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गोचरभूमियं ... सीसेहि मरिस्सन्ति, जा. अट्ठ. 4.2233; अपरेपिस्स तयो सहाया अहेसुं..., तदे. 3.44; ग. काल । एवं देश की दृष्टि से, बाद वाला, अगला, उत्तरकालीन, पिछला, अन्तिम - विपस्सी बोधिसत्तो अपरेन समयेन पञ्चसु उपादानक्खन्धेसु उदयब्बयानुपस्सी विहासी, दी. नि. 2.27; अपरेन समयेनाति एवं पच्चयञ्च पच्चयनिरोधञ्च विदित्वा ततो अपरभागे, दी. नि. अट्ठ. 2.46; सो किर तापसो अपरस्मिं काले एक पच्चन्तगामं निस्साय नदी तीरे वनसण्डे विहासि, जा. अट्ठ. 3.319; दिढे वा धम्मे उपपज्ज वा अपरे वा परियाये, अ. नि. 1(1).159%; - काल पु., कर्म. स. [अपरकाल], आगे आने वाला समय, बाद वाला काल, भविष्य - पुब्बकालं कोधो, अपरकालं उपनाहो, विभ. 412; वृत्तञ्चेतं-पुब्बकाले कोधो, अपरकाले उपनाहो तिआदि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).113; - क्खर पु./नपुं., कर्म. स. [अपराक्षर], बाद में आने वाला अक्षर, पश्चाश्रयी अक्षर - पुब्बक्खरेन अपरक्खरं जानाति नाम, ध. प. अट्ठ. 2.321; - गोयान नपुं./पु.. व्य. सं. [बौ. सं... अपरगोदान], बौद्धों की ब्रह्माण्ड-व्याख्या में सिनेरु (सुमेरु) से पश्चिम की ओर स्थित एक महाद्वीप का नाम - पुब्बविदेहो चापरगोयानं जम्बुदीपो च, उत्तरकुरु चेति सियुं चत्तारो मे महादीपा, अभि. प. 183; सत्तयोजनसहस्सपरिमण्डलंयेव अपरगोयानं, खु. पा. अट्ठ. 141; अपरगोयानतो आगतमनुस्सेहि आवसितपदेसो अपरन्तजनपदोति नाम लभि, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).236; अपरगोयाने मज्झिमयामो, दी. नि. अठ्ठ. 3.46; सहस्सं अपरगोयानानं, अ. नि. 1(1).2583; - गोयानदीप पु., कर्म. स., उपरिवत् - गोयानियेति अपरगोयानदीपं. जा. अट्ठ.7.171; अपरगोयानदीपे उग्गमनकालो इध मज्झन्हिको.. दी. नि. अट्ठ. 3.46; - गोयानका पु., अपरगोयन नामक महाद्वीप के निवासी - ते जम्बुदीपका, अपरगोयानका, उत्तरकुरुका, पुब्बविदेहकाति चतुबिधा, इध जम्बुदीपका अधिप्पेता, खु. पा. अट्ठ. 98; ... भूमिसया नरा नाम अपरगोयानका च उत्तरकुरुका च, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).316; - चेतना स्त्री., कर्म. स. [अपरचेतना], किसी भी कर्म की आधारभूत तीन प्रकार की चेतनाओं में से तीसरे प्रकार की चेतना, दान आदि कर्मों को करते समय अपरभाग में दाता के चित्त में उदित चेतना - ... पुब्बचेतना, मुञ्चचेतना, अपरचेतनाति तिविधेन उप्पज्जति, विभ. अट्ठ. 390; पुञ्जन्ति पुब्बचेतना च मुञ्चनचेतना च, पुञ्जमहीति
अपरचेतना, अ.नि. अट्ठ. 3.172; अहो वत मे जानीति अपरचेतनं परिपुण्णं कातुं नासक्खि , जा. अट्ठ. 3.262; .... इमे ताव तयो पुब्बचेतनाय च अपरचेतनाय चाति द्विन्न
चेतनानं वसेन दुक्खवेदना होन्ति, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(2).270; तुल. अपरभागचेतना; - रज्जु अ., क्रि. वि. [अपरेधुः], अगले दिन, दूसरे दिन - अपरस्मिं काले अपरज्ज, अपरज्जु, अपरस्मिं वा, क. व्या. 573; अज्जतना भिक्खुनिसङ्घ पवारेत्वा अपरज्जु भिक्खुसङ्घ पवारेतु न्ति, चूळव. 440; सायं वा निक्खमति अपरज्जु वा काले, स. नि. 1(1).216; अपरज्जु वा कालेति दुतियदिवसे वा भिक्खाचारकाले, स. नि. अट्ठ. 1.237; - रज्जुगत त्रि., अगले दिन पड़ने वाला, अगले दिन घटित होने वाला/वाली - अपरज्जुगताय आसाळिहया पुरिमिका उपगन्तब्बा, ... पच्छिमिका उपगन्तब्बा, महाव. 181; - रज्जुदिवसपुब्बभाग पु., तत्पु. स., दूसरे दिन का पूर्वभाग - पातोति अपरज्जुदिवसपुब्बभागे, सु. नि. अट्ठ. 2.98; - रट्ठम त्रि., कर्म. स. [अपराष्टम], दूसरा या अन्य आठवां - पटिसम्भिदारहत्तञ्च, एतं मे अपरट्ठमं, अप. 1.355; - रण्ण नपुं, अपर + अन्न का स. प. [अपरान्न], सात प्रकार के खाद्यान्नों से इतर साग सब्जी, दाल आदि खाद्य पदार्थ -
खेत्तं नाम यत्थ पुब्बण्णं वा अपरणं वा जायति, पारा. 57; तत्थ पुब्बण्णन्ति सालिआदीनि सत्त धज्ञानि, अपरण्णन्ति मुग्गमासादीनि, पारा. अट्ठ. 1.272; खेत्तं नाम यस्मिं पुब्बणं रुहति, वत्थु नाम यस्मिं अपरण्णं रुहति, दी. नि. अट्ठ. 1.72; - जाति स्त्री., उपरिवत् - हरेणुकाति अपरण्णजाति, जा. अट्ठ. 5.402; - निस्सित त्रि., तत्पु. स., दालों या सब्जियों के खेतों के समीप में स्थित - .... अपरण्णनिस्सितं वा होति, .... एतं सारम्भं नाम, पारा. 231; एसेव नयो अपरण्णनिस्सितादीसपि, पारा. अट्ठ. 2.141; - रण्ह पु.. अपर + अण्ह का स. प. [अपराह्ण], दिन का मध्याह्न के बाद वाला भाग - ... पुब्बन्हो, अपरण्हो, अज्जन्हो, ..., मो. व्या. 110; - तो अ., [अपरतः], पश्चिम दिशा की ओर - सर काणकच्छपं पुब्बसमुद्दे, अपरतो च युगछिदं, थेरीगा. 502; - दिवस पु., कर्म स॰ [अपरदिवस], दूसरा दिन, अगला दिन - सा पेती तं ... सब्बकामसमिद्धा च हुत्वा अपरदिवसे आयस्मतो ... वन्दित्वा अट्ठासि, पे. व. अट्ठ. 69; -दीपन/दीपना नपुं./स्त्री., अन्य पद्धतियों द्वारा किसी पद की दूसरी व्याख्या या भिन्न निर्वचन, पूर्व-पद का परवर्ती पद द्वारा व्याख्यान या अर्थ का सुदृढीकरण -
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