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अनुस्वार
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अनुस्सरण गङ्गाय नदिया अनुसोतं नावाय आगच्छन्तो तं पेतं तथा भिक्खून बहूपकारं वदामि, अनुस्सतिम्पाहं.... बहुकारं वदामि, गच्छन्तं दिस्वा पुच्छन्तो, पे. व. अट्ठ. 147; द्रष्ट. विलो. स. नि. 3(1).85; यं यं दानादिकुसलं अनुस्सरति भावतो, पटिसोत; - गामी त्रि.. [अनुस्रोतगामी], अनुकूल दिशा की तस्स तस्सानुरूप हि यसञ्चानुसती फलं. सद्धम्मो. 582; ओर जाने वाला, लकीर का फकीर, किसी स्थापित परम्परा __स. उ. प. के रूप में अननु, उपट्ठानानु., उपसमानु.. का अनुसरण करने वाला - सो रहमानो अनुसोतगामी, किं गुणानु., चागानु., देवतानु०. धम्मानु०, पुब्बेनिवासानु.. सो परे सक्खति तारयेतू. सु. नि. 321; अनुसोतगामि, भन्ते पुरिमजातिअनु., बुद्धानु., मरणानु., रतनानु., सङ्घानु., नागसेन, देवदत्तं तथागतो पटिसोतं पापेसि, मि. प. 120; सप्पुरिसानु, सीलानु के अन्त. द्रष्ट; - कम्मट्ठान नपुं..
चत्तारोमे, भिक्खवे. ... कतमे चत्तारो? अनुसोतगामी पुग्गलो, तत्पु. स. [अनुस्मृतिकर्मस्थान], ध्यान के आलम्बन के रूप .... अ. नि. 1(2).6; पुनप्पुनं जातिजरूपगामि ते. में अनुस्मृतियां, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त, तण्हाधिपन्ना अनुसोतगामिनो, अ. नि. 1(2).6; - पटिसोतं बुद्धानुस्सतिकम्मट्ठान तथा बुद्धधम्मसङ्घानुस्सतिकम्मट्ठान के अ., क्रि. वि., धारा के बहाव की तथा इसके प्रतिकूल दिशा अन्त. द्रष्ट; - निद्देस पु., विसुद्धि के आठवें अध्याय का में, अनुकूल एवं प्रतिकूल रूप में - ... अनुसोतपटिसोतम्पि शीर्षक, विसुद्धि. 1.220-282. वुरहति, म. नि. 3.224.
अनुस्सतिद्वान नपुं., तत्पु. स. [अनुस्मृतिस्थान], ध्यानअनुस्वार पु., [अनुस्वार], द्रष्ट. अनुस्सार के अन्त... भावना के क्रम में अनुस्मृतियों की भावना के छः प्रकार के अनुस्सङ्की त्रि., उस्सङ्की का निषे. [अनुशङ्की], शङ्काओं से कारण या आधार - छ अनुस्सतिट्ठानानि - बुद्धानुस्सति, मुक्त, निर्भय, निःशङ्क - ... अभीतो अनुब्बिग्गो अनुस्सी धम्मानुस्सति, सङ्घानुस्सति, सीलानुस्सति, चागानुस्सति, अनुत्रस्तो, ..... चूळव. 320; उदा. 90; महाबलपरिबळ्हो, देवतानुस्सति, दी. नि. 3.198; अ. नि. 2(2).6; अनुस्सङ्की परक्कमि, म. वं. 10.40.
अनुस्सतिट्ठानानीति अनुस्सतिकारणानि, अ. नि. अट्ठ. अनुस्सङ्कित त्रि., उस्सङ्कित का निषे. [अनुत्शङ्कित], शङ्काओं 3.103. से मुक्त, निडर, निःशङ्क - ... अनुस्सङ्कितापरिसङ्किते हठ्ठपहढे अनुस्सतिवग्ग पु., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, अ.नि. उदग्गुदग्गे ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).119.
3(2)296-322. अनुस्सतानुत्तरिय नपुं., तत्पु. स. [अनुस्मृत्यनुत्तर्य], अनुस्सतिविसेस पु., कर्म. स. [अनुस्मृतिविशेष], विशेष अनुस्मृतियों की अनुत्तरता या सर्वोत्तमता, अनुस्मृतियों का प्रकार की अनुस्मृति, विशेष रूप में भावित अनुस्मृति - सर्वोत्तम आदर्श, छ: प्रकार के अनुत्तर्य-धर्मों में से एक; बुद्ध, अनुस्सतिविसेसस्स सब्बा सम्पत्तियो फलं, सद्धम्मो. 231. धर्म एवं सङ्घ, इन तीन रत्नों के स्मरण की अनुत्तरता - छ अनुस्सद त्रि., उस्सद का निषे०, अहङ्काररहित, उभाड़ या अनुत्तरियानि - दस्सनानुत्तरियं, ..., पारिचरियानुत्तरिय, वृद्धि से रहित, तृष्णा, मान आदि अकुशल धर्मों की वृद्धि या अनुस्सतानुत्तरियं दी. नि. 3.197; अ. नि. 2(2).6; खत्तियादीनं प्रधानता से रहित - अक्कोधनं वतवन्तं सीलवन्तं अनुस्सद गुणानुस्सरणं नानुस्सतानुत्तरियं तिण्णं पन रतनानं सु. नि. 629; ध. प. 400; तण्हाउस्सदाभावेन अनुस्सद, गुणानुस्सरणं अनुस्सतानुत्तरियं नाम, दी. नि. अट्ठ. 3.200. ध. प. अट्ठ. 2.378; सु. नि. अट्ठ. 2.170; तं वे अनुस्सति/अनुसति स्त्री., [अनुस्मृति], पुनः पुनः उत्पन्न कल्याणधम्मोति आहु भिक्खु अनुस्सद, इतिवु. 70. स्मृति, पूर्व में अनुभूत धर्मों का स्मरण, मानसिक अनुचिन्तन, अनुस्सदकजात त्रि., उस्सदकजात का निषे., वह, जो ध्यान-प्रक्रिया में सतत रूप में भावनीय अभ्यास की एक ___ उष्ण या गर्म नहीं हुआ, वह, जिससे ऊपर उठकर बुलबुले क्रिया, बुद्ध, धर्म एवं सङ्घ आदि का पुनःपुनः मानसिक नहीं निकल रहे हों - ..., उदपत्तो अग्गिना असन्तत्तो स्मरण, अनुस्मरण - भावेहि बुद्धानुस्सति, भावनानमनुत्तर, अनुक्कुधितो अनुस्सदकजातो, अ. नि. 2(1).216; उदपत्तो अप. 1.66; विसुद्धि. 189-221; 220-282; उस्सोळिह अग्गिना सन्तत्तो पक्कुथितो उस्सुदकजातो, स. नि. त्वधिमत्तेहा, सति त्वनुस्सति स्थियं, अभि. प. 158; या सति 3(1).143; अ. नि. 2(1).214. अनुस्सति पटिस्सति सति सरणता धारणता ... सतिइन्द्रियं अनुस्सरण नपुं., अनु + (सर से व्यु., क्रि. ना. [अनुस्मरण]. सतिबलं .... अयं वुच्चति सति, महानि. 7; तत्थ पुनप्पुन अनुस्मृति, किसी बीती हुई बात का मन में स्मरण होना, उप्पज्जनतो सति एव अनुस्सति, महानि. अट्ठ. 27; तेसं पिछली बातों को मन में याद करना - तेसं भिक्खून
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