परीक्षण न करके
तस्मिं किर काले भिक्खू चीवरादीनि लभित्वा येभुय्येन अपच्यवे विखत्वा परिभुज्जन्ति जा. अड. 1.363; अनगारियानपि चत्तारो पच्चये अपच्चवेक्खित्वा परिभुञ्जन्तान पञ्चकामगुणवसेन अनरियपरियेसना होति म. नि. अड. (मू०प.) 1(2).94.
अट्ठ. 2.297.
अपच्यागमन नपुं. पच्चागमन का निषे [ अप्रत्यागमन]. पुनः वापस न लौटना, फिर लौट कर वापस न आना तत्थ यस्मिं सङ्ग्रामे देवा पुन अपच्चागमनाय असुरे जिनिंसु, दी. नि. अपच्चास त्रि. ब. स. [ अप्रत्याश], प्रत्याशा न करने वाला, बदले में कुछ पाने की आशा न रखने वाला निरालयो अपच्चासो, सम्बोधिमनुपत्तिया 'ति, चरिया 374; अपच्चासो किञ्चिपि अपच्चासीसमानो, चरिया. अट्ठ. 43. अपच्चासीसन नपुं. पच्चासिंसन का निषे [ अप्रत्याशंसन]. प्रत्याशा न रखना, बदले में कुछ पाने की इच्छा न करना मिगभूतेन चेतसा विहरन्तीति अपच्चासीसनपक्खे ठिता हुत्वा विहरन्ति म. नि. अड. (म.प.) 2.119. अपच्चुद्धारक त्रि.. पच्चुद्धारक का निषे [ अप्रत्युद्धारक], दान में न देने वाला, दान में नहीं प्रदत्त अपच्युद्धारकं वापि, आविस्सासेन तस्स वा विन. वि. 1644; - सञ्ञी त्रि. [अप्रत्युद्धारकसंज्ञिन् ] प्रदत्त वस्तु में अप्रदत्त की समझ रखने वाला पच्चुद्धारकवत्थेसु अपच्युद्धारसज्ञिनो दिन. दि. 1648.
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अपच्चु पलक्खण नपुं., [ अप्रत्युपलक्षण], किसी प्रकार का विभेदक लक्षण प्रकट न करना रूपे खो, वच्छ, अपच्चुपलक्खणा .... स. नि. 2 ( 1 ) . 260 - णादिसुत्त नपुं. स. नि. 2 ( 1 ) के खन्ध-संयुक्त्त के एक सुत्त का शीर्षक, स. नि. 2 (1) 200. अपच्युपेक्खण नपुं. पच्चुपेक्खण का निषे [ अप्रत्यवेक्षण]. प्रत्यवेक्षण नहीं करना, सूक्ष्म जांच पड़ताल न करना वेदनानिरोधगामिनिया पटिपदाय अपच्चुपेक्खणा... स. नि. 2 (1) 280. अपच्चोरोहणता स्त्री०, अपच्चोरोहण का भाव. [अप्रत्यवरोहणता], अशिथिलता, उद्योगशीलता - अपरेहिपि चतूहि कारणेहि सतो ... सतिया अपच्चोरोहणताय सतो,
अपञ्जस
महानि. 7 अपथ्योरोहणतायाति अनिवत्तनभावेन अपच्चोसक्कनभावेन, महानि. अट्ठ. 39. अपच्चो सक्कनभाव पु.. पच्चोसक्कनभाव का निषे. [ अप्रत्यवष्कनभाव], अशिथिला का भाव उद्योगशीलता, ढीले-ढालेपन का अभाव अपच्चोरोहणतायाति अनिवत्तनभावेन अपच्चोसक्कनभावेन, महानि. अट्ठ. 39. अपच्छा अ.. पच्छा का निषे, क्रि. वि., न पीछे, बाद में नहीं, पीछे नहीं सच्छिकिरिया च अपच्छा अपुरे अहोसि. अ. नि. अह, 1210, अपुब्बं अचरिमन्ति अपुरे अपच्छा, एकप्पहारेनेवाति अत्थो, पु. प. अ. 37 अपुरिम त्रि, न पीछे वाला, न पहले वाला - बोधिसत्तस्स ... काकस्स उरे निलीयनञ्च अपच्छाअपुरिमं अहोसि, जा. अड. 3.258. अपजापतिक त्रि, पजापतिक का निषे, अविवाहित, बिना पत्नी वाला यत्थ परसति कुमारकं वा अपजापतिकं..... पारा. 200.
अपजित त्रि./ न. [अपजित] 1. त्रि.. युद्ध अथवा द्यूतक्रीड़ा आदि में हारा हुआ 2. नपुं. हानि, क्षय जितं अपजितं कविरा, तथारूपस्स जन्तुनो ध. प. 105. अहमस्स जितं अपजित करिस्सामि ध. प. अ. 1.374. अपज्झायति अप + √झा का वर्त० प्र० पु०, ए. व. [ अपध्यायति ] चिन्तन में निमग्न हो जाता है, सोच विचार डूब जाता है सेय्यथापि नाम उलूको रुक्खसाखायं मूसिकं मग्गयमानो झायति पज्झायति निज्झायति अपज्झायति, म. नि. 1.418.
में
अपञ्चगव नपुं. पञ्चगय का निषे [ अपञ्चगव], पांच से कम संख्या वाला गायों का समूह या झुण्ड - न पञ्चगवं अपञ्चगवं, क. व्या. 328.
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अपञ्चपूली स्त्री, पञ्चपूली का निषे, पांच से कम संख्या वाले गुच्छों का ढेर ते घ उभो दिगु-कम्मधारयसमासा तत्पुरिससञ्ञा होन्तिः अपञ्चवस्सं, असत्तगोदावरं, अपञ्चपूली, सद्द 3.759; न पञ्चपूली अपञ्चपूली, क. व्या. 328. अपञ्चवस्स त्रि, पञ्चवस्स का निषे [ अपञ्चवर्ष], वह व्यक्ति, जो पांच वर्षों की आयु वाला न हो, पांच वर्षों से कम आयु वाला नस्स पदस्स तप्पुरिसे उत्तरपदे अत्तं होति, अब्राह्मणो, अवसलो अभिक्षु, अपञ्चवस्सो, अपञ्चगव क. व्या. 335; न पञ्चवस्सं अपञ्चवस्सं, क. व्या. 328. अपञ्जस त्रि०, ब० स० [अपाञ्जस्], गलत रास्ते पर चलने वाला, कुमार्गगामी, सत्पथ से भ्रष्ट विसमं वातेसु वायन्तेसु विसमेसु अपजसेसु देवता परिकुपिता भवन्ति, अ. नि.
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