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अपकड्ढन
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अपक्क
ले जाते हैं - पुरिसस्स सञ्ज उपकडन्तिपि, दी. नि. 1.162; ततियो नं निसेधेत्वा आथब्बणपयोगं सन्धाय उपकडन्तिपि अपकडन्तिपी ति आह, दी. नि. अट्ठ. 1.275; तानि भिक्खू उदकेन तेमेत्वा ... अपकड्डन्ति, महाव. 277; - ड्वाम उ. पु.. ब. व., बाहर खींच कर ले आते हैं - तानि मयं उदकेन तेमेत्वा तेमेत्वा अपकवामा ति, महाव. 277; 387; -- डन्त त्रि., वर्त. कृ., खींच कर बाहर ले जा रहा, बाहर निकाल रहा - ... छन्दरागं अपकड्वन्तो विचेस्सति विचिनिस्सति विजानिस्सति पटिविज्झस्सति सच्छिकरिस्सति, ध. प. अट्ठ. 1.190; अहसा ... आहिण्डनतो ... चीवरानि उदकेन तेमेत्वा तेमेत्वा अपकवन्ते, महाव. 277; 387; - ड्डेय्य विधिः, प्र. पु., ए. व., निकाल बाहर करे - इदमेत्थ अपकड्डेय्य, एवं तं परिसुद्धतरं अस्साति, इति हेतं न पस्सति, दी. नि. 3.94; - ड्डि अद्य., प्र. पु., ए. व., खींच कर बाहर कर दिया, निकाल बाहर किया- अथ खो जीवको कोमारभच्चो सेद्विभरियाय सत्तवस्सिकं सीसाबाधं एकेनेव नत्थुकम्मेन अपकड्डि, महाव. 360; - ड्डित्वा पू. का. कृ. - सो थेरं वन्दनकाले कम्बलतो अङ्गुलिं अपकड्डित्वा कम्बलं थेरस्स पादमूले पातेसि, ध, प. अट्ठ. 1.298. अपकड्ढन अप + कड्ड से व्यु., क्रि. ना. [अपकर्षण], निकाल बाहर करना, दूर कर देना - तेसु दोसं दिस्वा
छन्दरागस्सापकडनं पहानपरिआ, जा. अट्ठ. 7.149. अपकड्डापेत्वा अप + कड्ड के प्रेर. का पू. का. कृ., दूर करा कर, निकाल बाहर करा कर, हटवा कर -... गीवायं गहेत्वा अपकड्डापेत्वा अत्तनो पमाणं न जानाथ, जा. अट्ट. 1.327; ... खाणुकण्टक अपकढापेत्वा भूमि समं ... अपरभागे .... नगरं मापेति, मि. प. 31. अपकत त्रि., अप+vकर का भू. क. कृ. [अपकृत], वह, जिसके साथ अनुचित कार्य या व्यवहार किया गया हो, अपमानित, पीड़ित, ग्रस्त - इच्छापकतरसाति इच्छाय अपकतस्स, उपद्दुतस्साति अत्थो, विभ. अट्ठ. 453. अपकतञ्जू त्रि., अप्पकतञ्जू के अन्त. द्रष्ट.. अपकतिभोजन नपुं., कर्म, स. [अप्रकृतिभोजन], असामान्य । भोजन, अप्राकृतिक आहार - महाविकटभोजनस्मिन्ति महन्ते विकटभोजने, अपकतिभोजनेति अत्थो, म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).359. अपकस्सति अप + ।कस का वर्त, प्र. पु.. ए. व. [अपकर्षति]. क. सक. क्रि. के रूप में – खींच कर दूर ले जाता है, दूर कर देता है, हटा देता है, शान्त कर देता है; - थ अनु०,
म. पु., ब. व. [अपकर्षत], शान्त कर दो, दूर कर दो - कारण्डवं निद्धमथ, कसम्बु अपकस्सथ, सु. नि. 283; ..., तं कचवरभूतं पुग्गलं कचवरमिव अनपेक्खा निद्धमथ, सकटभूतञ्च ... पथिन्नपग्घरितकट्ठ चण्डालं विय अपकरस्सथ, हत्थे वा सीले वा गहेत्वा निकडथ, सु. नि. अट्ठ.2.42; - स्स पू. का. कृ. [अपकृष्य], दूर करके, शान्त करके, हटाकर - अपकस्सेव कायं, अपकस्स चित्तं, निच्चनवका कुलेसु अप्पगब्भा, स. नि. 1(2).177; अपकस्स चित्तन्ति तेनेव सन्थवादीनं अकरणेन कायञ्च चित्तञ्च अपकस्सित्वा अपनेत्वाति अत्थो, स. नि. अट्ठ. 2.148; ख. अक. क्रि. के रूप में - दूर हटा देता है, विलग हो जाता है या कर देता है, इधर उधर कर देता है - न्ति वर्त, प्र. पु., ब. व. - ते इमेहि अट्ठारसहि वत्थूहि अपकस्सन्ति, अवपकस्सन्ति, आवेनिं उपोसथं करोन्ति, .... एत्तावता खो, उपालि सङ्घो भिन्नो होति, चूळव. 345; तत्थ अपकस्सन्तीति परिसं आकड्वन्ति, विजटेन्ति, एकमन्तं उस्सारेन्ति च, चूळव. अट्ट 114. अपकार पु., अप + vकर का क्रि. ना. [अपकार], अहित उत्पन्न करने वाला काम, गिरा हुआ नीच कर्म, दूसरे की हानि करना या कष्ट पहुंचाना - बुद्धस्स अपकारेन, दुग्गन्धा वदनेन च, अप. 2.251; थेरीगा. अट्ठ. 79; पापानं दुद्दचित्तानं अपकारे कतं बहू चू. वं. 46.8; - रोपकार पु.. अपकार + उपकार का द्व. स. [अपकारोपकार], दूसरे को कष्ट देने वाला काम तथा हितकारक काम - सुकम्म समुपट्टाति अपकारोपकारतो, सद्धम्मो. 283. अपकीरितून अप + vकिर का पू. का. कृ. [अपकीर्य], निरर्थक या तुच्छ रूप में इधर-उधर फेंक कर या बिखेर कर - तस्सेतं कम्मफलं, यं मं अपकीरितून गच्छन्ति, थेरीगा. 449; यं में अपकीरितून गच्छन्तीति यं दासी विय सक्कच्चं उपट्ठहन्ति में तत्थ तत्थ पतिनो अपकिरित्वा
छड्वेत्वा अनपेक्खा अपगच्छिन्ति, थेरीगा. अट्ट, 294. अपक्क त्रि., पिच के भू. क. कृ. (पक्क) का निषे. [अपक्व],
शा. अ. वह जो उबला हुआ नहीं हो, कच्चा, नहीं पकाया हुआ, सूखा - ... भिक्खू न जानन्ति रजनं पक्कं वा अपक्क वा, महाव. 376; अनगिपक्कि काति अग्गिना अपक्कपत्तफलानि खादित्वा यापेन्ता, सु. नि. अट्ठ. 1.270; ला. अ. परिपाक की अवस्था को अप्राप्त कर्म, विपाक की स्थिति को अप्राप्त कर्म - न खो, राजञ, समणब्राह्मणा सीलवन्तो कल्यानधम्मा, अपक्कं परिपाचेन्ति, दी. नि.
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