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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुस्वार 304 अनुस्सरण गङ्गाय नदिया अनुसोतं नावाय आगच्छन्तो तं पेतं तथा भिक्खून बहूपकारं वदामि, अनुस्सतिम्पाहं.... बहुकारं वदामि, गच्छन्तं दिस्वा पुच्छन्तो, पे. व. अट्ठ. 147; द्रष्ट. विलो. स. नि. 3(1).85; यं यं दानादिकुसलं अनुस्सरति भावतो, पटिसोत; - गामी त्रि.. [अनुस्रोतगामी], अनुकूल दिशा की तस्स तस्सानुरूप हि यसञ्चानुसती फलं. सद्धम्मो. 582; ओर जाने वाला, लकीर का फकीर, किसी स्थापित परम्परा __स. उ. प. के रूप में अननु, उपट्ठानानु., उपसमानु.. का अनुसरण करने वाला - सो रहमानो अनुसोतगामी, किं गुणानु., चागानु., देवतानु०. धम्मानु०, पुब्बेनिवासानु.. सो परे सक्खति तारयेतू. सु. नि. 321; अनुसोतगामि, भन्ते पुरिमजातिअनु., बुद्धानु., मरणानु., रतनानु., सङ्घानु., नागसेन, देवदत्तं तथागतो पटिसोतं पापेसि, मि. प. 120; सप्पुरिसानु, सीलानु के अन्त. द्रष्ट; - कम्मट्ठान नपुं.. चत्तारोमे, भिक्खवे. ... कतमे चत्तारो? अनुसोतगामी पुग्गलो, तत्पु. स. [अनुस्मृतिकर्मस्थान], ध्यान के आलम्बन के रूप .... अ. नि. 1(2).6; पुनप्पुनं जातिजरूपगामि ते. में अनुस्मृतियां, केवल स. उ. प. के रूप में ही प्रयुक्त, तण्हाधिपन्ना अनुसोतगामिनो, अ. नि. 1(2).6; - पटिसोतं बुद्धानुस्सतिकम्मट्ठान तथा बुद्धधम्मसङ्घानुस्सतिकम्मट्ठान के अ., क्रि. वि., धारा के बहाव की तथा इसके प्रतिकूल दिशा अन्त. द्रष्ट; - निद्देस पु., विसुद्धि के आठवें अध्याय का में, अनुकूल एवं प्रतिकूल रूप में - ... अनुसोतपटिसोतम्पि शीर्षक, विसुद्धि. 1.220-282. वुरहति, म. नि. 3.224. अनुस्सतिद्वान नपुं., तत्पु. स. [अनुस्मृतिस्थान], ध्यानअनुस्वार पु., [अनुस्वार], द्रष्ट. अनुस्सार के अन्त... भावना के क्रम में अनुस्मृतियों की भावना के छः प्रकार के अनुस्सङ्की त्रि., उस्सङ्की का निषे. [अनुशङ्की], शङ्काओं से कारण या आधार - छ अनुस्सतिट्ठानानि - बुद्धानुस्सति, मुक्त, निर्भय, निःशङ्क - ... अभीतो अनुब्बिग्गो अनुस्सी धम्मानुस्सति, सङ्घानुस्सति, सीलानुस्सति, चागानुस्सति, अनुत्रस्तो, ..... चूळव. 320; उदा. 90; महाबलपरिबळ्हो, देवतानुस्सति, दी. नि. 3.198; अ. नि. 2(2).6; अनुस्सङ्की परक्कमि, म. वं. 10.40. अनुस्सतिट्ठानानीति अनुस्सतिकारणानि, अ. नि. अट्ठ. अनुस्सङ्कित त्रि., उस्सङ्कित का निषे. [अनुत्शङ्कित], शङ्काओं 3.103. से मुक्त, निडर, निःशङ्क - ... अनुस्सङ्कितापरिसङ्किते हठ्ठपहढे अनुस्सतिवग्ग पु., अ. नि. के एक वर्ग का शीर्षक, अ.नि. उदग्गुदग्गे ..., म. नि. अट्ठ. (मू.प.) 1(1).119. 3(2)296-322. अनुस्सतानुत्तरिय नपुं., तत्पु. स. [अनुस्मृत्यनुत्तर्य], अनुस्सतिविसेस पु., कर्म. स. [अनुस्मृतिविशेष], विशेष अनुस्मृतियों की अनुत्तरता या सर्वोत्तमता, अनुस्मृतियों का प्रकार की अनुस्मृति, विशेष रूप में भावित अनुस्मृति - सर्वोत्तम आदर्श, छ: प्रकार के अनुत्तर्य-धर्मों में से एक; बुद्ध, अनुस्सतिविसेसस्स सब्बा सम्पत्तियो फलं, सद्धम्मो. 231. धर्म एवं सङ्घ, इन तीन रत्नों के स्मरण की अनुत्तरता - छ अनुस्सद त्रि., उस्सद का निषे०, अहङ्काररहित, उभाड़ या अनुत्तरियानि - दस्सनानुत्तरियं, ..., पारिचरियानुत्तरिय, वृद्धि से रहित, तृष्णा, मान आदि अकुशल धर्मों की वृद्धि या अनुस्सतानुत्तरियं दी. नि. 3.197; अ. नि. 2(2).6; खत्तियादीनं प्रधानता से रहित - अक्कोधनं वतवन्तं सीलवन्तं अनुस्सद गुणानुस्सरणं नानुस्सतानुत्तरियं तिण्णं पन रतनानं सु. नि. 629; ध. प. 400; तण्हाउस्सदाभावेन अनुस्सद, गुणानुस्सरणं अनुस्सतानुत्तरियं नाम, दी. नि. अट्ठ. 3.200. ध. प. अट्ठ. 2.378; सु. नि. अट्ठ. 2.170; तं वे अनुस्सति/अनुसति स्त्री., [अनुस्मृति], पुनः पुनः उत्पन्न कल्याणधम्मोति आहु भिक्खु अनुस्सद, इतिवु. 70. स्मृति, पूर्व में अनुभूत धर्मों का स्मरण, मानसिक अनुचिन्तन, अनुस्सदकजात त्रि., उस्सदकजात का निषे., वह, जो ध्यान-प्रक्रिया में सतत रूप में भावनीय अभ्यास की एक ___ उष्ण या गर्म नहीं हुआ, वह, जिससे ऊपर उठकर बुलबुले क्रिया, बुद्ध, धर्म एवं सङ्घ आदि का पुनःपुनः मानसिक नहीं निकल रहे हों - ..., उदपत्तो अग्गिना असन्तत्तो स्मरण, अनुस्मरण - भावेहि बुद्धानुस्सति, भावनानमनुत्तर, अनुक्कुधितो अनुस्सदकजातो, अ. नि. 2(1).216; उदपत्तो अप. 1.66; विसुद्धि. 189-221; 220-282; उस्सोळिह अग्गिना सन्तत्तो पक्कुथितो उस्सुदकजातो, स. नि. त्वधिमत्तेहा, सति त्वनुस्सति स्थियं, अभि. प. 158; या सति 3(1).143; अ. नि. 2(1).214. अनुस्सति पटिस्सति सति सरणता धारणता ... सतिइन्द्रियं अनुस्सरण नपुं., अनु + (सर से व्यु., क्रि. ना. [अनुस्मरण]. सतिबलं .... अयं वुच्चति सति, महानि. 7; तत्थ पुनप्पुन अनुस्मृति, किसी बीती हुई बात का मन में स्मरण होना, उप्पज्जनतो सति एव अनुस्सति, महानि. अट्ठ. 27; तेसं पिछली बातों को मन में याद करना - तेसं भिक्खून 1110 For Private and Personal Use Only
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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